इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
Thursday, November 29, 2012
Tuesday, November 27, 2012
कितने ही जिंदा पत्तों ने शाखों को छोड़ा है अब तलक
...
कितने ही जिंदा पत्तों ने शाखों को छोड़ा है अब तलक,
उनके जज्बातों को शायद पतझड़ ने समझा है यहाँ |
______________________हर्ष महाजन
कितने ही जिंदा पत्तों ने शाखों को छोड़ा है अब तलक,
उनके जज्बातों को शायद पतझड़ ने समझा है यहाँ |
______________________हर्ष महाजन
मेरी हसरत के रकीब आज ज़लील हो जाएँ
...
मेरी हसरत के रकीब आज जलील हो जाए,
काश जो फूल हैं कलियों में तब्दील हो जाए |
मेरे जज्बातों को समझा है न समझेगा कभी,
इल्तजा है के रकीब दिल का जमील जो जाए |
मैंने भी इश्क में बर्बादी के किस्से हैं सुने ,
काश !ये इश्क रकीबाँ का अश्लील हो जाए |
बे-वफ़ा कैसे कहूँ उसको वो आईना है मेरा,
शिकस्त-ए-दिल में भी कहीं मुझसे न ढील हो जाए |
जितनी मैखाने में है साकी पिला दे मुझको,
बस ये डर है के मुहब्बत न जलील हो जाए |
जमील=सुंदर (beautiful )
_______________हर्ष महाजन
मेरी हसरत के रकीब आज जलील हो जाए,
काश जो फूल हैं कलियों में तब्दील हो जाए |
मेरे जज्बातों को समझा है न समझेगा कभी,
इल्तजा है के रकीब दिल का जमील जो जाए |
मैंने भी इश्क में बर्बादी के किस्से हैं सुने ,
काश !ये इश्क रकीबाँ का अश्लील हो जाए |
बे-वफ़ा कैसे कहूँ उसको वो आईना है मेरा,
शिकस्त-ए-दिल में भी कहीं मुझसे न ढील हो जाए |
जितनी मैखाने में है साकी पिला दे मुझको,
बस ये डर है के मुहब्बत न जलील हो जाए |
जमील=सुंदर (beautiful )
_______________हर्ष महाजन
Monday, November 26, 2012
जुगनू की तरह आँख में पलती हो
...
जुगनू की तरह आँख में पलती हो
गैरों में रहती हो तभी खलती हो |
हर शब् तेरी याद में नम हैं आखें
ख़्वाबों में अक्सर आकर छलती हो |
कैसे भूल जाऊं तेरे कहे वो शेर अब
तुम आकर जो दिल में मचलती हो |
तुझे मालूम है तू महफूज़ है दिल में
इसीलिए बार-बार आकर मसलती हो |
दिल नहीं तू इसे साज़ ही समझती रही
तभी इसके तारों पे अक्सर फिसलती हो |
_________हर्ष महाजन
ख़्वाबों में अक्सर आकर छलती हो |
कैसे भूल जाऊं तेरे कहे वो शेर अब
तुम आकर जो दिल में मचलती हो |
तुझे मालूम है तू महफूज़ है दिल में
इसीलिए बार-बार आकर मसलती हो |
दिल नहीं तू इसे साज़ ही समझती रही
तभी इसके तारों पे अक्सर फिसलती हो |
_________हर्ष महाजन
किस तरह निभाऊं ये रिश्ता मैं आजकल
...
किस तरह निभाऊं ये रिश्ता मैं आजकल,
हमसफ़र होके भी वो हिफाज़त नहीं देता |
______________हर्ष महाजन
कितने असंख्य अपराध किये हैं मैंने
...
कितने असंख्य अपराध किये हैं मैंने
या खुदा ! फिर भी जीये जा रहा हूँ मैं |
कब तक ये बोझ दिल पर रहेगा काबिज़
ये सोच लहू के घूँट पीये जा रहा हूँ मैं |
____________हर्ष महाजन
दिल की इमारत से तो निजात पा लोगी मालूम है
..
दिल की इमारत से तो निजात पा लोगी मालूम है
पर हाथ की लकीरों में जो ढला हूँ उसका क्या करोगे |
दिल की इमारत से तो निजात पा लोगी मालूम है
पर हाथ की लकीरों में जो ढला हूँ उसका क्या करोगे |
_________________हर्ष महाजन
Sunday, November 25, 2012
कुछ इस तरह गया कि मेरी ज़िंदगी लेता गया
...
कुछ इस तरह गया कि मेरी ज़िंदगी लेता गया,
जिस चाँद की थी चांदनी वो चाँद ही लेता गया |
.
उमंग भरे शेरों में था मेरी चाहतों का सिलसिला,
गजलों से मेरी शख्स वो फिर रौशनी लेता गया |
होंट से वो कह न पाया शर्म की लगता गाँठ थी,
क़त्ल कर अरमानों को, मेरी हसीं लेता गया |
यूँ ज़िंदगी सहरा हुई और आँखें भी दरिया हुईं,
शांत पड़ी लहरों से वो अब दुश्मनी लेता गया |
दोस्ती में दुश्मनी से 'हर्ष' तुझे हैरत है क्यूँ ?
ये रंजिश-ए-रकीब है जो ज़िंदगी लेता गया |
______________हर्ष महाजन
गजलों से मेरी शख्स वो फिर रौशनी लेता गया |
होंट से वो कह न पाया शर्म की लगता गाँठ थी,
क़त्ल कर अरमानों को, मेरी हसीं लेता गया |
यूँ ज़िंदगी सहरा हुई और आँखें भी दरिया हुईं,
शांत पड़ी लहरों से वो अब दुश्मनी लेता गया |
दोस्ती में दुश्मनी से 'हर्ष' तुझे हैरत है क्यूँ ?
ये रंजिश-ए-रकीब है जो ज़िंदगी लेता गया |
______________हर्ष महाजन
Saturday, November 24, 2012
तेरे हुस्न के चर्चे मुझे अब पास तेरे आने न दें
...
तेरे हुस्न के चर्चे मुझे अब पास तेरे आने न दें,
अब बता ये हदें कैसी लोग इनको हटाने न दें |
______________हर्ष महाजन
तेरे हुस्न के चर्चे मुझे अब पास तेरे आने न दें,
अब बता ये हदें कैसी लोग इनको हटाने न दें |
______________हर्ष महाजन
Saturday, November 17, 2012
उसने कुछ इस तरह मेरे आशियाने पे सेंध लगाई है
...
उसने कुछ इस तरह मेरे आशियाने पे सेंध लगाई है ,
ज्यूँ छत पे बरसाती पानी के निकास पर गेंद लगाई है |
कौन रोक पायेगा दो दिलों के मिलन को इस बंदिश से,
खुदा ने भी कुछ लकीरों से हाथों पर इक रेंज लगाई है ||
___________________हर्ष महाजन
___________________हर्ष महाजन
Tuesday, November 13, 2012
चंदा फलक से लुप्त हुआ, अमावस की पुकार
...
चंदा फलक से लुप्त हुआ, अमावस की पुकार |
दीपक अपनी जात से, बाँट रहे उजियार ||
चंदा फलक से लुप्त हुआ, अमावस की पुकार |
दीपक अपनी जात से, बाँट रहे उजियार ||
फुल्झड़ियाँ धुआं छोड़तीं,
करें पटाखे शोर |
पर्यावरण की खातिर, इनसे नाता तोड़ ||
पर्यावरण की खातिर, इनसे नाता तोड़ ||
जेब सभी की शुब्द
हुई, बाल लगाएं घात |
छोड़ पटाखे रात-दिन, हुआ जेब आघात ||
छोड़ पटाखे रात-दिन, हुआ जेब आघात ||
कितने दीये जल उठे,
कितने हैं तैयार |
टूटे रिश्ते जोड़ दे , दिवाली त्यौहार ||
__________हर्ष महाजन
टूटे रिश्ते जोड़ दे , दिवाली त्यौहार ||
__________हर्ष महाजन
जिद्द है जिद्द
~~~:०:~~~
जिद्द है जिद्द
पटाखे फोड़ने की
ज़रा सोचो तो !!!
~~~:०:~~~
छोडो भी अब
दुश्मनी अब तुम
दीपावली है !!!
~~~:०:~~~
______हर्ष महाजन |
Monday, November 12, 2012
अब टका-टक फोड़ो बम, जु तारों कि बारात
दिवाली के इस शुभ-अवसर पर --ज्योति और प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।
शुभ दीपावली
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-------दीपावली पर्व पर कुछ दोहे----------
अब टका-टक फोड़ो बम, जु तारों कि बारात |
दीये जले जगह-जगह,आज दिवाली रात ॥
फूलझड़ी जल-राख भइ,दिए से गया तेल |
दीपावली बीत रही ,न हुआ लक्ष्मी-मेल ॥
बल्ब जगह लियो दिए की,लुटा अपन का प्यार |
मुबारक हो यु आपको, दिवाली त्यौहार ॥
कुमकुम भरे कदमों से,आवे लक्ष्मी द्वार |
सुख संपत्ति अब खूब मिले, होए कृपा अपार ॥
पूजा की थाली सजे,दिल में उमंग हज़ार |
रंगोली अबकि जीवन में,भरे अब रंग हज़ार ॥
पटाखों के हुडदंग में , है दियों की कतार |
विराजेगी माँ लक्ष्मी, आज आपके द्वार ॥
______________हर्ष महाजन
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-------दीपावली पर्व पर कुछ दोहे----------
अब टका-टक फोड़ो बम, जु तारों कि बारात |
दीये जले जगह-जगह,आज दिवाली रात ॥
फूलझड़ी जल-राख भइ,दिए से गया तेल |
दीपावली बीत रही ,न हुआ लक्ष्मी-मेल ॥
बल्ब जगह लियो दिए की,लुटा अपन का प्यार |
मुबारक हो यु आपको, दिवाली त्यौहार ॥
कुमकुम भरे कदमों से,आवे लक्ष्मी द्वार |
सुख संपत्ति अब खूब मिले, होए कृपा अपार ॥
पूजा की थाली सजे,दिल में उमंग हज़ार |
रंगोली अबकि जीवन में,भरे अब रंग हज़ार ॥
पटाखों के हुडदंग में , है दियों की कतार |
विराजेगी माँ लक्ष्मी, आज आपके द्वार ॥
______________हर्ष महाजन
Wednesday, November 7, 2012
हमने कभी इस हद तक नहीं चाहा उन्हें, की वो हमें आशिक का दर्ज़ा दे सकें
....
हमने कभी इस हद तक नहीं चाहा उन्हें, की वो हमें आशिक का दर्ज़ा दे सकें,
ये तो आग के दरिया हैं जो उनके दिल में उफान भर मेरी वफ़ा का पता देते हैं |
___________________________________हर्ष महाजन
हमने कभी इस हद तक नहीं चाहा उन्हें, की वो हमें आशिक का दर्ज़ा दे सकें,
ये तो आग के दरिया हैं जो उनके दिल में उफान भर मेरी वफ़ा का पता देते हैं |
___________________________________हर्ष महाजन
Tuesday, November 6, 2012
चले भी आइये फिर से तसव्वुर में मेरे
...
चले भी आइये फिर से तसव्वुर में मेरे
मेरे दर्द-ए-दिल की तो बस यही दवा है |
______________हर्ष महाजन
मेरे दर्द-ए-दिल की तो बस यही दवा है |
______________हर्ष महाजन
ज़िंदगी को मैंने कभी भी दामों से नहीं परखा
...
ज़िंदगी को मैंने कभी भी दामों से नहीं परखा
ज़िन्दगी जुल्फ के साए में बीत जाए तो क्या |
ज़िंदगी को मैंने कभी भी दामों से नहीं परखा
ज़िन्दगी जुल्फ के साए में बीत जाए तो क्या |
उसने मेरी आँखों को हमेशां समंदर ही दिए हैं,
दे दे के दर्द वो मेरा भरोसा जीत जाए तो क्या |
_________________हर्ष महाजन
दे दे के दर्द वो मेरा भरोसा जीत जाए तो क्या |
_________________हर्ष महाजन
तुम किस शख्स की बात करते हो आजकल
...
तुम किस शख्स की बात करते हो आजकल
मेरे दिल के दरीचों से बा-मुश्किल आया था वो |
____________________हर्ष महाजन
तुम किस शख्स की बात करते हो आजकल
मेरे दिल के दरीचों से बा-मुश्किल आया था वो |
____________________हर्ष महाजन
कितना असर होता है तेरी रुसवाई का मुझपर
...
कितना असर होता है तेरी रुसवाई का मुझपर
जुल्फें जो संवर जाती तेरी तो खूब आता मैं |
_______________हर्ष महाजन
उम्र भर कसीदे पढ़ता रहा तेरी राह में 'हर्ष'
...
उम्र भर कसीदे पढ़ता रहा तेरी राह में 'हर्ष'
तू इस तरह आयी कि मुझे पहचाना ही नहीं |
________________हर्ष महाजन |
Sunday, November 4, 2012
मेरे जिस्म का पोर-पोर तेरा अहसान मंद है
...
मेरे जिस्म का पोर-पोर तेरा अहसान मंद है,
पर तेरा ही खून है अब भड़के तो क्या करें |
मैं तेरी गलियों को कभी का छोड़ आया हूँ,
मगर ये दिल फिर भी धडके तो क्या करें |
________________हर्ष महाजन
मगर ये दिल फिर भी धडके तो क्या करें |
________________हर्ष महाजन
अल्लाह इस फकीरी में कितना मज़ा है
...
अल्लाह इस फकीरी में कितना मज़ा है,
तू मुझ में,मेरा सब तो तुझ में सजा है |
तू मालिक है सबका रखवाला जहां का,
हमको ज़िन्द वो दो जो तेरी रज़ा है |
अब तुझ सी मुहब्बत कहीं पर नहीं है,
जो इश्क में बहें अश्क उसी में मज़ा है |
अब जुर्म-ए-तमन्ना का डर भी बहुत है,
परत दर परत अब सजा भी कज़ा है |
मेरे सब्र की तू आजमाईश करे क्यूँ ,
मैं हुस्न-ए-जाँ हूँ तेरा तू मेरी फ़ज़ा है |
_______________हर्ष महाजन
...
अल्लाह इस फकीरी में कितना मज़ा है,
तू मुझ में,मेरा सब तो तुझ में सजा है |
तू मालिक है सबका रखवाला जहां का,
अल्लाह इस फकीरी में कितना मज़ा है,
तू मुझ में,मेरा सब तो तुझ में सजा है |
तू मालिक है सबका रखवाला जहां का,
हमको ज़िन्द वो दो जो तेरी रज़ा है |
अब तुझ सी मुहब्बत कहीं पर नहीं है,
जो इश्क में बहें अश्क उसी में मज़ा है |
अब जुर्म-ए-तमन्ना का डर भी बहुत है,
परत दर परत अब सजा भी कज़ा है |
मेरे सब्र की तू आजमाईश करे क्यूँ ,
मैं हुस्न-ए-जाँ हूँ तेरा तू मेरी फ़ज़ा है |
_______________हर्ष महाजन
अब तुझ सी मुहब्बत कहीं पर नहीं है,
जो इश्क में बहें अश्क उसी में मज़ा है |
अब जुर्म-ए-तमन्ना का डर भी बहुत है,
परत दर परत अब सजा भी कज़ा है |
मेरे सब्र की तू आजमाईश करे क्यूँ ,
मैं हुस्न-ए-जाँ हूँ तेरा तू मेरी फ़ज़ा है |
_______________हर्ष महाजन
जुल्फों पे उसको बहुत ही गुमाँ है
...
जुल्फों पे उसको बहुत ही गुमाँ है,
अब कैसे कहूँ बे-अदब बे-वफ़ा है |
जिंदा भी उसी का कब्र में उसी का,
मगर जाने क्यूँ मुझसे वो खफा है |
महकती हवाओं में चेहरे का दिखना,
ये मंज़र ख्यालों में कैसा चला है |
मुहब्बत नहीं, इस तरह भी नहीं है ,
कुछ मजबूरियों का ये मंज़र बना है |
रग-रग में उसकी वफ़ा का नशा है,
मैं जिंदा उसी से वो मुझ से जिंदा है |
___________हर्ष महाजन |
Saturday, November 3, 2012
न ही शिकवा है न कोई भी गिला करता हूँ
जनम-दिन मुबारक जनम-दिन मुबारक
______________सुरेश महाजन ________________
न शिकवा करूँ न गिला करता हूँ ,
रहे तू सलामत ये दुआ करता हूँ |
उलझन में तुझको दूँ क्या तोहफा,
फूल कम है ज़िन्दगी अदा करता हूँ
बता तुझको तेरे जन्म पे मैं क्या दूँ,
कुछ नज्मों गजलों को जुदा करता हूँ |
मुझे मेरे शेरों के हर्फों की कसम है,
जन्म-दिन पे तुझको अदा करता हूँ |
जनम-दिन मुबारक जनम-दिन मुबारक
___________हर्ष महाजन
______________सुरेश महाजन ________________
न शिकवा करूँ न गिला करता हूँ ,
रहे तू सलामत ये दुआ करता हूँ |
उलझन में तुझको दूँ क्या तोहफा,
फूल कम है ज़िन्दगी अदा करता हूँ
बता तुझको तेरे जन्म पे मैं क्या दूँ,
कुछ नज्मों गजलों को जुदा करता हूँ |
मुझे मेरे शेरों के हर्फों की कसम है,
जन्म-दिन पे तुझको अदा करता हूँ |
जनम-दिन मुबारक जनम-दिन मुबारक
___________हर्ष महाजन
कितना रंगीन है दिन बहुत मुबारक ये समां,
...
कितना रंगीन है दिन बहुत मुबारक ये समां,
कितना नायाब है ये तुझको मुबारक ये जहाँ |
तुझसे हम दूर ही सही भेजी दुआओं की फिजां,
तेरे जन्मदिन से सजा है आज सारा ही जहाँ |
तू है वो फूल जो दिल का मेरे गुलशन में खिला,
जिसपे करती है फलक से फख्र तेरी दादी माँ |
तेरी हर चाह पर कुर्बान हो सारी खुशियाँ ,
तुझे सब रक्खेंगे हथेली पर छालों की तरहां |
या खुदा कैसे करूँ शुक्र इस दिन के लिए,
भेजा है तुझको बना बेटी अब मेरे लिए |
जन्म-दिन तेरा पर तुझको मुबारक मैं क्यूँ दूं
मेरी बेटी कि मुबारक है खुद मैं क्यूँ न लूं |
मेरी हर सांस की दुआओं में मुबारक बरसे
तेरे जन्म-दिन पे फलक से ये सितारे बरसे|
________________हर्ष महाजन
कितना नायाब है ये तुझको मुबारक ये जहाँ |
तुझसे हम दूर ही सही भेजी दुआओं की फिजां,
तेरे जन्मदिन से सजा है आज सारा ही जहाँ |
तू है वो फूल जो दिल का मेरे गुलशन में खिला,
जिसपे करती है फलक से फख्र तेरी दादी माँ |
तेरी हर चाह पर कुर्बान हो सारी खुशियाँ ,
तुझे सब रक्खेंगे हथेली पर छालों की तरहां |
या खुदा कैसे करूँ शुक्र इस दिन के लिए,
भेजा है तुझको बना बेटी अब मेरे लिए |
जन्म-दिन तेरा पर तुझको मुबारक मैं क्यूँ दूं
मेरी बेटी कि मुबारक है खुद मैं क्यूँ न लूं |
मेरी हर सांस की दुआओं में मुबारक बरसे
तेरे जन्म-दिन पे फलक से ये सितारे बरसे|
________________हर्ष महाजन
मैं अक्सर अरमानों को जब बटोर लाता हूँ जिनके लिए
...
मैं अक्सर अरमानों को जब बटोर लाता हूँ जिनके लिए ,
वो दिल में मुसलसल चुबो जाते हैं हाथों में तिनके लिए |
______________________हर्ष महाजन
Friday, November 2, 2012
क्यूँ यूँ ही अब खुदाओं की खुदाई बदलने की बात करते हो
...
क्यूँ यूँ ही अब खुदाओं की खुदाई बदलने की बात करते हो,
चंद सवालों में ही हाथ की लकीरें बदलने कि बात करते हो |
_________________हर्ष महाजन
क्यूँ यूँ ही अब खुदाओं की खुदाई बदलने की बात करते हो,
चंद सवालों में ही हाथ की लकीरें बदलने कि बात करते हो |
_________________हर्ष महाजन
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