Friday, November 4, 2011

बदलते दौर में

बदलते दौर में अब मौत पर मातम भी नहीं है
तू ढूंढें आसरा उनसे जहाँ इंसानियत ही नहीं है
देखो धूप का तो शहर मैं अब निशाँ कहाँ है 'हर्ष'
किसी भी घर में देखो आजकल आँगन ही नहीं है

_____________हर्ष महाजन
 

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