Monday, October 31, 2011

ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१

दोस्तों ...आदाब....मैं एक तालिब-इ-इल्म इंसान ....आज यहाँ ग़ज़ल के बारे में कुछ ज्ञान जो हमने अपने गुरुओं से पाया आपस में तकसीम करने की कोशिश कर रहा हूँ ....ये ज्ञान मेरा यानी एक कम इल्मी इंसान का  निजी ज्ञान है जो मैंने बछ्पन से इसे सींच कर पाया है ..हो सकता है आप इस ज्ञान से इत्तेफाक न रखें ....और किसी बहस के मुददे से अलग है ....कोई भी सज्जन इसे अन्यथा न ले...जितना हम जानते हैं उसी की परिचर्चा आपके सामने है...गाहे बगाहे...ये लेख  यहाँ देते रहेंगे .......यूँ तो हमने छोटी कक्षा में छंद का अध्ययन खूब किया है ...लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं करते ......वही छंद स्वरुप हमारी ग़ज़लों का स्रोत है .....आज जिसे उर्दू छंद-शास्त्र के अर्थों में  अरूज़  कहते हैं उसमे यहीं छंद विद्यमान होते हैं |अरूज़ की भाषा में छंद को बहर कहते हैं | अरूज़ में वर्णित ३०-३५ बहरें ही ऐसी हैं जो उर्दू शायरी में प्रचलित हैं |ये सभी हिंदी=उर्दू ग़ज़लों में पराया इस्तेमाल होती हैं .....बहरों के बारे में हम आगे बताने की कोशिश करेंगे | उर्दू में शेष बहरें इस लिए अप्रचलित हैं कि इनकी रचना उर्दू भाषा कि प्रकृति और बनावट से मेल नहीं खाती तथा शेर बड़े सुस्त . लये-हीन और गद्यात्मक हो जाते हैं ..ऐसी सभी बहरों को छोड़कर बाकी उन्ही बहरों का उल्लेख करेंगे जो उर्दू शायरी में प्रचलित होने के साथ-साथ हिंदी ग़ज़ल के लिए उपयुक्त हो....|वैसे तो शायरी या कवितायी एक कठिन कला है , परन्तु प्रकृति ने जिनके अंदर इस कला के बीज स्वंय ही रोप दिए हो उनके लिए उन्हें अंकुरित और विकसित करना कोई कठिन कार्य नहीं है सभी लोगों में कवित्व का अंश न्यूनाधिक मात्र में प्राकृतिक रूप से विद्यमान रहता है, यह अंश जिन लोगों में जितना अधिक होता है वह उतने ही शीघ्र सफल कवि अथवा शायर बन जाते हैं |शायरी - कला अर्थात 'अरूज़' अपने आप में एक पूर्ण विज्ञान है , भाषा-विज्ञान अवं स्वर-विज्ञानं {गायन कला }को मिलाकर बना है | जैसा सभी जानते हैं कि विज्ञान का विषय सामान्यता थोडा अरूचिकर होता है उसे पूर्ण मनोयोग के साथ समझ-समझकर ही सीखा जा सकता है | ठीक इसी प्रकार शायरी-कला के नियमों को भी पूर्ण मनोयोग और धैर्य के साथ पढने और समझने कि आवश्यकता होती है ..ऐसा करने पर कठिन प्रतीत होने वाली बात भी आगे चलकर सरल और रूचिकर लगने लगती है |जिन्हें अपने अंदर कवित्व का अंश पर्याप्त मात्र में विद्यमान प्रतीत होता हो और उचित पर्यास के बाद शायरी कला के नीयम समझना जिन्हें रूचिकर लगे यह प्रस्तुति उन्ही के लिए है |जिन्हें शायरी के नियमों को समझना भारी लगता हो कवित्व के अंशों का कुछ अता पता न हो उन्हें इस ओर से अपना मनन हटाते हुए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने उसे इस कथित रोग से मुक्त रखा |वैसे शायरी के नीयम समझना बहूत कठिन भी नहीं हैं बस कुछ परीश्रम और धैर्य की आवश्यकता है ..आगे चल कर सभी कुछ सुगम महसूस होने लगता है |इस विषय में कुछ आगे कहा जाए शेरगोई और ग़ज़ल-सृजन के नियमों पर कुछ बात की जाए उस से पहले शायरी से सम्बंधित कुछ आवश्यक बातों की जानकारी कर ली जाए ......

कुछ जानने योग्य बातें .....

प्रश्न --- 'शेर किसे कहते हैं ?उत्तर ---शायरी के नियमों बंधी हुई दो पंक्तियों कि ऎसी काव्य रचना शेर कहते हैं जिसमें पूरा भाव या विचार व्यक्त कर दिया गया हो | 'शेर' का शाब्दिल अर्थ है --'जानना' अथवा किसी तथ्य से अवगत होना |

प्रश्न ---'मिसरा' किसे कहते हैं ?
उत्तर----शेर जिन दो पंक्तियों पर आधारित होता है उसमे से प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं | 'शेर' कि प्रथम पंक्ति को 'मिसरा-ए-ऊला' कहते हैं और दुसरे मिसरे को 'मिसरा-ए-सानी' कहते हैं |

प्रश्न--'काफिया' किसे कहते हैं ?
उत्तर--अनुप्रास या तुक को 'काफिया ' कहते हैं | इसके पर्योग से शेर में अत्यधिक लालित्य/लय उत्पन्न हो जाती है और इसी उद्देश्य से शेर में काफिया रखा जाता है अन्यथा कुछ विद्वानों के निकट शेर में काफिया होना आवश्यक नहीं है..परन्तु अपने गुण के कारण अब शेर में काफिया कि उपस्तिथि अनिवार्य हो गयी है |

प्रश्न --'रदीफ़' किसे कहते हैं |
उत्तर---शेर में काफिया के बाद आने वाले शब्द अथवा शब्दावली को रदीफ़ का शाब्दिक अर्थ है --'पीछे चलने वाली '| काफिया के बाद रदीफ़ के पर्योग से शेर का सौंदर्य और अधिक बढ जाता है |अन्यथा शेर में रदीफ़ का होना भी कोई आवश्यक नहीं है | रदीफ़ रहित ग़ज़ल अथवा शेरोन को 'गैर मुरद्दफ़' कहते हैं |

                                                                                                                       ........क्रमश:
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1.a
शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.
ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12

2 comments:

  1. साहब, मिसरा-ए-ऊला' नहीं, मिसरा-ए-अव्वल' कहते हैँ

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  2. मिसरा-ए-ऊला कहते हैं।




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