Thursday, July 26, 2012

अब आज के इस दौर में फिर कौन कहाँ यूँ मिलता है

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अब आज के इस दौर में फिर कौन कहाँ यूँ मिलता है
दोस्त मिले तो दोस्त का सुख-दुःख कहाँ यूँ मिलता है |
ये दुनिया बे-रुखी इतनी ये सुख किसी का नहीं पचता
दुश्मन बने इस शहर में इक दोस्त कहाँ यूँ मिलता है |

__________________हर्ष महाजन |

रगों में खून की रफ़्तार मुझे इत्लाह देती है

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रगों में खून की रफ़्तार मुझे इत्लाह देती है
मेरे गुज़रे पलों से इक नया पैगाम आया है |

मेरी रिसती हुई यादों से आँखें झूमती हैं क्यूँ
मेरी नस-नस में उनका यूँ लगे सलाम आया है |

________________हर्ष महाजन

ज़िन्दगी को शिकवों का अब डर नहीं होता

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ज़िन्दगी को शिकवों का अब डर नहीं होता
वफ़ा-ओ-बेवफाई पर कोई असर नहीं होता |
ये दिल आज़ाद है मेरा न रखूं मैं कोई रिश्ता
ज़माने के ग़मों संग मेरा कोई सफ़र नहीं होता |

_________________हर्ष महाजन |


हैरान हुआ लिपट के जब रोने लगा था वो

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हैरान हुआ लिपट के जब रोने लगा था वो
जाते हुए इक रोज़ मुझे भूलने को कहा था |
अल्फास बहुत हैं मोहब्बत ब्यान करने को
ख़ामोशी को समझ प्यार उसे मैंने कहा था |

_______________हर्ष महाजन |

किस तरह मेले में दो शख्स बिछुड़े खड़े थे

किस तरह मेले में दो शख्स बिछुड़े खड़े थे
कड़ी दुपहरी में अनजाने वो सिकुड़े खड़े थे
परेशाँ थे वो नए शहर से सब कुछ नया-नया
नयी पहचान में मिलने को दोनों पिछड़े खड़े थे |

कभी मंदिर पे नज़र थी कभी रिक्शे को वो देखें
कभी अनजान को अपना समझ आँखों में वो देखें
कोई अपना सा लगता था कोई बेगाना था बिलकुल
कभी अपनों की खातिर बेगानों को अपना समझ देखें |

मिला सकूं था उसको जो दूर से आवाज़ थी आयी
मिलीं नज़रें जो राही से नज़रें खिलती चलीं आयीं
वो दोनों इस तरह मिले ज्यूँ बेगाने थे कभी न वो
मगर फिर दोस्ती तारीख़ बन खुद ही चली आयी

____________________हर्ष महाजन



Wednesday, July 25, 2012

न खा कसमें यकीनन मुझको राही भूल जाएगा

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न खा कसमें यकीनन मुझको राही भूल जाएगा
वफ़ा भी छोड़ कर यहाँ सभी तू असूल जाएगा |

बहुत देखे हैं तेरे जैसे जो इन रिश्तों पे जिंदा है
मगर टूटेंगी जब साँसें ये रिश्ता झूल जाएगा |


_______________हर्ष महाजन

दस्तूर-ए-वफ़ा कहुं या कुछ मजबूरियां कहुं

दस्तूर-ए-वफ़ा कहुं या कुछ मजबूरियां कहुं
चाहत में उनकी हम तो अब पूरे बदल गए
असूल-ए-ज़माना भी हमें अब  रोक न सका
हम नहीं ज़माने के सब असूल बदल गए |

________________हर्ष महाजन

जो वस्तु बे-वज़ह आवाज़ कर जिया करती है

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जो वस्तु बे-वज़ह आवाज़ कर जिया करती है 

  उसे कायनात भी बे-आवाज़ कर दिया करती है |
जिसे गुमां है इतना कि खुदा को खुदा न समझे 
खुदाई कलम उसकी बे-अल्फास कर दिया करती है ।

_____________________हर्ष महाजन |



 Jo vastu be-wazeh aawaaz kar jiya karti hai
usey kaayaat bhi be-aaaz kar diya karti hai
jise guma hai itna ki khuda ko khuda na samjhe
khudayi ,kalam uski be-alfas kar diya karti hai 



_____________________Haras
h Mahajan

Tuesday, July 24, 2012

उम्र भर मेरी वफाओं का सौदा ही तो हुआ है

उम्र भर मेरी वफाओं का सौदा ही तो हुआ है 
कैसे बताऊँ दोस्त वो सब अब जहां-जहां है |

तेरा हर जज्बा मेरे दिल में घर किये हुए है
मुद्दत हो गयी बिछुड़े पर वो अब भी जवाँ है |

तेरी हर ख्वाईश मेरी किताबों में यूँ दर्ज है
जिस तरह गुलाब की शाक पे काँटा जहां है |

तेरी हर सांस आज भी महसूस कर सकता हूँ
ये हुनर  तो आज भी मेरी रगों में रवां  है |

कैसे कहुं तुझे ऐतबार की मण्डी मैं ही तो हूँ
मालूम है तुझे वो सब मेरे दिल में कहाँ है |

______________हर्ष महाजन |









सूखे पत्ते भी आजकल हवाओं में उड़ने लगे

सूखे पत्ते भी आजकल हवाओं में उड़ने लगे हैं 
शायर जो इनको अपने शेरों में पढने लगे हैं |

ज़मीं पर सरकार अब इन्हें रहने नहीं देती
तो कुछ शेरों में और कुछ ढेरों में सड़ने लगे हैं  |

सूखे पत्ते सी ज़िन्दगी जब भी कोई कहता है
शर्मसार हो ये सब अपने में ही सिकुड़ने लगे हैं  |

ज़मीं को छोड़ कर हवाओं में उड़ने की चाहत
ले डूबी जो ये पत्ते आपस में बिछुड़ने लगे हैं |

कितना ढाते हैं कहर जब इन्हें ज़लाता है कोई
तो ज़हर बन ये पत्ते हवाओं में उतरने  लगे हैं |


________________हर्ष महाजन |










परेशान हूँ अहसासों में ईमान देख कर

परेशान हूँ अहसासों में ईमान देख कर
आजकल ग़ज़लों का अंजाम देख कर
शेरों में रंग वो नहीं ग़ज़लों में हो जो अब
क्या कहूं ग़ज़लों का रस तमाम देख कर |

__________हर्ष महाजन

Thursday, July 19, 2012

जब से तेरे अश्क बहे मैंने तो लिखना छोड़ दिया

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जब से तेरे अश्क बहे मैंने तो लिखना छोड़ दिया
ये कलम कुछ और कहे मैंने तो लिखना छोड़ दिया ।

तोड़ दिए रिश्ते कलम से अहसास जिंदा हैं अभी
ज़ुल्म क्यूँ कोई रुख करे मैंने तो लिखना छोड़ दिया ।

काश कोई गिरेबां में अपनी झांक कर देखा करे
बिक रहा ईमान यहाँ मैंने तो लिखना छोड़ दिया ।

गद्दारों का और जफा का नाम शोहरत में लिखा            
सच्चाई दब गयी यहाँ मैंने तो लिखना छोड़ दिया ।

दुनिया की इस दौड़ में देखो खुद्दारी कहीं लुप्त हुई
मुस्कुराना भूले सब मैंने तो लिखना छोड़ दिया ।


__________________हर्ष महाजन  

Tuesday, July 17, 2012

जीते जी इस ज़िन्दगी में दीया उसने जला दिया

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जीते जी इस ज़िन्दगी में दीया उसने जला दिया
इस तरह यूँ मौत का पैगाम मुझको सुना दिया ।

बरसात में भेजे खतों की कश्तियाँ चलने लगीं
इस तरह यादों से मुझको ज़र्रा-ज़र्रा मिटा दिया ।

बे-रुखी दिल से जुबां तक राज़ जब करने लगी,
वो शख्स आया धीरे से जलता दीया बुझा दिया।

खाईं थीं कसमें वफ़ा की जान देने लेने की
उन वादों को उस ग़मज़दा ने किस तरह भुला दिया ।

आखिरी इक फूल सूखा किताब से था चुरा लिया
यूँ लगा था मज़ार पर मुझे जिंदा ही सुला दिया ।

___________________हर्ष महाजन ।

उम्र भर हुस्न को चाँद सा कहा जिसने

उम्र भर हुस्न को चाँद सा कहा जिसने
नैय्या रात भर उसकी डगमगाती रही ।

________________हर्ष महाजन ।

Monday, July 16, 2012

इतना पछताए बज़्म में करार सब जाता रहा

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इतना पछताया  बज़्म में करार सब जाता रहा
बदनाम हुआ वो इस तरह प्यार सब जाता रहा

कितना रहा नादाँ वो छल को प्यार कहता रहा
खुदगर्ज़ देखे अपने जब किरदार सब जाता रहा ।

सख्त जाँ था शख्स वो शिकवे-गिलों में डूब गया
दर्ज़ा था इज्जत-शान का बेशुमार सब जाता रहा ।

हादसे होते रहे और दामन-ए-सब्र बढ़ता गया
बेहतरी की उम्मीद में इंतज़ार सब जाता रहा ।

ज़ख्म दिए औलाद ने कुछ पत्थरों की चाह में
इक उम्र से खुदा पे था ऐतबार सब जाता रहा ।


______________हर्ष महाजन ।

Sunday, July 15, 2012

ऐ खुदा उस शख्स को कुछ तौफीक देना

ऐ खुदा उस शख्स को कुछ तौफीक देना
जीत हासिल हो उसे मगर तहजीब देना ।

घात-प्रतिघात का सिलसिला बदल देना यूँ
शांत कर देना चित फिर रिश्ता करीब देना ।

आफत में जो कुछ भी गुज़र रहा है उस पर
इल्तजा है उस मुहीम पर रख सलीब देना ।

बहुत चाहता हूँ उसे मगर इम्तिहाँ कैसे दूं
उसके दामन में ऐ खुदा कोई तरकीब देना ।

गर बिछी है बिसात कोई मजलूम के लिए
मात हो दुश्मन की ऐसा उसे नसीब देना ।


___________हर्ष महाजन ।

मेरी कलम पर उन्हें क्यूँ दर्द होने लगा

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मेरी कलम पर उन्हें क्यूँ  दर्द होने लगा,
हुनर उनकी कलम का लगे है सोने लगा ।

कितना गरूर आ गया है इन्सां को खुद पर
बाकी सब तुच्छ और खुद गुरु होने लगा ।

प्यार के बदले गर दिल में इर्षा भर लें तो
समझो वो खुद नफरत के बीज बोने लगा ।

माना के शेर कभी यूँ भी गरजता है
डर होता है उसे कि वो अस्तित्व खोने लगा ।

कहाँ ले आयी है किस्मत मुझे ऐ 'हर्ष'
टूट चुका है दिल, मन बेज़ार हो रोने लगा ।

________________हर्ष महाजन ।

Thursday, July 12, 2012

जब भी मिलते हैं तो अहसास रवां होते हैं

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जब भी मिलते हैं तो अहसास रवां होते हैं
दिल में खुशियाँ भी हैं गम साथ बयाँ होते हैं ।

दिल है बेताब सुनाने को रुदादें अपनीं,
ऐसे हालात भी आँखों में अयाँ होते हैं ।

उसने चाहा तो ये दिल है कि माना ही नहीं
दिल के हालात भी इकसार कहाँ होते हैं ।

उसकी यादों की कतारों ने न छोड़ा जब भी
होंठ सिल जाते हैं पर अश्क जुबां होते हैं ।

टूट जाएगा ये दिल शीशे सा नाज़ुक है 'हर्ष'
बे-वज़ह इश्क के चर्चे भी जहां होते हैं

___________हर्ष महाजन ।

Wednesday, July 11, 2012

ये कैसा कारोबार है ये कैसा कारोबार

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ये कैसा कारोबार है ये कैसा कारोबार
इश्क में नाकाम हो के रोये बार-बार ।

फूल क्यूँ खिलता नहीं मुद्दत से इंतज़ार
आस्तीनों में रखे न जाने कब से खार ।

हमें भी था ये शौक इश्क का भी लें खुमार
न जाने देखा दिल में लाखों गम के गुबार ।

फरेब है ये इश्क और इसका ये इंतज़ार,
किस पे हो इख्तियार, करें किस पे ऐतबार ।

दुश्मनों के हाथों में फूलों का गर है हार,
तो देखना 'हर्ष' कहीं न चल पड़े कटार ।

___________हर्ष महाजन

Friday, July 6, 2012

मुझ संग बीता सब हिसाब रखता हूँ





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मुझ संग बीता सब हिसाब रखता हूँ
जुबां से चुप दिल में किताब रखता हूँ ।

इक-इक लम्हा आँखों में दर्ज है यूँ ,
अपने इशारों में सब जवाब रखता हूँ ।

किस तरह मिटाएगा कोई शैतां मुझको,
रूहानियत का इतना सबाब रखता हूँ ।

हिकारत से न देखे कोई मुझे इस तरह
अपनी शक्सिअत का ऐसा रुआब रखता हूँ ।

खुदा की रहे नैमत मुझ पर ऐ 'हर्ष'
सो अपनी सोच को नायाब रखता हूँ ।

____________हर्ष महाजन ।

मेरे फन की खिड़की अब खुलने लगीं रे

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मेरे फन की खिड़की अब खुलने लगीं रे
चादर मैली ज़हन में अब धुलने लगी रे ।

जब से छोड़ा माँ ने चोला दिल न माने रे
बेटी घर में मिश्री सी अब घुलने लगी रे ।

गुजरी ऐसी बातें दिल को कैसे समझाएं
पापा की सब बातें इक-इक तुलने लगीं रे ।

ताश के पत्तों सा सब कुछ बिखर गया रे
इक-इक कर जब बातें सारी खुलने लगी रे ।

तेरे बिना ये ज़िन्द माँ अज़ाब लगे लेकिन
सूरत तेरी फलक पर अब खिलने लगी रे ।

_____________हर्ष महाजन ।

Thursday, July 5, 2012

शख्स बे-जुबां वो था पर बोलता बहुत था

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शख्स बे-जुबां तो था पर बोलता बहुत था
इशारों में राज सब वो खोलता बहुत था ।

अबला की आन पे वो हर पल मिटे किया
कोई कुछ कहे तो फिर वो तोलता बहुत था ।

इश्क था मुझी से पर वो डरता बहुत था
राजों पर पर्दा दे के टटोलता बहुत था ।

नींदों में आके जब वो टहलता बहुत था
सुबहो जो आँख खुले दिल खोलता बहुत था ।

मेरे ग़मगीन चित से परेशाँ बहुत मगर
मेरी गलियों में पर वो डोलता बहुत था ।

___________हर्ष महाजन ।

Wednesday, July 4, 2012

कुछ इस तरह मौसम का अंदाज़ बना डाला

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कुछ इस तरह मौसम का अंदाज़ बना डाला
खुश गवार मोहबत को अवसान बना डाला
कुदरत ने दिए रंज-ओ-गम कुछ इस तरह
वफ़ा के जज्बे को 'हर्ष' अहसान बना डाला ।

_________________हर्ष महाजन

Tuesday, July 3, 2012

कुछ पल ही सही वो अपने हाथों में इक लकीर सजा बैठे

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उम्र भर के लिए वो शख्स हाथों में इक लकीर सजा बैठा 
चंद सिक्कों की खातिर अपनी इज्जत-ओ-शान गँवा बैठे ।

______________________हर्ष महाजन ।

माँ __इक याद __बस इक याद

माँ __इक याद __बस इक याद

आज फिर मैं घर देर से आया,
खुद को मैंने,
कुछ बोझल सा कुछ उदास सा पाया ।
नहीं पुछा किसी ने
कहाँ था ? क्यूँ देर से आया ?
साँसे उखड़ी-उखड़ी सी ,
माँ का साया फिर नजर आया ।
फिर ज़हन में ज्वार उठा
शायद
यादों का समंदर
फिर जाग उठा ।

कैसे भूलूँ !!
वो जज़्बात
माँ की दबी दबी सी आवाज़ ।
आज भी
ज़हन में उबलती हैं ।

बेटा घर जल्दी आ जाया कर
जब तक जिंदा हूँ ।
मैं हँसता था -------
माँ यूँ ही चिंता न किया करो
खामख्वाह परेशान करती हो
और खुद भी परेशान होती हो ।
कहीं और ध्यान लगाया करो
वो मुस्कराती और कहती
बेटा माँ हूँ न ।
डर लगता है
ये दुनिया बहुत खराब है ।
मैं अकेला था
तन्हा नहीं था ।

आज अकेला हूँ
तन्हा भी हूँ ।
वैसा इंतज़ार कौन करेगा
कौन समझेगा ।
माँ चली गयी ।

याद करता हूँ
और
इल्तजा करता हूँ
तुम ठीक कहती थी
दुनिया बनावटी है
जालिम है ।
मैं गलत था
फिर कभी
देर से नहीं आऊँगा ।
जैसा कहोगी वही करूंगा ।

इक बार सिर्फ इक बार
आजाओ
वापिस आ जाओ ।
माँ !!


हर्ष महाजन

Monday, July 2, 2012

तुम मिले तो यूँ लगा कितना तन्हा था मैं ।

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कितना खुश था औ कितना मेहरबाँ था मैं
तुम मिले तो यूँ लगा कितना तन्हा था मैं ।

तेरी याद अक्सर बेताब किया करती थी
आज महसूस हुआ कितना परिशाँ था मैं ।

मैंने मानी ही नहीं बात कभी इस दिल क़ी
देख हालात तेरे कितना पशेमाँ था मैं ।

तेरी राहों में कभी फुरकत के अँधेरे छाये
मुझको सब याद है कितना मेहरबाँ था मैं ।

तेरी खामोश निगाहों ने सदा दी थी कभी
ये भी न समझे कभी कितना नादाँ था मैं ।

_____________हर्ष महाजन ।

कितना खुश था औ कितना मेहरबाँ था मैं

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कितना खुश था औ कितना मेहरबाँ था मैं
तुम मिले तो यूँ लगा कितना तन्हा था मैं ।

_____________हर्ष महाजन ।