Wednesday, August 17, 2011

मौत भी काँप उठेगी

इस जिंदगी की दौड़ में अब मैं और तू
शायद खुदा भी अनजान है मैं यहाँ पैर हूँ
देह्शात्त्ज़दा हो चुके हैं हालात-ए-गम अब "हर्ष"
मौत भी काँप उठेगी और कांप उठेगी
रूह |

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