Monday, June 25, 2012

भूल जाना था तो अपना क्यूँ बनाया तूने

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भूल जाना था तो अपना क्यूँ बनाया तूने
जो दीया बुझ न सका मुझ में जलाया तूने ।

मैं बिखर जाऊँगा फूलों सा मगर ये तो बता
अपनी चाहत का यक़ीं फिर क्यूँ दिलाया तूने ।

अब तो नींदों में भी उठकर मैं फिरा करता हूँ
ऐसी मंजिल का निशाँ फिर क्यूँ बनाया तूने ।

तू बता भूलूँ मैं कैसे तेरी आँखों का नशा
ऐसी ज़िन्द दे के मुझे फिर क्यूँ रुलाया तूने

अपने मतलब पे वफ़ा और जफा की तुमने
झूठी उल्फत से मुझे खूब सताया तूने ।

___________हर्ष महाजन ।

गला दर्द हो तो बस यही अंजाम होता है

गला दर्द हो तो बस यही अंजाम होता है
खुद आंसुओं में ओर घर में जाम होता है ।

हमें तो मालूम है हकीकत,चलो तुम बताओ
सभी पूछेंगे जब हाल तभी बस नाम होता है ।

हंसो मत जियादा अपनी हकीकी पर इतना
खट्टा छोड़ देना नहीं तो गला बदनाम होता है ।

इतना कहने पर भी उट-पटांग अगर खाओगी
तो सच कहूं तो आपरेशन तक नाकाम होता है ।..:) :)

ये 'हर्ष' यार यारों का बड़ी अजीजी से मिलता है
दिल में रहो ऐसा नहीं तब मिलो जब काम होता है ।

__________________हर्ष महाजन ।

Sunday, June 24, 2012

मुझको जीने का खुदा आके सलीका दे दे



कैसी है नार जिस पर उसने ऐतबार किया

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कैसी है नार जिस पर उसने ऐतबार किया,
अपने हलके में ही लाखों का कारोबार किया ।

लगे है मजमा अबकी रोज़ आशिकों का वहां
अपने घर को ही उसने हुस्न का बाज़ार किया ।

पहले परदे में हुआ करती थी मोहब्बत जवाँ
अब तो हर साज़ सर-ए-आम गुलज़ार किया

अपनी खुद्दारी पे होता था कभी नाज़ उसे
अब ये हालात उसने जीना भी दुश्वार किया ।

उस खतावार पे ऊँगली भी उठाये न कोई
कुछ ऐसे उसने जुबां को भी तलवार किया ।

___________हर्ष महाजन ।

Saturday, June 23, 2012

मुझको जीने का खुदा आके सलीका दे दे

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मुझको जीने का खुदा आके सलीका दे दे
मैं मोहब्बत में हूँ कोई आके तरीका दे दे ।

जिससे है प्यार मुझे उसके फ़साने हैं बहुत
ऐ खुदा चुपके से ज़ख्मों का ज़खीरा दे दे ।

ये तो दुनिया ने है झाँका मेरे दिल में यूँ ही
कोई अब राज़ मोहब्बत का लचीला दे दे ।

उसने था कत्ल किया फिर भी टुकड़े-टुकड़े जिया
अर्ज़ इतनी है खुदा दिल भी फकीरा दे दे ।

मुझको दिन रात सताती है अब सूरत उसकी
मैं बसूँ दिल में उसके ऐसा सलीका दे दे ।

_______________हर्ष महाजन ।

वो शख्स अपनी बात से लगे मुकर गया

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वो शख्स अपनी बात से लगे मुकर गया
बे-ईमान था वो अब दिल से उतर गया ।

इक ख्वाब पक्के महल का दिल में था मगर
आज कच्ची नीव सा यूँ ही उखड गया ।

ये सोचा था वो बदलेंगे ये वीरां को चमन में
ये वहम था मेरा कि बस पल में उजड़ गया ।

पाश-पाश किया है उसने दामन-ए-वफ़ा मेरा
सँभलने को दे के अब इक लम्बा सफ़र गया ।

दुश्मन की सफ में था मगर सुना संभल गया
खामोश था मगर न जाने अब किधर गया ।

_____________हर्ष महाजन ।

हमने तो बे-सबब यादों के ज़खीरे सजा रखे हैं 'हर्ष'

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हमने तो बे-सबब यादों के ज़खीरे सजा रखे हैं 'हर्ष'
फ़क़त इक बात ही तो याद नहीं कि बस कहाँ रखे हैं ।

__________________हर्ष महाजन ।




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कुछ देर और बहारों का लुत्फ़ ले लें मेरे दोस्त
मौसम का मिजाज़ अभी बदलने वाला है बस ।
कुछ भी पोशीदा नहीं रहा अहले नज़र से 'हर्ष'
बड़ी मुश्किल से कुछ देर और टाला है बस ।

___________________हर्ष महाजन ।

पोशीदा = छुपा
edited 5/09/2012

Friday, June 22, 2012

तलाश-ए-सकूं में जो निकले थे घर से हम यारो

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तलाश-ए-सकूं में जो निकले थे घर से हम यारो
चैन-ए-दिल खो दिया बस यही मुकद्दर था यारो ।

________________हर्ष महाजन

कुछ इस तरह से उसने मुझे नज़र अंदाज़ कर दिया

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कुछ इस तरह से उसने मुझे नज़र अंदाज़ कर दिया
जिस तरह किसी शाक ने कोई पत्ता बर्बाद कर दिया ।

रुखसार पर टिकाया कुछ इस तरह उसने जुल्फों को
जुबां को जैसे सुलगते दिल ने बे-आवाज़ कर दिया ।

_______________________हर्ष महाजन ।

Thursday, June 21, 2012

मुझको अच्छा नहीं लगता ज़माने वालो

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मुझको अच्छा नहीं लगता ज़माने वालो
अब जहां से मुझे ले जाओ उठाने वालो ।

मेरी हसरत के ज़नाज़े को न पूछे कोई
इतने बे-दर्द कहाँ हो ज़हर पिलाने वालो ।

मेरे दिल में कभी झाँक कर देखा तो करो
कितना ज़ख़्मी है ओरों को हसानें वालो ।

ये जहां अपना नहीं सब हैं मतलब के यहाँ
कुछ तो बता कौन हो लौट के आने वालो ।

इल्तजा मेरी खुदा से तुम्हे नींदें मुबारक
दर्द-ए-जुदाई का मुझे दे के जगाने वालो ।

_______________हर्ष महाजन

Wednesday, June 20, 2012

अब दर्द को किस तरह निभाऊं मैं 'हर्ष'

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अब दर्द को किस तरह निभाऊं मैं 'हर्ष'
वो अपनी इन्तेहा के आखिरी दौर में है ।

_______________हर्ष महाजन ।

Tuesday, June 19, 2012

दिल को ऐसे ही सजा देता हूँ

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दिल को ऐसे ही सजा देता हूँ
उनके खतों को जला देता हूँ ।

इन्तखाब उनको पसंद आये कभी
उसको कागज़ से हटा देता हूँ ।

राज़-ए-दिल जानता हूँ मैं लेकिन
खुश रहे जहां में दुआ देता हूँ ।

आग जो दिल की कभी बुझने लगे
सूखे ज़ख्मों को हवा देता हूँ ।

आज फिर उनको दुआ दी मैंने
जिनकी हर बात भुला देता हूँ ।

वो ही मज़्मूं ख़त का याद आये
आग जब दिल की बुझा देता हूँ ।

अब ये दिल राख से आबाद हुआ,
मैं खुद खुदा को दुआ देता हूँ ।

________हर्ष महाजन ।

Ek Geet----मेरे साए की है छाँव

Ek Geet

मेरे साए की है छाँव,
सर पे धूप नीचे पाँव,
धरती पे है झूठा बसेरा
फिर गगन करे शामिल अँधेरा ।
रात ख्वाबों में कट जाती,
दिन में यादें फिर रुलाती,
बादलों में है बरखा का डेरा,
चंद अश्कों ने आके मुझे छेड़ा ।
मेरे साए की......

___हर्ष महाजन

Monday, June 18, 2012

अब देखो तुम ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा

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अब देखो तुम ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,
इन कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा ।

आँखों से बहते अश्क भी अब सोचते होंगे ,
ढूंढेंगे ऐसा घर तो फिर ये घर न मिलेगा ।

ढूंढूं कहाँ गमख्वार अब गैरों के शहर में
दुश्मन तो मिलेगा मगर रहबर न मिलेगा ।

अब हो गया इन आंखों में दर्दों का ज़खीरा,
टूटेगा जब अश्कों का समंदर न मिलेगा ।

अहल-ए-फन यूँ तो बहुत यारो यहाँ पे अब,
मगर तुझे ये 'हर्ष' सा सुखनवर न मिलेगा ।

____________________हर्ष महाजन ।

यादों से आबाद ये हवेली क्यूँ कर वीरान होने लगी

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यादों से आबाद ये हवेली क्यूँ कर वीरान होने लगी
मेरी साँसे उल्फत की कुछ बाकी हैं ऐलान होने लगी ।

_____________________हर्ष महाजन

कितना फरक आ गया है अब तेरे मेरे जज्बातों में ऐ दोस्त

कितना फरक आ गया है अब तेरे मेरे जज्बातों में ऐ दोस्त
तूने शज़र से घर बनाया है मैंने शज़र इक नया लगाया है ।

__________________________हर्ष महाजन ।

न दिलाना याद कभी उन पुराने दिनों की ऐ 'हर्ष'

न दिलाना याद कभी उन पुराने दिनों की ऐ 'हर्ष'
उठा कभी दिल से धुंआ याद आ जाएगा अभी ।

______________________हर्ष महाजन ।

कुछ देर और बहारों का लुत्फ़ ले लें मेरे दोस्त

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कुछ देर और बहारों का लुत्फ़ ले लें मेरे दोस्त
मौसम का मिजाज़ अभी बदलने वाला है बस ।

___________________हर्ष महाजन

हो जाऊं मैं तुम्हारा बस इतनी है आरज़ू

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हो जाऊं मैं तुम्हारा बस इतनी है आरज़ू
वीरानियों से कह दो कहीं और जा बसें ।

_______________हर्ष महाजन ।

कल रात तस्वर तो किया ख्वाब का लेकिन

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कल रात तस्वर तो किया ख्वाब का लेकिन
हो गए मेरे ख्वाब के टुकड़े विरानियाँ देखकर ।

मुझको न थी खबर वो नहीं आयेंगे इस तरह
अपने ख्वाब में मेरी तस्वीर के टुकड़े देखकर ।

________________हर्ष महाजन ।

तेरी कलम की सिसकियों ने ही तो मुझे नींद से उठाया है

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तेरी कलम की सिसकियों ने ही तो मुझे नींद से उठाया है
वगरना मैं तो अपने फन से ही महरूम हो चला था आज ।

________________________हर्ष महाजन ।

आईने पर तेरी नज़र क्या पड़ी के वो टूट गया

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आईने पर तेरी नज़र क्या पड़ी के वो टूट गया
मुझे हो गया यक़ीं मेरा यार मिलने आ गया है ।

_____________________हर्ष महाजन ।

दोस्ती पर जो अब "हर्ष" आ गयी इक इमदाद

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दोस्ती पर जो अब "हर्ष" आ गयी इक इमदाद
फूलों की बरसात लाजिम ही तो थी न मेरे दोस्त ।

_____________________हर्ष महाजन ।

Sunday, June 17, 2012

तुझ से ऐ जान-ए-वफ़ा हम न गिला रखेंगे

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तुझ से ऐ जान-ए-वफ़ा हम न गिला रखेंगे
जो   भी  रखेंगे   तो   पहचान  जुदा  रखेंगे ।

दिल के ज़ख्मों का ज़िक्र हम न करेंगे उनसे
जो  भी  उठेगा   भंवर  दिल  में  छुपा रखेंगे ।

कोई काफिर भी अगर तुझ को सताएगा कभी
याद कर लेना ये दर हम भी खुला रखेंगे ।

तेरी मंजिल के लिए तुझ से कोई जाँ मांगे
हम तो जाँ अपनी हथेली पे सजा रखेंगे ।

गैर मुमकिन है कि हम तुझको कभी भूलेंगे 
तेरी याद अपनी अदाओं में बना रखेंगे ।


_______________हर्ष महाजन ।

इस तरह से कहना हो तो "हर्ष" अब खुद ही कह लिया करो

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इस तरह से कहना हो तो "हर्ष" अब खुद ही कह लिया करो
मेरों शेरों को परवाज़ चाहिए अश्कों में खुद ही बह लिया करो ।

रूठे रहने से कोई भी बात खुद ही सच्ची नहीं हो जाती दोस्त
कुछ शेरों को आवाज़ चाहिए अधरों को कहो कह लिया करो ।

ये किस तरह का भंवर है ये सन्नाटा मुझे समझा तो दीजिये
कुछ शेरों को अंदाज़ चाहिए कैसे कहूं तन्हायी सह लिया करो ।

मैं उलझा हूँ तेरे अनकहे सवालों में क्यूँ कि दिल पे राज़ है तेरा
उन शेरों को ताज चाहिए ज़हन में जो भी  हो कह लिया करो ।

किस तरह से ये घायल दिल तेरे शांत दिल की आवाज़ सुनेगा
कुछ शेरों को फौलाद चाहिए बेहतर शिकवों में बह लिया करो ।


________________________हर्ष महाजन

Saturday, June 16, 2012

बदनसीबी में यहाँ लोग जिया करते हैं

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बदनसीबी में यहाँ लोग जिया करते हैं
बेबसी  देखो  यहाँ  रोज़ पिया करते हैं ।

ज़िन्दगी जुर्म है अब जुर्म कज़ा देती है
बंद मुट्ठी में सजा रोज़ लिया करते हैं ।

जिनके घर में कभी खुशियों ने न झाँका कभी,
होके महरूम भी वो प्यार किया करते हैं ।

दिल तो उनके सर-ए-आम क़त्ल होते हैं
ज़ख्म सहते हैं मगर रोज़ सिया करते हैं । 

मेरे अशार उन्हें रोज़ मलहम देते हैं
दिल के जज़्बात कहीं वो भी जिया करते हैं

____________हर्ष महाजन ।

ये दिल मैं टुकड़ों में तुझ पे निसार कर बैठा

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ये दिल मैं टुकड़ों में तुझ पे निसार कर बैठा
यूँ  हुई खता के मैं खुद दिल पे वार कर बैठा ।

ये चीज़ क्या उल्फत समझ न पाया वो यारब
मैं बे-अकल खुद को उस पे बीमार कर बैठा ।

नशा वफ़ा का रकीबों की महफ़िलों में चला
सजा के खुद महफ़िल खुद ही बे-जार कर बैठा ।

लगे ये सदमे हमें जुदाई के अब सहने पड़ेंगे
ग़मों कि फहरिस्त में खुद को शुमार कर बैठा ।

________________हर्ष महाजन

कलम चले तो मैं दिल की आवाज़ लिखता हूँ

..

कलम चले तो मैं दिल की आवाज़ लिखता हूँ
इत्तेफाक हो न तुम्हे फिर भी  राज़  लिखता हूँ ।

मिला वो ज़िन्दगी में तब से नशा छाने लगा
वो शख्स जैसा था उसका अंदाज़ लिखता हूँ ।

चुरा लिया है उसने दिल के दरीचों से सब कुछ
खुदा कसम मैं अब दिल के अल्फाज़ लिखता हूँ

इतना बढ़ा है दर्द अब जुबां पे आने लगा
गुजरता 'दिल' से मेरे जिसको साज़ लिखता हूँ ।

वो ज़ख्म देते चलें हम भी उनको भरते चलें
इसी अंदाज़ को आग़ाज़-ए-इश्क लिखता हूँ ।

____________हर्ष महाजन ।

Friday, June 15, 2012

दर्द उनके शानों पे अब इस कदर लिखा होता है

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दर्द उनके शानों पे अब इस कदर लिखा होता है
जिस तरह तहरीरों में मेरा नाम लिखा होता है ।

_______________हर्ष महाजन ।

अब ज़िन्दगी के ज़ख्मों को तहरीर करूंगा

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अब ज़िन्दगी के ज़ख्मों को तहरीर करूंगा
मिल जाए गुनाहगार कोई शमशीर करूंगा ।

दुनिया में मेरे कोई गम-ए-हिज्र चलेगा
मैं उम्र भर उस शख्स की तौकीर करूंगा ।

गैरों के घर में बे-वफ़ा गर दीप जलेगा
उनकी जुबां तराश कर मैं तीर करूंगा ।

गर तेरी अदाओं से मेरी शाम बनेगी
कसम तेरी जुल्फों की मैं ज़ंजीर करूंगा ।

दिल तेरा धडकेगा मेरी साँसे चलेंगी
हर शाम फिर रंगीन कर तस्वीर करूंगा ।

_______________हर्ष महाजन ।

Wednesday, June 13, 2012

मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं

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मेरे ज़ख्मों को वो जी भर के सजा देते हैं
जो तड़प करदे वो कम उसको मिटा देते हैं ।

मेरे दामन के वो गम अश्क दबा लें लेकिन
वो तो अब पलकों से आंसू भी गिरा देते हैं ।

पशेमाँ होके भी पत्थर से लगाया जो दिल
पर वो काँटों सा समझ दर से हटा देते हैं ।

मैं जुदा कैसे करूँ गम जो बने हैं साहिल
बन के हमदर्द वो ज़ख्मों को हवा देते हैं ।

हर कदम मेरा सवालात नज़र आता है
फिर वो शिकवे-ओ-शिकायत की दवा देते हैं ।


___________हर्ष महाजन ।


कच्ची सी झोंपड़ी हूँ इसे ठोकर न लगाना

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कच्ची सी झोंपड़ी हूँ इसे ठोकर न लगाना
दिल में बसा के अपनी नज़रों से न गिराना ।

तू है साज़ मैं तराना अपना भी इक फ़साना
धड़कन की तरह मेरा बदलना न ठिकाना ।

तू बसा है अखियन में तस्वीर की तरह अब
ये इल्तजा खुदा से इस ख्वाब को न भुलाना ।

मैं तो मारा फिर रहा हूँ ले तड़प तेरी दिल में
गर पूरी ये न हो तो, वो दिन अब न दिखाना ।

मुद्दत से परेशाँ हूँ आ भी जा तू ऐ खुदारा
मैं तो आशिक हूँ तेरा दिवाना न बनाना ।

_____________हर्ष महाजन ।

सुबह-ओ-शाम मैंने बहुत पी मगर इक सरूर अभी बाकी है

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सुबह-ओ-शाम मैंने बहुत पी मगर इक सरूर अभी बाकी है
ग़ज़लें कही बहुत पर तेरे लिए कहूं इक ज़रूर अभी बाकी है ।

____________________हर्ष महाजन

Tuesday, June 12, 2012

कभी बेकसी में गुजरी कभी इम्तिहाँ से गुजरी

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कभी बेकसी में गुजरी कभी इम्तिहाँ से गुजरी
ये ज़िन्दगी की कश्ती जाने कहाँ-कहाँ से गुजरी  ।

कभी इश्क में जलाए कुछ चराग उन दिलों में
जहां ज़िन्दगी उम्मीदों के दरमियाँ से गुजरी  ।

कभी उनके साथ गुजरी बन के यादगार गुजरी
जो बगैर उनके गुजरी किस इम्तिहाँ से गुजरी ।

कहते हैं लोग दिल को शीशे सा है ये नाज़ुक
गर टूट जाए दिल फिर आवाज़ कहाँ से गुजरी ।

अब चला है 'हर्ष' लेकर सब्र-ओ-करार यूँ अब
ज्यूँ कूचे से उनके अर्थी फिर इस जहां से गुजरी ।


______________हर्ष महाजन ।



बेकसी=लाचारी, बेचारगी

Sunday, June 10, 2012

यूँ न देख तू मुझको इस तरह, कुछ शेर मैं अपने संवार लूं

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यूँ न देख तू  मुझको इस तरह, कुछ शेर मैं अपने संवार लूं
जो भी मिसरे हों सब बहर में, वो ग़ज़ल में सब मैं उतार लूं ।

तू जुदा हुई  मेरे दिल से जब, मेरे शेर भी मुझ से बिछुड़ गए
तू  तो अब भी धड़कन है मेरी , तू कहे मैं उनको संवार लूं   ।

मैं तो बिखरा हूँ फूलों सा अब, किसी उजड़े उजड़े बाग़ सा ,
मैं तो फिर भी खुशबु की तरह, ज़िन्द अपनी तुझपे मैं वार लूं ।

मैं तो भूलकर नहीं भूलता, अहल-ए-वफ़ा का वो सिलसिला
तू बता तेरी क्या अनाँ पे अब, मैं खुद ही खुद को सुधार लूं ।

कुछ दे न ऐसा मिजाज़ मुझे कोई गुनाह का मेरे परवरदिगार
मैं तो इस जहां में किसी तरह कुछ पल ख़ुशी से गुज़ार लूं ।


_____________________हर्ष महाजन ।

Thursday, June 7, 2012

सफ़र भी कठिन और धूप बहुत

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सफ़र भी कठिन और धूप बहुत
हुस्न झुलसे पर उसके रूप बहुत ।

उसके इश्क में शिद्दत बहुत मगर
उसकी चाहत मगर है झूठ बहुत ।

फूलों सा बिखरना मुक़द्दर मगर
उसके जज्बों में मीठा सलूक बहुत।

कुछ मौसम मुझे रास आता नहीं
फिर बगावत के भी उसके रूप बहुत ।

मैं रफाकत से ही उसके परेशान हूँ
पर सियासत भी उसकी मज़बूत बहुत ।


____________हर्ष महाजन ।




रफाकत=दोस्ती 

Wednesday, June 6, 2012

जो पल-पल दिल को छलता रे कुछ ओर नहीं इक चेहरा रे

जो पल-पल दिल को छलता रे कुछ ओर नहीं इक चेहरा रे 
जो शाम-ओ-सहर तडपता रे कुछ ओर नहीं दिल मेरा रे  ।

इक दर्द है रे इन राहों में जहां शूल हैं रे मंजिल मंजिल
किस खोज में शामिल किया मुझे हो गया शाम सवेरा रे ।

जहां फूल खिले गुलशन गुलशन वहाँ रंग इश्क का गहरा रे
जब पत्तजड़ चलती ड़ाल-ड़ाल वहाँ सूखा पत्ता ठहरा रे ।

कितने ही वादे दफ़न हुए यहाँ कितने ही सपने टूटे रे
ऐ दिल तू अब बे-ताब न हो,यहाँ दिल पे ज़ख्म है गहरा रे ।

गर टूटे पत्तों की खातिर हर शाक जो अश्क बहाती रे
तो कसम खुदा की इस जग में न दिखता कोई सहरा रे ।

________________हर्ष महाजन ।

Tuesday, June 5, 2012

कितना ही दर्द-ए-गम छिपा है उसकी जुबां में 'हर्ष'

कितना ही दर्द-ए-गम छिपा है उसकी जुबां में 'हर्ष'
जब भी निकला इक कहर उसकी बातों से निकला ।

____________________हर्ष महाजन ।

मेरी कलम के राजदां हुआ किये जो रोज़



मेरी कलम के राजदां हुआ किये जो रोज़
अबकि खुला दरबार लगाया किये है रोज़ ।

पत्थरों की पूजा नित किया किये जो रोज़
वो आज इश्क खूब सीखाया किये हैं रोज़ ।

सुफिआना गीतों से कभी सजा किये जुबां
मैखाने में शराब पिलाया किये हैं रोज़ ।

मंदिरों के नाम पर चलाया किये तलवार
बे-नागा वो अलख जलाया किये हैं रोज़ ।

पीने के ही ख्याल से लडखडाते थे कभी
बे-वक़्त पी के होश उड़ाया किये हैं रोज़ ।


_________________हर्ष महाजन ।

Monday, June 4, 2012

ज़ख्मों को सीने में लिए फिरता हूँ मैं इस तरह

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ज़ख्मों को सीने में लिए फिरता हूँ मैं इस तरह
तेरी कलम शेरों को लिए फिरती है जिस तरह ।
बेरुखी भरे शब्दों को दरबान बना रखा है मैंने
जो भी तेरे शेरों पे दाद दिया करते हैं जिस तरह ।


___________________हर्ष महाजन ।

मेरे सब ख्वाब चकना चूर कर दो

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मेरे सब ख्वाब चकना चूर कर दो
मर ही जाऊं इतना मजबूर कर दो ।

जा रहा हूँ मगर इल्तजा है तुझ से
सीने से लगा कर मसरूर कर दो ।

लरजते होंटों को रख मेरी पेशानी पे
दिल के अब सारे गम दूर कर दो ।

बन साकी पिला इस तरह आँखों से
बिछडें न कभी इतना मजबूर कर दो ।

रग रग में भर दे अख़लाक़ की ठंडक 
के उठ न सकूं इतना चूर चूर कर दो ।


___________हर्ष महाजन





अख़लाक़=चाहत 

मैंने आज रुख आँधियों का मोड़ दिया

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मैंने आज रुख आँधियों का मोड़ दिया
हादसा हुआ अजीब लिखना छोड़ दिया ।

कितने उठे थे सवाल सभी महफ़िलों में
अपने हाथों सर-ए-बज़्म दिल तोड़ दिया ।

कुछ इस अंदाज़ से उसने खोले मेरे ख़त ,
दुनियां ने उस संग मेरा नाम जोड़ दिया ।

रुखसत हुआ तो बोझ था उसके दिल पर,
दुनिया ने बे-वज़ह ही रिश्ता मरोड़ दिया ।

ऐ गर्दिश-ए-दौरां भला क्या किसी से डरें
हमने प्यार से नफरत का रुख मोड़ दिया ।

_______________हर्ष महाजन ।


गर्दिश-ए-दौरां= मुसीबत का समय

Sunday, June 3, 2012

कोई भी शोहरत जब इन्सां की बदनाम हो जाए

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कोई भी शोहरत जब इन्सां की बदनाम हो जाए
किसी के हक में रखे बात वही इल्जाम हो जाए  ।

मुझे गम ये नहीं ग़ज़लों को मेरी पढता नहीं कोई
मुझे चाहत मगर इतनी कोई सर-ए-आम हो जाए।

तेरी जुल्फों के सदके लिख दिए नगमें बहुत मैंने
मगर हर बार वही कलम यूँ ही नीलाम हो जाए ।

कभी तो चूम ले मुझको मेरे नगमों की खातिर तू
न जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।

मेरी चाहत के बनूँ मैं दीया और तू बने बाती ,
मगर डर है मुझे अब भी न ये नाकाम हो जाए ।


_______________हर्ष महाजन ।



 

हुआ जो तुझ से जुदा तो मुझे अहसास हुआ

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हुआ जो तुझ से जुदा तो मुझे अहसास हुआ
दर्द क्या होता है तनहाई में विश्वास हुआ ।

तुम जो संग थे तो ज़माना भी कदर करता था
मगर जो बिछुड़े तो नादानी का अहसास हुआ ।

सुबह से शाम होती शाम से शब् फिर वो सहर
मरा मैं किस तरह हर पल वो कैसे नास हुआ ।

मुझे तो फूल समझ खुद रहे काँटों की तरह
बचाया दुनिया से अहसास मुझे ख़ास हुआ ।

हरसूं अपनों ने भी अहसासों से आज़ाद किया
ज़हन का खून हुआ जिगर का बनवास हुआ ।


______________हर्ष महाजन ।

तू जो पल भर भी मिले शाम गुज़र जायेगी



तू जो पल भर भी मिले शाम गुज़र जायेगी
गर जो इनकार किया जान निकल जायेगी ।

अश्क गिरते हैं तेरी याद तलक जो आएगी
और इस दर्द से हर शाम निकल जायेगी ।
 
ज़ख्म नासूर बन  इलाज को तरसेंगे यहाँ
बे-वफ़ा खुद ही वफाओं को निगल जायेगी ।
  
इश्क तो तुझ से है अब कैसे इसे दफन करूँ
हुआ मैं तुझ से जुदा जान निकल जायेगी ।   
 
तेरी खामोशी मेरी जान पे बन आती है
कुछ तो बोलो रे 'हर्ष' सांस संभल जायेगी ।

___________हर्ष महाजन ।

Saturday, June 2, 2012

जब से बनी अखियाँ समंदर बता सकूं न छुपा सकूं

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जब से बनी अखियाँ समंदर बता सकूं न छुपा सकूं
फिर हो गया बे-वफ़ा मुक़द्दर बता सकूं न छुपा सकूं ।

कुछ इस तरह बिखरा 'हर्ष' सिमटा सकूं न उठा सकूं
फिर कभी यादों का चिलमन जला सकूं न बुझा सकूं ।

_______________हर्ष महाजन

Friday, June 1, 2012

माना गिद्ध आसमाँ में ऊंचे उड़ने का श्रम रखते हैं

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माना गिद्ध आसमाँ में ऊंचे उड़ने का श्रम रखते हैं
हम भी वो शय हैं साहित्य बदलने का दम रखते हैं ।

क्यूँ कर सुनाऊँ मैं अपने साहित्यिक सफ़र की गाथा
वक़्त जब मांगे तो कहने पर यकदम कदम रखते हैं ।

________________हर्ष महाजन ।