Wednesday, July 31, 2013

यूँ ही बेरुखी में उसने कभी खुद को न संभाला

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यूँ ही बेरुखी में उसने कभी खुद को न संभाला,
दुनिया की अब नज़र में खुद को ही मार डाला |
कोई कैसे पूछे हाल और कोई कैसे खुद बताये,
यूँ लगा के अपनी तस्वीर खुद को ही हार डाला |

______________हर्ष महाजन

Monday, July 29, 2013

कभी तेरी जुल्फों के साए की थी बहुत ख्वाहिश

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कभी तेरी जुल्फों के साए की थी बहुत ख्वाहिश,
आज बेसबब चेहरे से हटा देने को जी चाहता है |
तुम्हे पा लेने की वो तड़प मुझे आज भी याद है,
मगर आज दिल से भुला देने को जी चाहता है |

_________________हर्ष महाजन

इस गुलिस्तान में खिलने को तो फूल बहुत हैं

कुछ पुराने अहसासों से .............

इस गुलिस्तान में खिलने को तो फूल बहुत हैं,
कोई फूल तुझ जैसा भी हो तो कोई बात बने |
बहुत खाएं हैं ज़ख्म ज़िंदगी ने अपनों से 'हर्ष'
इक ज़ख्म तुझ से हो जाए तो कोई बात बने |

______________हर्ष महाजन

17/09/2011
 

Sunday, July 28, 2013

आज तकदीर मेरी उनसे जुदा होने को है



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आज तकदीर मेरी उनसे जुदा होने को है ,
जो खुदाओं से परे था वो खुदा होने को है
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बता तो कैसे ढूंढें राहे डगर उनकी निशानी,
जो मेरी आखिरी दुआ में अदा होने को है |

______________हर्ष महाजन  

Saturday, July 27, 2013

दीद संग है जो तेरी गम मैं सब उठा लूँगा

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दीद संग है जो तेरी गम मैं सब उठा लूँगा,
पढ़ के तहरीरें नमाज़ों में तुझे पा लूँगा |
गैर मुमकिन है यकीं मुझको न होंगे यूँ जुदा
फिर भी होंगे तो अकेले मैं ईद मना लूँगा |

______________हर्ष महाजन

दिए हैं बहुत गम उसने ज़िन्द कुम्हला गयी

दिए हैं बहुत गम उसने ज़िन्द कुम्हला गयी,
बेबसी उदासी और आंसुओं में नहला गयी |
ज़िंदगी तो कट गयी अकेले उनके इंतज़ार में,
उम्मीदे सहरी थी उनसे लो ईद भी आ गयी |

______________हर्ष महाजन

Thursday, July 25, 2013

रात भर तेरे गम में चाक रहे, आँख भर-भर के जाम चलते रहे



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रात भर तेरे गम में चाक रहे, आँख भर-भर के जाम चलते रहे,
इक झलक पाने को मैखाने में, यूँ ही चढ़-चढ़ के दाम चलते रहे |

क्यूँ ये रातें हैं अब अंधेरों सी, चाँद छुप-छुप के क्यूँ निकलता है,
जिस तरह जल रहा वो परवाना, मेरे दिल से सलाम चलते रहे |

खौफ अब क्यूँ नजर नहीं आता, इश्क जब गैरों में मचलने लगे,
दर्द उठ-उठ सकूं यूँ देता रहा, जब तक उनके पयाम चलते रहे |

चाँद की चाहतों में दीवाना, उम्र भर भटके बादलों की तरह ,
इश्क महफूज़ मैयतों में सदा, जब वफाओं के जाम चलते रहे |

जब से उलझी हैं इश्क की राहें, तेरा नाम सजदे में पुकारा है,
और पतझड़ में गिरते पत्तों पर, तेरा लिख-लिख के नाम चलते रहे |

यूँ तो ये शहर बदनसीबों का, गम में भी करते शायरों से गिला,
है मगर ‘हर्ष’ बेरहम शायर , फिर भी उनके कलाम चलते रहे |

__________________________हर्ष महाजन

Tuesday, July 23, 2013

उम्र भर कही तहरीरें उनके हुस्न-ओ-शबाब की


 

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उम्र भर कही तहरीरें उनके हुस्न-ओ-शबाब की,
कभी सोचा भी न था जगह लूं उनके सुहाग की |
बनाने वाले ने तकदीर बना डाली कुछ इस तरह,
वो खुद बनी ताबीर , मेरे हर इंतेखाब की |

____________________हर्ष महाजन

कई शख्स दोस्त बनाने में बहुत तेज़ होते हैं

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कई शख्स दोस्त बनाने में बहुत तेज़ होते हैं,
अच्छे हों या बुरे पर नामों के बहुत पेज होते हैं |
कोई सरोकार नहीं दोस्ती की अहमियत क्या है,
क्या मालूम उन्हें दोस्ती में क्या-क्या गुरेज़ होते हैं |

__________________हर्ष महाजन

Sunday, July 21, 2013

तुझे कैसे दिल की तलाश है तू बता क्या गम तेरे पास है

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तुझे कैसे दिल की तलाश है तू बता क्या गम तेरे पास है,
तेरे इश्क में जिंदा तो है, पर शख्स वो अब भी उदास है |
उल्फत में भी रोये बहुत, हँसते भी थे बहे अश्क बहुत,
तू जुदा हुई  दिल से मगर है जुबां पे उसकी मिठास है |

___________________हर्ष महाजन

Saturday, July 20, 2013

कफन खुद ही मौत पे चल-चल आये

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कफन खुद ही मौत पे चल-चल आये
कभी लाए चाचा, कभी मामा लाए |
कई लाशों को ये नसीब नही होता,
मगर लाश देखो जो ताज बनवाये |

_____________हर्ष महाजन |

जो शख्स उठ गया जहाँ से दे रहा इम्तिहान क्यूँ


प्रिये अभिनेता प्राण साहब को मेरी दिली श्रद्धांजली
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जो शख्स उठ गया जहाँ से दे रहा इम्तिहान क्यूँ,
ये खुद खुदा यूँ ले के ‘प्राण’ दे रहा पहचान क्यूँ |
हस्तियाँ बहुत यहाँ परदे पे भी और ज़िन्द में भी,
पर टिक गया दिलों पे आज सिर्फ शेर-खान क्यूँ |

__________________हर्ष महाजन |


Jo shaks uth gayaa jahaaN se de rahaa imtihaan kyuN,
Ye khud khuda yuN le ke 'pran' de raha pehchan kyuN.
HastiyaN bahut yahaN parde pe bhi our zind meiN bhi,
Par tik gayaa diloN pe aaj sirf SHER-KHAAN kyuN.

_______________________Harash Mahajan

Thursday, July 18, 2013

जन्म दिन का आया शुभ वेला

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जन्म दिन का आया शुभ वेला,
बहारों का लग आया यहाँ मेला

मौसम भी बसंती सुहाना ,
जन्म-दिन जो तेरा अलबेला |

ये जग भी यहाँ दो दिन का मेला,
संग घुल जा न रह जाए अकेला |

झूमों अब हट जाओ इतराना,
जन्म दिन पर गाओ ये गाना |

हेप्पी बर्थ डे टू यू
हेप्पी बर्थ डे टू यू |
हेप्पी बर्थ डे टू यू
हेप्पी बर्थ डे टू यू |


____हर्ष महाजन

Tuesday, July 16, 2013

जो तोड़े इन ऐतबारों को

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ये रिश्ते
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जो तोड़े इन  ऐतबारों को,
भूले हैं बढती दरारों को |
गर दिल के दरीचे फटने लगे,
कौन  रोकेगा इन दीवारों को |

_________हर्ष महाजन

बेदाग मुहब्बत को अपने ख्वाबों में ढोया करता हूँ

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बेदाग मुहब्बत को अपने ख्वाबों में ढोया करता हूँ |
अहसास उफनते हैं इतने खुद से मैं सौदा करता हूँ |
कुछ बिक गए कुछ बिकने को कुछ आनाकानी करने लगे,
वो भूल गए इस कलयुग को ये रोज़ मैं बोला करता हूँ |

____________________हर्ष महाजन

दिन भर मैं खुद से शिकायत करता हूँ

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दिन भर मैं खुद से शिकायत करता हूँ ,
इस तरह मैं खुद पर इनायत करता हूँ |
बेरंग खतों को लिख-लिख फिर उनमें,
टुकड़े दिल के रख रियायत करता हूँ |

__________हर्ष महाजन

Monday, July 15, 2013

उसने किस तरह दिल को समझाया होगा

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उसने किस तरह दिल को समझाया होगा,
मेरे नाम संग जब स्वर्गीय लगाया होगा |
रो रो कर जब किया होगा बुरा हाल अपना,
तो माँ ने फिर हाल-ए-मौत सुनाया होगा |

______________हर्ष महाजन

Friday, July 12, 2013

हस्ती बना दिलों में तुम जहाँ से चल पड़े

R.I.P PRAN SAHEB .......Extremely saddened by the demise of the LEGENDARY PRANSAAB

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हस्ती बने दिलों में तुम जहाँ से चल पड़े,
  वो अश्क जहां रुके से थे वहां से चल पड़े |

लिखे थे तुमने परदे पर फ़साने बहुत मगर,
किरदार छुपे जहन में जहां-तहां से चल पड़े |

वफ़ा भी तुम निभा गए अपने चमन से खूब,
हुई मौत जरा सी बे-वफ़ा, जहाँ से चल पड़े |

न पूछो आज बज्मों में कोहराम मच गया,
आहों के सिलसिले जो अब यहाँ से चल पड़े |

सदियाँ हुई थी खुश्क हुए जो चश्म तिरे ‘हर्ष’
  अब काफिले ये अश्कों के कहाँ से चल पड़े |

____________हर्ष महाजन

बिखरी उसकी जुल्फें बतलाता ही क्यूँ है


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बिखरी उसकी जुल्फें बतलाता ही क्यूँ है,
फिर मुझ से शिकारी कतराता ही क्यूँ है |

गर महफ़िल में खुद परवाना बन जले वो,
वही शम्मा मुझको दिखलाता ही क्यूँ है |

यूँ ख्वाबों में उसके ओ छत पर संवरना,
फिर दिल में मेरे लौ जलाता ही क्यूँ है |

लूटा उसका मौसम अब पत्तों सा झड़ना,
मगर मुझको हरसूं जताता ही क्यूँ है |

वो साकी बना संग हुस्न सी है बोतल,
खुदा मुझको जाम दिखाता ही क्यूँ है |

बगावत पे उसकी मुझी पे ही शक था,
मगर मुझको दुश्मन बनाता ही क्यूँ है |

बेताबियों में मेरा हद से गुजरना ,
वो पिछले पहर फिर बुलाता ही क्यूँ है |

मुनासिब नहीं शक शराफत पे करना,
मुझे खुद फिर जाम पिलाता ही क्यूँ है |

___________हर्ष महाजन

Thursday, July 11, 2013

मेरे दिल में हैं सजी उनकी दुआएं लेकिन

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मेरे दिल में हैं सजी उनकी दुआएं लेकिन ,
उसमें रहने की रिवायतें तो निभानी होंगी |

_______________हर्ष महाजन

हमने गर रेत पे घर अपना बना लिया होता

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हमने गर रेत पे घर अपना बना लिया होता,
खुद ही किस्मत को जुदा तुमसे यूँ किया होता |
इश्क में राहत-ए-सकूं जो तुझ को हासिल है,
ये गुनाह हमने कभी तुझ से न किया होता |

_____________हर्ष महाजन

अपनी मर्ज़ी से कभी टूटा नहीं मैं आज तलक

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अपनी मर्ज़ी से कभी टूटा नहीं मैं आज तलक,
रही थी इश्क के बंद पिंजरे में उनकी थी झलक |

कभी वो रूठे कभी हमसे खफा लगने लगे ,
अहसास-ए-तन्हाई से मेरा सूख जाए हलक |

बेखबर खुद से रहूँ उनसे भी रहूँ गाफिल,
बहुत मैं चाहूँ झुकाना मगर झुकती न पलक |

सैलाब-ए-अश्क जो अखियों से यूँ ही बहता चले,
कहीं यूँ  ज़िन्दगी का जाम जाए न छलक |


_____________________हर्ष महाजन

सलीका नहीं है मुझे कहने का क्या दस्तूर होता है

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सलीका नहीं है मुझे कहने का क्या दस्तूर होता है
सीप से जब निकले मोती वह पल में दूर होता है |
आंसुओं की कौन कदर करता है जब तक बह न लें ,
इश्क करने वाला बस इसी तरह मजबूर होता है |

__________________हर्ष महाजन |

अब हश्र में भी था न कोई चाहने वाला मेरा

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अब हश्र में भी था न कोई चाहने वाला मेरा
एक तू ही तो था वो भी बहाने वाला निकला |

__________________हर्ष महाजन

ज़िन्द में दौर-ए-ग़ज़ल मेरा उनसे खूब हुआ,

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ज़िन्द में दौर-ए-ग़ज़ल मेरा उनसे खूब हुआ,
उन्ही के वास्ते लिखा उन्ही से मंसूब हुआ |

__________________हर्ष महाजन

आज मर कर भी मेरी रूह क्यूँ उसपे मरती है

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आज मर कर भी मेरी रूह क्यूँ उसपे मरती है |
रूह फिर दिल से निकल के क्यूँ उससे डरती है |

मेरी दुनिया थी शुरू उससे और उसपे ख़तम,
मैं तो दुनिया में नहीं फिर वो क्यूँ अखरती है |

इश्क के गुल जो थे गुलशन में थे गुजार लिए,
उसकी ज़िन्दगी है ये मेरी रूह क्यूँ मुकरती है |

न थी तमीज मुझे न था मुझको इश्क-ओ-ज्ञान,
मेरी मैयत में फिर वो रोज़ क्यूँ उतरती है |

प्यार की थी जो उमर हादसों में गुजर गयी,
बाकि ज़िन्द यूँ ही मैखानों में क्यूँ गुजरती है |

_______________हर्ष महाजन

Wednesday, July 10, 2013

कितना गहरा उपहास है दोस्ती का उनके दिल में

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कितना गहरा उपहास है दोस्ती का उनके दिल में,
वो क्या जाने दिल में कहाँ-कहाँ तूफां उठे जाते हैं |

________हर्ष महाजन |

Monday, July 8, 2013

वो दोस्त था जो दोस्ती से खुद चला गया



ये कृति    Wednesday, September 5, 2012  को इसी ब्लॉग पर डाली थी...आज कुछ मूल सुधार के साथ फिर से प्रेषित कर रहा हूँ .......उमेद है पढने वालों को और भी आनंद आएगा ......


Wednesday, September 5, 2012


वो दोस्त था जो दोस्ती से खुद चला गया,
मुद्दत से निभाया था  वो रिश्ता चला गया ।

खामोश हो गया है जहाँ मुझ नसीब का,
अब मेरी ज़िन्दगी से फ़रिश्ता चला गया ।

आता सभी पे वक़्त वो अच्छा हो या बुरा,
गिरा नजर से यूँ के वो गिरता चला गया ।

जुदा हुआ हूँ दोस्त से पर खौफ मौत का,
मायूस होके दिल मेरा चिरता चला गया ।

जब छा गया माहौल अंधेरों का बे-सबब,
फिर रफ्ता-रफ्ता 'हर्ष'  बिखरता चला गया ।

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हर्ष महाजन ।