Wednesday, March 27, 2013

आज तां होली सी, फिर क्यूँ ओ रह गई

मेरी इक पुरानी कृति थोड़ी तब्दीली के साथ ............................ :)
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मेरा विछौडा, किदां ओ सह गयी,
आज तां होली सी, फिर क्यूँ ओ रह गई |
मौका सी दूरियां दिलां दी मिटाऔन दा ,
फिर क्यूँ चोटां ले के ओ बै गयी |
हून वी तकदा हाँ राह हाथ च फड़ के पक्के रंग,
आउगी ते मचावाँगा, ओहदे नाल मिलके हुडदंग |
पता नयी, की सोच के, ओ मिलन तों रह गयी,
आज होली सी, सारी चाह दिल दी, दिल च रह गयी  |

____________हर्ष महाजन ।

बुरा न मानों होली है :)

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