Thursday, May 30, 2013

तेरी जुल्फें यूँ शानों पे बिखर जाए भी तो क्या है



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तेरी जुल्फें यूँ शानों पे बिखर जाएँ भी तो क्या है,
ये शौक तेरे दर पे ही निकल जाएँ भी तो क्या है |

ये मंजिल अब रुकी सी ये रुकी-रुकी सी शब् भी ,
अब ये मंजिलें हैं जानां निखर जाएँ भी तो क्या है |

गर तुम भी हम से खुश हो फिर ऐतराज़ भी कैसा,
फिर अपने भी खुशी में विफर जाएँ भी तो क्या है |

ये जो प्यास दी है तुमने अब बुझेगी किस तरह से ,
इन सिलसिलों में साँसे उखड जाएँ भी तो क्या है |

सदियों से दूर किये थे मुझे दिल की धडकनों से ,
चुपके से दिल में अब हम उतर जाएँ भी तो क्या है |

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हर्ष महाजन

Tuesday, May 28, 2013

काश उसने मुझे इस तरह जुदा न किया होता

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काश उसने मुझे इस तरह जुदा न किया होता,
ले लिया था फैसला मगर बेहूदा न लिया होता |
पत्थर, जो अभी तक यहाँ दिल लिए घुमते थे,
मेरी तहरीरों को उन्होंने दर्द-शुदा न किया होता |

__________________हर्ष महाजन

Monday, May 27, 2013

लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है

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लगता है हरसूं नीरसता छाने लगी है,
दोस्ती में कलियाँ मुरझाने लगी है |

क्या हुआ किस तरह हुआ क्यूँ हुआ,
मंच पर लिखी तहरीर बताने लगी है |

क्या लिखूं किस तरह लिखूं बताये कोई,
परेशानी, पेशानी पे नजर आने लगी है |

सच है ये या कमबख्त ये वहम है मेरा ,
नज़्म पर अब हर रीव्यु बताने लगी है |

यहाँ हर शख्स हमसफ़र तो नहीं फिर भी,
रफ्ता-रफ्ता हर मसलाहत गहराने लगी है |

कुछ वक़्त और इंतज़ार कर के देख ऐ 'हर्ष'
लम्हा-लम्हा मुश्किलात नजर आने लगी है |

______________हर्ष महाजन

Saturday, May 25, 2013

एक जोडी दशक पर बे-रोक किया राज़ उसने

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एक जोडी दशक पर बे-रोक किया राज़ उसने,
मेरे हर शेर पर बे-वज़ह किया ऐतराज़ उसने |
बेरुखी भी यूँ हुई कि इल्म मेरा कराह ही उठा,
उठी जो साज़ पे मेरी धुन किया बे-साज़ उसने |

_____________________हर्ष महाजन

Friday, May 24, 2013

तेरी बेरुखी का सबब है क्या मेरा दिल से तुझको सलाम है


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तेरी बेरुखी का सबब है क्या पर दिल से तुझको सलाम है,
मेरी ग़ज़लें क्या मेरे नग्में क्या मेरी नज्में सब तेरे नाम है |

मेरे ख्वाब अश्कों में ढलते क्यूँ  मेरे ग़म भी सारे मचलते क्यूँ,
मुझे फिर भी तुझसे गिला नहीं, दिल फ़कत तेरा गुलाम है |

मैं वो अश्क हूँ तेरी आँख का, जिसे ख्वाबों से है गिरा दिया,
मैं तो अब भी तेरी सुबह हूँ, न समझ तू ढलती ये शाम है |

तू है चाँद मैं हूँ फलक तेरा, तू है ज़िन्दगी मैं भी सांस हूँ ,
तू क्या जाने इश्क की इंतिहा , मेरा इश्क यूँ बदनाम है  |

तू दरिया में तूफ़ान अगर , मैं भी यादों का सैलाब इधर ,
तू जो बंद नशे की शीशी गर, ये शख्स उसमें भी जाम है |


________________हर्ष महाजन

तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले

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तेरे ये अश्क जो महफ़िल में बन शराब चले,
ये हुस्न जाम संग जो उठ के बन शबाब चले |
ये बज़्म ऐसी थी गिर-गिर के उठे शेर बहुत,
ये दिल जो क़त्ल हुए फिर वो बन कबाब चले |

______________हर्ष महाजन

Monday, May 20, 2013

गलियां हैं मुहब्बत की करें किन को अब शामिल

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गलियां हैं मुहब्बत की करें किन को अब शामिल,
इंसान की नगरी है मगर इंसान नही काबिल |
किस्से जो मुहब्बत के हैं अब तहरीर बने हैं ,
दीवानों में सिमट गए हैं प्यार भरे वो दिल |

___________________हर्ष महाजन

जीयुं या न जीयूं अपने अहसास जगाता रहता हूँ

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जीयुं या न जीयूं अपने अहसास जगाता रहता हूँ ,
भंवर बने न बने समंदर में तूफ़ान उठाता रहता हूँ |


___________________हर्ष महाजन

Sunday, May 19, 2013

लाश पे लम्बू लगाये कौन

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लाश पे लम्बू लगाये कौन
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इतनी कडकी छायी हमपे,
घर की छत संभाले कौन |

दो-दो बेटी शादी-शुदा अब ,
नौकरी छूटी बताये कौन |

खाने को अब दाना नहीं है ,
घर का खर्चा चलाये कौन |

मियाँ बीवी दर-दर भटकें,
शर्म से सबको बताये कौन |

चिंता आखिरी पल की अब तो ,
अब घर पे तम्बू लगाए कौन |

कोई जहाँ में नहीं है अपना ,
खोल के दिल अब दिखाए कौन |

बिटिया दोनों भाई नहीं अब,
लाश पे लम्बू लगाए कौन |

खुदा भी क्यूँ कर लाया हमको,
वो भी चुप है बताये कौन |

________हर्ष महाजन |

हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को

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हो रही रुक्सत मेरी ये जान धाम को ,
चढ़ा तू जितने फूल चढाने है शाम को |

उल्टे पाँव चल दिया जज़्बात छोड़ कर,
जी रहा था अब तलक मैं तेरे नाम को |

पीयूँगा आज जब तलक रूह मेरे पास है,
आओ पियेंगे भूल कर किस्से तमाम को |

देख रहा हूँ लाश मैं, मातम है शाम को ,
ये रूह तड़प के कह रही अब छोडो जाम को |

किरदार लाश का 'हर्ष' मुश्किल निभा सकूं ,
कोई और चेहरा ढूंढो निपटा ले ये काम को |


________________हर्ष महाजन

जो जुदा हुआ वो जालिम दिल जार-जार रोया

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जो जुदा हुआ वो जालिम दिल जार-जार रोया,
दे दी कसम जो उसने फिर ऐतबार रोया |

ये है बे-अदब क्यूँ दुनिया देती है दिल पे छाले,
ज्यूँ बदलते देखा साहिल दिल बार-बार रोया |

तेरी आशिकी पे हमने जो ढेरों थे गीत गाये ,
मैं तो धीरे-धीरे तनहा हो-कर बे-जार रोया |

खाईं जो कसमें तूने मोड देंगे रुख हवा का ,
जो कुचलते देखे अरमां दिल बनके खार रोया |

मेरी इल्तजा पे तूने जो कफ़न उठा के देखा,
मैंने अलविदा किया जो कर-कर दीदार रोया |

________________हर्ष महाजन

Saturday, May 18, 2013

आँखों में अश्क दिल में तेरे इतना प्यार क्यूँ है

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आँखों में अश्क दिल में तेरे इतना प्यार क्यूँ है,
मैं तो बे-वफ़ा हूँ फिर भी तुझे ऐतबार क्यूँ है |

मैं खुदा नहीं हूँ फिर भी तू करे है क्यूँ इबादत,
मैं हूँ गैर की अमानत फिर भी निसार क्यूँ हैं |

मैं ये जानता हूँ तूने की है बंदगी खुदा सी ,
मेरे दिल में जाने तुझपे इतना ये खार क्यूँ है |

मेरी इल्तजा है तुझसे मुझे इस तरह न देखो,
न बता सकूंगा तुझको वफ़ा से इनकार क्यूँ है |

मैं तो खुद भी हूँ परेशां तनहा सा हो गया हूँ ,
अब खुदा कहे फलक से इतना बीमार क्यूँ है |

__________________हर्ष महाजन

Friday, May 17, 2013

मेरे गुरु से पहली मुलाकात

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वो अज़ीम शख्स मंच पर,
मुझे शायर कहने लगा |
मैं भीड़ में बगुले झांकता
यकदम......
आंसुओं में बहने लगा |
एक अद्भुत थी घटना ,
जिसे.. मैं सहने लगा |
फिर कुछ तारीफों के पुल
कुछ मेरी ही ग़ज़लें ..
और उनके मुखड़े बतियाने लगा
यूँ ही .......
इक इक कर
वो .....
मेरी धड़कने बढाने लगा |
मैं परेशां !!!!
मुझे बार-बार वो बुलाने लगा
नाम सुन !!!!!!!!
सर से पाँव तक
मुझे पसीना आने लगा |
देख मेरी हरकत ..
वो  मंच से
धीरे-धीरे नीचे आने लगा
ये हादसा अजीम था ....
मुझे तब से ....
मंच पर ले जाने लगा |
वो इक सुनहरा दिन  ...
जिस दिन से
'
हर्ष' उस शख्स का
अमूल्य
शिष्य कहलाने लगा |
वो 'चमन'
तब से ..
ये नया फूल
दिल से सहलाने लगा |
ये फूल बे-साख्ता
उस चमन में लहराने लगा |


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हर्ष महाजन |

Thursday, May 16, 2013

इंसान जो किस्मत ढोता है ,फितरत से उसे वो भिगोता है

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इंसान जो किस्मत ढोता है ,फितरत से उसे वो भिगोता है |
अपने को समंदर समझ के फिर नदिया में तन्हा रोता है |
रुतबा है अगर फूलों सा कभी तो महक कभी कम होती नहीं,
फितरत में तंज़ अगर शामिल तो महक भी संग-संग खोता है |

______________हर्ष महाजन

Wednesday, May 15, 2013

दर्द-ए-मोहब्बत खारिज है और दर्द-ए-वफ़ा भी खारिज है,

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दर्द-ए-मोहब्बत खारिज है और दर्द-ए-वफ़ा भी खारिज है,
वो हुनर वफ़ा का क्या जाने, जो उम्मीद-ए-वफ़ा से खारिज है |

_________________________हर्ष महाजन

बर्बाद मोहब्बतां करने को बस एक ही कासिद यहाँ काफी है

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बर्बाद मोहब्बतां करने को बस एक ही कासिद यहाँ काफी है,
हर प्यार पे कासिद राज़ करे अंजाम ऐ मोहब्बतां क्या होगा |

________________________हर्ष महाजन

Monday, May 13, 2013

इंतज़ार अब इस कदर महसूस होने लगा

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इंतज़ार अब इस कदर महसूस होने लगा,
अपना वजूद भी साहिल पर खोने लगा |
ये सतयुग नहीं जो ज़िंदगी यूँ ही बाँधी जाए,
कलयुग है हर सुंदर लहर पर दिल मोहने लगा |

______________हर्ष महाजन

टूटे हुए अहसासों को दर-दर लिए घूम रहा हूँ मैं

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टूटे हुए अहसासों को दर-दर लिए घूम रहा हूँ मैं,
कोई संग्रह्नीय वस्तु बना दे वो शख्स ढूंढ रहा मैं |

________________हर्ष महाजन

कितना असल ओ कितना सूद शेरों पे मेरे बाकी है

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कितना असल ओ कितना सूद शेरों पे मेरे बाकी है,
पैमानों में नाप रहे वो , मसरूफ यहाँ हर साकी हैं |

__________________हर्ष महाजन

Saturday, May 11, 2013

किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई




____________नज़्म ____________

किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई
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ये मोहब्बत है तेरी माँ अभी भी जिंदा हूँ ,
तेरे सदके तेरे सदके तेरे सदके मेरी माँ |

मेरी दुनिया ही है रौशन तेरी यादों से यहाँ,
मन की आँखों से मैं देखूं तुझे हर पल मैं यहाँ |

ये हवाएं भी है दुश्मन चले आंधी की तरह ,
दीया मैं अब भी जलाता हूँ तू जलाए थी जहां |

मैं वो भूलूंगा कैसे दिन जो तूने दान दिए,
कफ़न को ओड़ के जो तूने मेरे काम किये

भीग जाती हैं ये पलकें कभी मैं तन्हा रहूँ ,
कुछ जो बातें अनकही हैं अब मैं किस से कहूँ ?

भंवर में कश्ती अब भी मेरी कभी आती है,
फलक से तेरी दुआ आज भी आ जाती है |

किसी को तू मिली किसी के हिस्से तन्हाई
मैं घर में छोटा था मेरे हिस्से तेरी याद आई..|

ये मोहब्बत है तेरी माँ अभी भी जिंदा हूँ ,
तेरे सदके तेरे सदके तेरे सदके मेरी माँ |

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हर्ष महाजन

Tuesday, May 7, 2013

उनका ख्याल होटों से सर-ए-आम गुज़र गया

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उनका ख्याल होटों से सर-ए-आम गुज़र गया,
हुआ तो बेकरार मगर दिल से नाम उतर गया |

________________हर्ष महाजन

मेरी अदाओं को फकत खुदा ही जानता है

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मेरी अदाओं को फकत खुदा ही जानता है,
तेरे दिए कांटें भी दिल फूल ही मानता है |

_______________हर्ष महाजन

जो शख्स दिल से नहीं दिमाग से निवेश करते है

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जो शख्स दिल से नहीं दिमाग से निवेश करते है ,
वो शायरी के गुलदस्ते हमेशां खाली पेश करते हैं |

_______________हर्ष महाजन

किस अहाते मे कदम रख के चलते हो

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किस अहाते मे कदम रख के चलते हो ,
खुद ही शर्त रखते हो फिर खुद हँसते हो |
कैसे भूल जाएँ वो शब-ओ-रोज़ की बातें,
प्यार भी करते हो फिर तन्हा तड़पते हो |

__________________हर्ष महाजन

Monday, May 6, 2013

ऐ मोहब्बत तेरी खातिर अपनी जाँ पे उतरे



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ऐ मोहब्बत तेरी खातिर अपनी जाँ पे उतरे,
बे-ख़ौफ़ टूटी कश्ती दरिया में ले के उतरे |

सुफिआना ज़िंदगी है सुफिआना तेरा रस्ता,
हम चीर के भंवर को तेरी दास्ताँ पे उतरे |

मैं खड़ा हूँ सरहदों पे मन कैदी हो गया हैं,
ऐ खुदा इसकी खातिर अपने घर से उतरे |

ये विकारों के झमेले आ आ मुझ से खेलें,
हम खेल-खेल में इनको सागर में ले के उतरे |

___________हर्ष महाजन   

Sunday, May 5, 2013

मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम

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मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम,
ये हुनर मेरा सही , हैं उन्ही के दिए गम |

है ये पत्थरों का शहर उस पे झूठ औ ज़हर,
लफ्ज़ रुकते ही नहीं ख़त भी हो जाते हैं नम |

लब पे आती है ग़ज़ल, तन्हा होती है जो शब्
होती है सहर तो जब, गम हो जाते हैं सितम |

_______________हर्ष महाजन

न जाने वो शख्स किसकी मेहरबानियों का नतीजा है

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न जाने वो शख्स किसकी मेहरबानियों का नतीजा है,
हुनर से बे-बाक और दिल-ओ-दिमाग से पाकीजा है |

__________________हर्ष महाजन

Saturday, May 4, 2013

उसने बे-सबब मेरे महबूब को घेरा है

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उसने बे-सबब मेरे महबूब को घेरा है,
झाँक रहा है अब वहां जहाँ घर मेरा है |
बहुत किया है जतन दरीचों में जाने की
पर क्या करे वहाँ बस मेरा  नाम उकेरा है |

_______________हर्ष महाजन

आज की हसीनों से दामन छुडाएं कैसे हम

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__________एक गीत

आज की हसीनों से दामन छुडाएं कैसे हम,
झील सी आँखों में यूँ, डूब गए हों जैसे हम |

जुबां भी अब खामोश औ ये आँखें भी हुईं हैं नम,
दिल में हैं ज़ख्म बहुत भरेंगे कैसे-कैसे हम |

ये भीगी-भीगी पलकें हैं जो यादें उनकी झेलती,
तन्हा-शब्-ओ-तन्हा-गम झेलें कैसे-कैसे हम |

टुकड़ों में अब किया कतल बदल गए कातिल कई,
इन वक़्त की राहों को अब बदलें ऐसे-कैसे हम |

ये मेरी बदनसीबी कि न समझे वो न समझे हम,
यूँ रिश्तों पे पडा कफ़न ये भूलें ऐसे-कैसे हम |

____________________हर्ष महाजन |

ये चाहतों के सिलसिले हैं रोज़ बदलते क्यूँ

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ये चाहतों के सिलसिले हैं रोज़ बदलते क्यूँ,
फिर हुस्न के बाजार में ये ख्वाब पलते क्यूँ |

माना कि आज प्यार के काबिल नहीं जहां,
तो फिर यहाँ दीवानों के अरमां मचलते क्यूँ |

अब अस्मतें भी लुट रहीं और ख्वाब दर-बदर,
फिर जाहिलों से शहर में रकीब जलते क्यूँ |

बीमार दिल लिए हुए जो आशिकी में गुम,
फिर आशिकों के आजकल दिल दहलते क्यूँ |

ये बदनसीबी शहर की है फलक को छू रही,
ऐ ‘हर्ष’ बता इन ग़ज़लों में लफ्ज़ फिसलते क्यूँ |


________________हर्ष महाजन


जो तसव्वुर में मेरे कोई अक्सर यूँ घूमती है

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जो तसव्वुर में मेरे कोई अक्सर यूँ घूमती है,
मेरे तन्हा पड़े इस दिल में धड़कन को ढूँढती है |
मेरी इल्तजा है उनसे इन गलियों से न गुजरें ,
मेरे तन बदन में सिहरन बिजली की गूंजती है |

___________________हर्ष महाजन

हर चीज़ को देखने का अपना इक अंदाज़ होता है

हर चीज़ को देखने का अपना इक अंदाज़ होता है
जहां प्यार नहीं वहाँ बे-वफाओं का राज़ होता है |

__________________हर्ष महाजन

बे-अदब से इन दिलों में है अँधेरा कहीं उजाला

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बे-अदब से इन दिलों में है अँधेरा कहीं उजाला,
मैंने अपनों से जो पाया वही शब्दों में है ढाला |

बे-वफ़ा सी ज़िन्दगी ने जब छोड़ा मुझको तन्हा,
जो प्यार था मेरे दिल में अब बन गया है छाला |

_______हर्ष महाजन

Friday, May 3, 2013

तेरी बे-रुखी भी भली लगे,तेरी आशिकी भी लगे भली

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तेरी बे-रुखी भी भली लगे,तेरी आशिकी भी लगे भली ,
मैं तो ठोकरों में पली बड़ी, तूने चाहा तेरे ही संग चली |

मेरे गेसुओं में वो ख़म नहीं, जो रूझा सकें तुझे दम नहीं,
तेरी चाहतों का सिला है ये, कि लगे तेरी अब भली गली |

मैं तो खुद ही अब हैरान हूँ , तेरे प्यार से परेशान हूँ
मैं तो उलझी काँटों में सदा, अब हर तरफ है कली-कली |

क्या धोखा है क्या फरेब है, क्या झूठ क्या बे-ईमानी है,
गर होगा मुझ-संग दे दूँगी मैं जिस्म-ओ-जां की तिलांजलि |

_______________________हर्ष महाजन

क्या कहूँ ये रुआं-रुआं मेरे जिस्म का बेताब है

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क्या कहूँ ये रुआं-रुआं मेरे जिस्म का बेताब है,
यूँ बे-रुखी को देखकर लगता मुझे ये ख्वाब है |
ये ख्वाब उनकी रूह को छू लूं मुझे लगता नहीं,
मेरी कलम से निकला है ये आखिरी इंतेखाब है |

_______________हर्ष महाजन

वो हर बार सीढ़ियाँ चढ़ती है उतर जाती है

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वो हर बार सीढ़ियाँ चढ़ती है उतर जाती है
इश्क में वो बार-बार इस तरह सताती है |

______________हर्ष महाजन

मेरी हर सांस में तुम हर पल रहने लगी हो

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मेरी हर सांस में तुम हर पल रहने लगी हो
फिर जुर्म ये उसे तुम ख्वाब कहने लगी हो ?

___________________हर्ष महाजन

साँसों पे इतना गरूर न करो 'हर्ष' के बे-वफायी पे उतर आयें

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साँसों पे इतना गरूर न करो 'हर्ष' के बे-वफायी पे उतर आयें
इश्क जब रुलाने पे आता है तो अपनी हद्द से गुजर जाता है ।

_______________________________हर्ष महाजन

इन हवाओं में तुम्हे इक फरमान भेजा है

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इन हवाओं में तुम्हे इक फरमान भेजा है;
सूरज की किरणों संग इक पैगाम भेजा है |
घर जा चूका है चाँद छुप गए सब सितारे;
सुबह हो गयी उठो दिल से सलाम भेजा है |

शुभ-प्रभात , शुभ दिन।

हर्ष महाजन