Tuesday, October 30, 2012

आज मैंने क्रोध से सब ख़ाक कर दिया

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आज मैंने क्रोध से सब ख़ाक कर दिया,
खुदा ने अपने रहम से सब माफ़ कर दिया |

पल में मेरे वजूद के कुछ पल छलक गए
ऍफ़ भी पे मैंने खुद को आज साफ़ कर दिया |

जो भी मिला है मुझको दोस्तों में अब तलक,
उन सब से हाथ जोड़ अब सलाम कर दिया |

बहुत किये हैं ज़ुल्म अब थकी कलम मेरी,
ये आखिरी अहसास कलम से काम कर गया |

कुछ और पल हैं अपने संग चलो गम गलत करें
बीते पलों को शीशे में फिर जाम कर दिया |

अब न पूछिए ये सब कहाँ और कैसे क्या हुआ,
ऍफ़ भी पे सुबह शाम को सलाम कर दिया |

_________________हर्ष महाजन

इस कदर यूँ दर्द मेरा आसान कर दिया

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इस कदर यूँ दर्द मेरा.........आसान कर दिया ,
पर रख लबो पे लब मुझे बदनाम कर दिया |

इन धडकनों में हम जिन्हें थे खुद सुना किये,
पर्दा नशीं था इश्क वो सर-ए-आम कर दिया
|

ये किस तरह की सहर जो दिल तड़पने लगा,

खिला हुआ था  बाग़  कब्रिस्तान कर दिया |

किरदार उसका आज........मेरा नाम ले गया,
शायर था मैं मशहूर पर गुमनाम कर दिया |

इक वक़्त था ये ज़िंदगी तो थी हसीं मगर ,

ज़ुल्म-ओ-सितम ने आज बे-जुबान कर दिया |


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हर्ष महाजन

Monday, October 29, 2012

समंदर से दूर रह कर भी उसने लहरों का मुख मोड़ा है

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समंदर से दूर रह कर भी उसने लहरों का मुख मोड़ा है,
कितना बे-रहम निकला उसने टूटा दिल फिर से तोडा है |
कैसे रुकेगा दर्द-ए-चश्म उसका दरिया जहां रुका ही नहीं,
कितनी ही रूहों का दामन, उसने नापाक कर छोड़ा है |

_______________________हर्ष महाजन

Saturday, October 27, 2012

कितना दर्द होता है कब्र पर आने वालों को

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कितना दर्द होता है कब्र पर आने वालों को
उसके वो ज़ख्म उन्हें आंसू पीने नहीं देते |

______________हर्ष महाजन

मेरी ईद मुबारक तुम ले लो सनम,

ईद के इस त्योहार पर सभी दोस्तों को ईद-मुबारक,,ईद-मुबारक,ईद-मुबारक
आओ सभी इस मौके पर इक गीत गुनगुनाएं..............

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मेरी ईद मुबारक तुम ले लो सनम,

फिर ये चंदा फलक से उतर जाएगा |
ये तो अम्नों अमां का है मेला यहाँ,
जल्द मिल लें नहीं तो बिखर जाएगा |
मेरी ईद मुबारक ...................

रंजिश भी रहे न रहे रंज-ओ-गम

ये खिजाँ सा चमन था वो खिल जाएगा |
कोई ज़ुल्म-ओ-सितम की फिकर न करो
ये जो बिछड़ा था अल्लाह अब मिल जाएगा |
मेरी ईद मुबारक ...................

अब मिटा दो ये नफरत के शोले सभी,

नहीं तो दिल का गुलिस्ताँ उजड़ जाएगा |
ये तो अम्नों अमां की ये ईद है आज,
आओ मिसाल-ए-मुहब्बत निकल जाएगा |
मेरी ईद मुबारक ...................

_________________हर्ष महाजन

Thursday, October 25, 2012

कितने ही जर्क खाएं हैं तुझे पाने के लिए 'हर्ष'

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कितने ही जर्क खाएं हैं तुझे पाने के लिए 'हर्ष',
मगर हुई इंतिहा आज मुझे आजमाने के लिए |

____________________हर्ष महाजन

Wednesday, October 24, 2012

रावण आजकल सोसायीटियों में भी पनपने लगे हैं

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रावण आजकल सोसायीटियों में भी पनपने लगे हैं,
शायद इसीलिए 'राम' जगह-जगह धमकने लगे हैं |
छुप-छुप कर करते हैं वार पर शून्य में बदल जाते हैं
क्यूंकि विभीषण भी अब घर-घर में टपकने लगे हैं |

_____________________हर्ष महाजन |

'हर्ष' भी आजकल खूबसूरती में फंसने लगा है

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'हर्ष' भी आजकल खूबसूरती में फंसने लगा है,
कुछ नगीने हैं पुराने उन्हें देख हंसने लगा है |
कुछ तो होगी वज़ह जो तन्हा दिल बदल गया,
खुदा की इबादत है जिसमें वो धंसने लगा है |


________________हर्ष महाजन

ऐ चाँद तू उसे इतना कहना यहाँ भी इक दिल धड़कता है

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ऐ चाँद तू उसे इतना कहना यहाँ भी इक दिल धड़कता है,
तू तो बस्ता है दूर इतना यहाँ पे आँखों से लहू बरसता है |

ऐ चाँद तू उसे इतना कहना क्यूँ उदास है गैरों में हंस कर,
बरसों पहले छोड़ा जिसे वो अब भी तेरे आस-पास बस्ता है |

ऐ चाँद तू उसे इतना कहना क्यूँ राज़ करता है किसी दिल पर
जब तू गुज़रता है किसी दर्द से वो पलपल मुझसे वाबस्ता  है |

ऐ चाँद तू उसे इतना कहना हमें तुमसे कोई भी शिकायत नहीं,
कुछ गलतफहमियां हैं जिसमें बगावत का अहसास सलता है|

ऐ चाँद तू उसे इतना कहना क्यूँ आया था वो मैदान-ए-इश्क में,
मैं अब तलक घायल हूँ दिल पे वो ज़ख्म अभी तक खलता है |

____________________हर्ष महाजन

उजाले अपनी यादों के दिल के किसी कोने में रह लेने दो

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उजाले अपनी यादों के दिल के किसी कोने में रह लेने दो,
न जाने किस वक़्त वो टीस दे दे, उन्हें यूँ ही बह लेने दो |


दुश्मन तो बहुत हैं ज़माने में ओ जमकर दुश्मनी भी करेंगे
मगर उसे करो तो यूँ करो कि दोस्ती की गुंजाइश रह लेने दो |

_______________हर्ष महाजन

Saturday, October 20, 2012

मेरे अश्कों की कदर अब यहाँ कहाँ

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मेरे अश्कों की कदर अब यहाँ कहाँ,
जो गिरें जाने यहाँ अब कहाँ कहाँ |

हम वफ़ा करके भी तनहा हैं खड़े,
कैसे रुक पाएगी अब ये जुबां कहाँ |

मेरी साँसें हैं सफ़र पर अब तलक
ज़िंदगी अपनी मगर अब जवां कहाँ |

क़ैद थे आंसू जो खुद बहने लगे,
काला-काला उठ रहा अब धुआँ कहाँ |

तेरी उल्फत मुझको तडपाये यहाँ
मुझको लगता प्यार मेरा रवाँ कहाँ |

___________हर्ष महाजन

Tuesday, October 16, 2012

शायरी को इस कदर न यूँ महीन कीजिये

एक इल्तजा सभी शायरों और शायराओं से ......
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शायरी को इस कदर न यूँ महीन कीजिये
अपने कहे शेरों की यूँ न तौहीन कीजिये |
शब्द ज़हन से निकलें जो खुदा के देन है
स्लेंग में नहीं शब्दों में पूरा ज़मीन कीजिये |

________________हर्ष महाजन |

मेरी रग-रग में तेरा हुस्न बसा मेरी ग़ज़ल का तड़का जगह-जगह

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मेरी रग-रग में तेरा हुस्न बसा मेरी ग़ज़ल का तड़का जगह-जगह,
कायनात भी रख दूं सदके तेरे , तेरे हुस्न का चर्चा जगह-जगह ।

मेरा दिल भी निभाये रस्म-ए-वफ़ा, तेरे शिकवे मैं कर दूँ रफा दफा
तेरा चेहरा खुदा भी न पढ़ पाए, मैंने कर दिया पर्दा जगह-जगह |

मेरे दर्द-ए-दिल की दवा है तू , मेरी खुदा से मांगी दुआ है तू ,
मैंने कूच किया रस्मो से सदा, फिर किया है हर्जा जगह-जगह |

तेरे इश्क की खातिर शेर कहे, मेरी गजलों में फिर वो उतर गए,
दुनिया ने भर-भर तंज़ दिए, मेरा गिर गया दर्ज़ा जगह-जगह |

जो वक़्त अभी तक संग गुज़रा, है गुमाँ मुझे इक ख्वाब लगा,
जब हस्ती ये तेरे नाम हुई, फिर झूमा है 'हर्षा' जगह-जगह |


________________________________हर्ष महाजन ।

किसने दिए हैं ये दर्द इतने

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किसने दिए हैं ये दर्द इतने,
शख्स निकले वो कम-ज़र्द जितने|
जब-जब ये अश्क उतरें पलक से
रुखसार भी होंगे अब ज़र्द उतने |

_______हर्ष महाजन

उसके अंदाज़-ए-बयाँ से परेशाँ हुआ जाता हूँ

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उसके अंदाज़-ए-बयाँ से परेशाँ हुआ जाता हूँ ,
वो बहुत करीब हैं मेरे पर हैराँ हुआ जाता हूँ |
इश्क निभाते हैं मुझसे पर कहते कुछ नहीं
मैं बहारों में हूँ मगर खिजाँ हुआ जाता हूँ |

_________________हर्ष महाजन

Saturday, October 13, 2012

मुहब्बत को इस तरह न तारी होने देना दिल पर


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मुहब्बत को यूँ  न तारी होने देना अपने दिल पर  
मेरे प्यार का पौधा भी शज़र होने लगा है अब ||

___________हर्ष महाजन

कितने ज़ख्म आँखों की सियाही पढेंगे

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कितने ज़ख्म आँखों की सियाही पढेंगे
कितने दहशतगर्द आ आ तबाही करेंगे |
इन्तहा-ए-ज़ुल्म किस किस को ले डूबेगी,
ऐ खुदा ! मासूम कब तक ये त्राही ज़रेंगे |

_____________हर्ष महाजन

ज़िंदगी को इस कदर बदनाम न कीजिये

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ज़िंदगी को इस कदर बदनाम न कीजिये,
दिलदार हो तो इस्पे यूँ इल्जाम न दीजिये |
वफ़ा करोगे प्यार में बस वफ़ा ही पाओगे,
गर न भी हो यकीं मगर इंतकाम न लीजिये |

_______________हर्ष महाजन

आज मुझे कुछ नए खिलौने बनाने हैं

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आज मुझे कुछ नए खिलौने बनाने हैं,
जिनमें छिपे कुछ राज़ घिनौने हटाने हैं |
आज़ाद भगत सुखदेव कभी न आयेंगे,
उठाओ उन्हें, अवतार जिन्होंने जगाने हैं |

______________हर्ष महाजन

जब-जब उठे अहसास, कलम तिलमिलायी है

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जब-जब उठे अहसास, कलम तिलमिलायी है
पिरो दिया लफ़्ज़ों में फिर इक गज़ल बनायी है |
छूट गए रिश्ते सभी अब उठते नए रिवाजों में
ग़ज़ल में अब मिजाज़ कहाँ दर्दों की शहनायी है |

__________________हर्ष महाजन

Friday, October 12, 2012

कोई तो रोया उम्र भर ख़ुशी की चाहत में


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कोई तो रोया उम्र भर ख़ुशी की चाहत में ,
कोई रोया ख़ुशी मिली दुखों की राहत में |

ये सिलसिला अजीब रोये कोई भरोसे को,
कोई रोया किसी पे ऐतबार की आदत में |

कोई मिला खुदा से खुद खुदा मिटाने को,
कोई मिला गुज़ार दी ता-उम्र इबादत में |

कोई तलाश-ए-इश्क-ए-ज़िंदगी सवालों में,
कोई करे न इंतज़ार किसी इज़ाज़त में |

कोई किरदार खता में भी वफ़ा निभाता है,
कोई बिता गया ता-उम्र यूँ शिकायत में |

_________________हर्ष महाजन

Wednesday, October 10, 2012

ये दुआ है कि खुदा से तुझे कोई गम ही न हो

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ये दुआ है कि खुदा से तुझे कोई गम ही न हो 
हों तुझे खुशियाँ हजारों चाहे वहाँ हम ही न हों |

लिखा कलाम आज खूब तेरे जनम-दिन पर,
ग़ज़ल में रक्खे नहीं शेर जिनमें दम ही न हो |

तुम्ही हो फूल वो गुलशन में महका करता है,
मेरी दुआ है कोई खार अब तेरे संग ही न हो |

जन्म-दिन तेरा पर फ़रिश्ते भी फख्र करते हैं ,
मेरी नजर उड़ा दूं उसको जिसके ख़म ही न हो |

फलक पे चाँद भी झूमे है बन के साकी पर 
कहे वो बज़्म क्या शामिल जहां पे रम ही न हो |



_____________हर्ष महाजन

मैं हूँ वो अश्के खुदा आँखों में बसर रखता हूँ

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मैं हूँ वो अश्के खुदा आँखों में बसर रखता हूँ,
दामन में गम या ख़ुशी सबकी खबर रखता हूँ |

जब भी आँखों से मैं सैलाब बन निकलता हूँ ,
रूठी तकदीरें बदलने का असर रखता हूँ |

जब भी ज़ख्मों को वफाओं से सकूं मिलता है,
कुछ असर अपना भी आँखों में मगर रखता हूँ |

मैं हूँ नींदों से जुदा ज़ख्मी जिगर रखता हूँ ,
गम-ओ-खुशी खुद की नहीं मैं तो सफ़र रखता हूँ |

जब भी ज़ख्मों से जुदा हो पलक से गिरता हूँ ,
फ़ना भी होके मगर आँखों में गुज़र रखता हूँ |

____________________हर्ष महाजन

Tuesday, October 9, 2012

मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं

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मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं,
पहले देते हैं ज़हर फिर वो दवा देते हैं |

खौफ़ दुनिया का उन्हें इश्क खता कहते हैं,
करके शोला ये बदन फिर क्यूँ हवा देते हैं |

इश्क करते हैं मगर सहर असर होने तक,
पहले देते हैं ज़ख्म फिर क्यूँ दुआ देते हैं |

बे-वफ़ा है वो मगर दिल है कि मानेगा नहीं,
उनके इंतखाब ये ज़ख्मों को हरा देते हैं |


अब तो कहता है 'हर्ष' खुद तू बगावत कर ले,
लोग यूँ ज़िन्द का दीया खुद ही बुझा देते हैं |


_______________हर्ष महाजन

Monday, October 8, 2012

हमने चाहा था ये इल्जाम न तेरे सर आये

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हमने चाहा था ये इल्जाम न तेरे सर आये,
गुनाह जो हमने किया वो न तेरे पर आये |

कली जो बाग़ में भी फूल कभी न बन पायी,
हुआ ताज्जुब मुझे जो माली ले के घर आये | 

ग़मों के दौर में खुशियों से आँखें भर आयीं,
मगर ज़रूरी नहीं ये अश्क रो-रो कर आये |

मेरी तकदीर लिख खुदा भी जो पलट जाए,
खता थी क्या ज़मीं पे खुद खुदा उतर आये |

मरे जो हूर तो बने है ताजमहल उनका,
कफन मिले न आशिकों को गर उमर आये |


_________________हर्ष महाजन

Sunday, October 7, 2012

ज़िंदगी की ये सच्चाई कोई समझेगा नहीं

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ज़िंदगी की ये सच्चाई कोई समझेगा नहीं ,
जब तलक पाये न खुदा को समझेगा नहीं |
यहाँ अपनी ही तमन्नाएं उस पर काबिज हैं,
जब तलक गुजरे न खुद पे वो समझेगा नहीं |

इतना अहसान किया खुद खुदा ने सब पे यूँ ,
खुद आये दिया नाम पर कोई समझेगा नहीं |
इतनी आसान दी तरकीब खुदा को पाने की ,
पर ये मन है कि समझाने पे समझेगा नहीं |

अब कितना भी करो विलाप दुनिया के आगे,
अब खुदा भी बिन मेहनत अब समझेगा नहीं |
कुछ दें वक़्त खुदा को अपनी ज़िन्द के वास्ते,
गर यूँ हि करें पर्यास खुदा भि समझेगा नहीं |

_______________हर्ष महाजन

Saturday, October 6, 2012

घर की यादें एलान कर दीं

अमेरिका से वापिसी का इक लम्बा सफ़र .............
गम-ओ-खुशी का सफ़र मुबारक हो मोनिका महाजन अरोड़ा और कंवलजीत अरोड़ा जी |
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घर की यादें एलान कर दीं,
रिश्तों में तूने जान भर दी |

भईया की उल्फत में दम था
पापा की आज आँखें नम थीं |

हवेली तूने आबाद कर दी ,
नए गीतों की इरशाद कर दी |

मम्मी के अरमानों पे तुमने
कसम से इक अहसान कर दी |

तेरी खुशी अब शहर-शहर में
सबने मिल के एलान कर दी |

'हर्ष' के दिल से बा-दम इबारत
ज़मीन-ए-हिंद पे कदम मुबारक |

गम उनका है जो छोड़ आये वहाँ पर
कुछ तो गलियाँ वीरान कर दीं |

घर की यादें एलान कर दीं,
रिश्तों में तूने जान भर दी |

__________हर्ष महाजन |

थी बहारों की ये मजिल पर खिज़ाओं का सफ़र

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थी बहारों की ये मजिल पर खिज़ाओं का सफ़र,
बड़ी मुश्किल से है काटा इन सजाओं का सफ़र |

तेरे गम से मेरे गम का भी सफ़र बाक़ी है,
ये न भूलो ये रकीबों की खताओं का सफ़र |

जुनून-ए-इश्क में गाफिल संग पैरों का सफ़र,
ये तो मुमकिन नहीं भूलेंगे वफाओं का सफ़र |

खुदा ने पैदा किया तब से खिजाँ से रिश्ता है,
अब तो भाता नहीं मुझको फिजाओं का सफ़र |

मेरी तो ज़िंदगी भी दर्द, मसीहा भी है दर्द,
कोई ख़्वाबों में न कर ले दुआओं का सफ़र |

_______________हर्ष महाजन

मैं तो वाकिफ हूँ गम-ए-हिज्र से बताऊँ कैसे

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मैं तो वाकिफ हूँ गम-ए-हिज्र से बताऊँ कैसे,
वो तो खुश हैं उन्हें गम ये मैं सुनाऊँ कैसे |

उनकी हरक़त ने किये दिल के हजारों टुकड़े,
कोई बता दो इन्हें दामन में सजाऊँ कैसे |

तन्हा रातों में तसव्वुर से जुदा कैसे करूँ
जो जुदा मुझसे मुक़द्दर मैं बनाऊं कैसे |

वो तो धडके हैं मेरे दिल में हर पल यारब
जो दीया दिल में जला कब्र पे जलाऊँ कैसे |

मेरे हाथों से लकीरों का किया तुमने गबन,
इनको चेहरे पे सजाओं सा दिखाऊँ कैसे |

उनकी यादों का ये आलम कि नीदें भी सज़ा
अपनी आँखों को मैं रातों में जगाऊँ कैसे |

_______________हर्ष महाजन

Friday, October 5, 2012

मैं खुली हुई किताब हूँ

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मैं खुली हुई किताब हूँ,
नफरत में आफताब हूँ |
गर बोलता नहीं हूँ मैं ,
पर सब्र का माहताब हूँ |

साँसों की डोर कब तलक,
जब तक रिश्तों की ताब हूँ |
चलता है कौन उम्र-भर ,
मैं फिर तिलस्मी ख्वाब हूँ |

उनकी जुबां में दर्द था,
मैं खुद भी इंतेखाब हूँ |
जो टूट गया वो दिल था
मैं उसका ही जवाब हूँ |

आँखों में उतरे ख्वाब यूँ, 
देखें मुझे ज्युं नवाब हूँ |
उल्फत से भागता फिरूँ,
वो कहे कि तेरा शबाब हूँ |

पलकों से गिरती बूंदों में,
ज़ख्मों का इक हिसाब हूँ|
मैं खुद नशा नसीब का ,
साकी भी खुद शराब हूँ |

______हर्ष महाजन

Thursday, October 4, 2012

कभी नगमों में मुझे उसने पुकारा होगा

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कभी नगमों में मुझे उसने पुकारा होगा,
कभी माटी पर मेरा नाम उकारा होगा |

बे-वफ़ा होके भी जो फूल गिरह में बाँधा,
बड़ी मुश्किल से मुझे दिल से उतारा होगा |

उसकी आँखों में निहाँ संग-संग बीता सफ़र
ऐसे हालातों में अब कैसे किनारा होगा |

दर्द महसूस करे ऐसा हुनर है उसमे
उसके दिल में मेरी तल्खी का पिटारा होगा |

कितना अब शोर हवाओं में मगर 'हर्ष' कहाँ
उसने शायद अपनी मैयत से पुकारा होगा |

___________हर्ष महाजन |

Monday, October 1, 2012

हैं कहाँ-कहाँ शुमार ये गम आज देखते हैं

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हैं कहाँ-कहाँ शुमार ये गम आज देखते हैं,
दिल में कहाँ-कहाँ है ज़ख्म आज देखते हैं |
बिखरे से गेसुओं की महक भूला नहीं मगर,
कितने बचे हैं जुल्फों में ख़म आज देखते हैं |

मुर्दों सी ज़िंदगी को लिए घूमा किये हैं हम,
कैसे इसे जगाओगे तुम आज देखते हैं |

मुद्दत से पढ़ रहें हैं ग़ज़ल महफिलों में हम,
शायरी में बेकसी का गम आज देखते हैं |

जब से मिली हैं आँख वो दिल में उतर रहे हैं
कहाँ छुपी है अब ये शर्म आज देखते हैं |

कयामत में अब खुदा भी पूछेगा इक सवाल
कैसे रुकेगी अब ये कलम आज देखते हैं |

बे-वफ़ा नहीं थे मगर गफलत तो है कहीं 'हर्ष'
दिल में उठा था कितना भ्रम आज देखते हैं |

_______________हर्ष महाजन