Thursday, September 26, 2013

आओ वक़्त को जी के देखें दर्द की चादर सी के देखें


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आओ वक़्त को जी के देखें दर्द की चादर सी के देखें,
छलकती है आँख से मय जो होंटों से अब पी के देखें |

ज़ख्म कुछ संग छोड़ गए हैं कुछ को हम भी भूल गए,
कुछ जो दिल नासूर किये हैं आओ उन संग जी के देखें | 

कश्ती दिल की बीच समंदर गम भंवर बन खींच रहे हैं,
डोर वफ़ा की माझी संग अब कहे तो नफरत सी के देखें |


________हर्ष महाजन

Wednesday, September 25, 2013

बता दे किश्तें कितनी बाक़ी हैं चाहत में

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बता दे किश्तें कितनी बाक़ी हैं चाहत में,
उमर तो बीत चली भरते-भरते राहत में |

मुझे तू मात दे दे, मेरे गुनाहों की सनम,
मगर तू दे दे मालिकाना हक विरासत में |

मोहब्बतों के ज़ख्म रफ्ता-रफ्ता रिस्ते रहे,
मगर ये अश्क मेरे,   बहते रहे दावत में |

अभी तो सारे शहर में,   मेरी पहचान हुई ,
जहां पे साया तक  रहा मेरी खिलाफत में |

जहाँ में तनहा जी सकूं,  मेरा जिगर ही नहीं, 
तभी लिखा है दिल पे नाम तिरा इबारत में |

सख्त जाँ हुआ था मैं नवाब बन के मगर  ,
चला था तेवरों का सिलसिला शराफत में | 

_______________हर्ष महाजन

आओ वक़्त को जी कर देखें


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आओ वक़्त को जी कर देखें, 
दर्दीले हैं गम पी कर देखें |
मय छलके शरबती आँखों से 
लरज़ते होंटों से पी कर देखें |

________हर्ष महाजन

मैंने माना है तू हाथों की लकीरों में नहीं


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मैंने माना है तू हाथों की लकीरों में नहीं,
पर दुआ आज भी मैं तेरे लिए करता हूँ |

तू मुक़द्दर न सही पर गिले से खारिज हूँ ,
हो वज़ह कुछ भी रकीबों से पर मैं डरता हूँ |

हुआ जो मुझ से जुदा मुड के तूने देखा नहीं,
आखिरी खत तेरा पढ-पढ़ के रोज़ मरता हूँ |

अब तलक तुझको मैं अलविदा भी कह न सका,
ख़्वाबों में रोता मगर, सुबह मैं मुकरता हूँ | 

___________हर्ष महाजन

Monday, September 23, 2013

इतनी मेहरबानी शख्स वो मुझपे करने लगा


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इतनी मेहरबानी शख्स वो मुझपे करने लगा, 
मेहमां बन के मेरे दिल पे अब वो मरने लगा |
न जाने किस तरह कमबख्त दिल में आग लगी,
मेरी इन साँसों में वो शख्स अब तो चलने लगा |

________________हर्ष महाजन 

contd....

Friday, September 20, 2013

हर कोई मुझसे मोहब्बत का दम भरता मगर


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हर कोई मुझसे मोहब्बत का दम भरता मगर, 
उनमें साहिल नजर आये मुझे कोई बात बने |

_______________हर्ष महाजन

न हों सकेंगी कभी कम तुम्हारे ख्यालों की बुलंदियां

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न हों सकेंगी कभी कम तुम्हारे ख्यालों की बुलंदियां ,
ये कलम की रोशनाई तेरी मोहब्बतों से ही तो पाई है |

_______________________हर्ष महाजन

Thursday, September 19, 2013

दोराहे पर छोड़ा उसने मगर तपिश अक्सर जान जाती


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दोराहे पर छोड़ा उसने मगर तपिश अक्सर जान जाती है, 
अपनी यादों के टुकडे कुछ फिर मेरे दिल में टांग जाती है |

_________________________हर्ष महाजन

कितने खौफनाक होंगे वो मंजर जब मोहब्बतें खफा हो जाएँ,

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कितने खौफनाक होंगे वो मंजर जब मोहब्बतें खफा हो जाएँ, 
फकत इतना ज्यूँ जिस्म से धीरे-धीरे नाखून हटा लिए जाएँ |

_______________________हर्ष महाजन 

Wednesday, September 18, 2013

वो आये कुण्डलियाँ देख, लोगों के नक्षत्र संवारने


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वो आये कुण्डलियाँ देख, लोगों के नक्षत्र संवारने ,
न जाने वो खुद क्यूँ अपने ग्रहों की दशा भुला बैठे |
उम्र-भर किये रतजगे उसने मुझ संग धुप-छाँव में,
फिर आज क्यूँ खुद को इक गहरी नींद सुला बैठे | 

______________हर्ष महाजन

सोचता हूँ कि क्यूँ बुझा दिया है तूने अब कमरे का दिया


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सोचता हूँ कि क्यूँ बुझा दिया है तूने अब कमरे का दिया,
शायद अपने साए को, क्यूँ साथ जगाऊँ ये सोचती होगी |

____________________हर्ष महाजन

मुद्दतों बाद पायी है अब ज़हन में कतार आतिश-ए-इश्क की


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मुद्दतों बाद पायी है अब ज़हन में कतार आतिश-ए-इश्क की,
किस से पूछूं परवाज़, मेरी ज़िन्दगी का मरकज़ तू ही तो है | 

_____________________हर्ष महाजन 


परवाज़=उड़ान/बुलंदियां 
मरकज़= केन्द्र बिन्दु

Tuesday, September 17, 2013

महफ़िल में उसकी तुनक-मिजाजी से बहुत परेशान हूँ मैं


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महफ़िल में उसकी तुनक-मिजाजी से बहुत परेशान हूँ मैं,
अब कैसे उसे जिगर से अलग कर दूं आखिर इंसान हूँ मैं |

________________________हर्ष महाजन

Monday, September 16, 2013

ग़ज़ल उठी जो दिल से फिर उन्ही पे ख़त्म हुई


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ग़ज़ल उठी जो दिल से फिर उन्ही पे ख़त्म हुई ,
मुसलसल मेरे बहे अश्क.......उनकी रस्म हुई |

खुदा भी जाने है अश्कों ......की जुबां होती कहाँ ,
ये पीड़ा गुज़री हद से पर.......कहे वो खत्म हुई |

प्यार किस्मत है, मेहरबाँ....सभी पे होता कहाँ,
 किसी को ज़िन्दगी मिली...किसी की भस्म हुई |

मैंने दिल से तो नज़्म....गीत ग़ज़ल बहुत कहे, 
मगर कसम दी ग़ज़ल गीत उन्ही की नज़्म हुई |

शराब पीता सुबह-ओ-शाम....... गम कैसे कटे,
   न जाने इंतकाम कैसा..........कहानी ख़त्म हुई | 

___________________हर्ष महाजन

अपनी तस्वीर मैं फेसबुक पे, दिखा लूं तो चलूँ


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अपनी तस्वीर मैं फेसबुक पे, दिखा लूं तो चलूँ,
दिल के अरमान को उसमें मैं मिला लूं तो चलूँ |

काश इक दौर मोहब्बत का फकत मुझ पे चले,
फिर मैं उनको भी ग़ज़लों में सुना लूं तो चलूँ |

मुझको इक शौक सितमगर हों मिरे बहुत यहाँ,
फिर मैं ख़त उनके दरों से भी, उठा लूं तो चलूँ |

दिल के आईने में .. सजा ले कोई तस्वीर मेरी,
तलब इतनी कि मोहब्बत को मिटा लूं तो चलूँ |

काश सब भूल कर मुझ पर ही वसीयत कर लें,
फिर भरा जाम मैं होटों से..... लगा लूं तो चलूँ |

________________हर्ष महाजन

आतंवाद क्यूँ ( हायकू )


मेरे दो हायकू 
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"आतंवाद क्यूँ, 
हैं चोर जब सारे 
किसे पुकारें "


"अँधा कानून 
लुटती जब कन्या
दर्शक मूक "

____हर्ष महाजन

इस तरह मुझको न करो दूर ख्यालों की तरह


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इस तरह मुझको न करो दूर ख्यालों की तरह,
उम्र कूचे में कटी तेरे ........निवालों की तरह | 
ये तेरा हुस्न लाजवाब और नशा अखियों का ,
खुद ही पी लूँगा अब ज़हर के प्यालों की तरह |

________________हर्ष महाजन

Sunday, September 15, 2013

ज़िन्दगी कुर्बतों की चाहत में उनके छल से भी हम बहलते र


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ज़िन्दगी कुर्बतों की चाहत में उनके छल से भी हम बहलते रहे,
तंज़ खंज़र की तरह सहते हुए.... आह भर-भर वहीँ टहलते रहे |
हम न होते तो होता और कोई जिनके चर्चे शहर में चलते वहाँ,
फिर भी किस्मत की डोर थामे हुए लौटे आखिर थे उनसे छलते हुए |

_____________________हर्ष महाजन

Qurbat=closeness

जिस जुल्मी दिल के आईने में हैं प्यार की मशाल


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जिस जुल्मी दिल के आईने में हैं प्यार की मशाल,
तुम दिल को रखना काबू में फिर देख उसकी चाल |
जब-जब उठेगा रिश्तों पर... कोई ऐसा इक सवाल,
पल-भर में फिर तुम देखना उस रिश्ते का कमाल |

____________________हर्ष महाजन

अपनी बेबसी पर कभी खुद को जलाया न करो

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अपनी बेबसी पर कभी खुद को जलाया न करो,
खातिर दुनिया, कभी खुद को अजमाया न करो |
जब खुदा खुद ....तेरे दामन में दुआ भरने लगे ,
अपने दिल पर तुम कभी ज़हन का साया न करो |

___________________हर्ष महाजन

कुछ तो अश्क ऐसे भी हैं जिनकी जुबां होती नहीं

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कुछ तो अश्क ऐसे भी हैं जिनकी जुबां होती नहीं,
फिर कुछ  लफ़्ज़ों से मोहब्बत भी बयां होती नहीं |
जब मिलेगा वो अलख प्यार तो रूह सब मांगेगी,
गर खुदा चाहे भी किस्मत में खिज़ां होती नहीं |
________________हर्ष महाजन

Sunday, September 8, 2013

मुझको कोई भी शिकायत नहीं तुझसे लेकिन

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मुझको कोई भी शिकायत नहीं तुझसे लेकिन,
पर ये चाहत है कि खुद अपनी हिफाज़त दे दे |

जाने क्यूँ आते हैं आंसू मुझे मेहमां की तरह,
उनको चाहत है सफर की उन्हें इज़ाज़त दे दे |

टूटकर भी कभी शीशे भी जु ड़ा करते हैं क्या ,
ऐ खुदा टूटा दिल जोडूं, तू इबादत दे दे |

मुझको थी प्यास तुझे पी लूं समंदर की तरह ,
पर दो घूँट पीने को, कर लूं ये हिमाकत दे दे |

मैंने ज़न्मों से है चाहा तुझे साहिल कि तरह,
मेरे ज़ख्मों को तू रिसने की रिआयत दे दे |

शायद बुझती हुई लौ है मेरी आखिरी है चमक,
आज दिल में मुझे थोड़ी सी रियासत दे दे |

_________________हर्ष महाजन

शख्स वो खुद ही म्यान में जा बैठे

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शख्स वो खुद ही म्यान में जा बैठे,
मिजाज़ गर्म था, शान में जा बैठे |
कौन रुकेगा जब शिकार कच्चा हो,
गफलत में खुद सुलेमान बन बैठे |

__________हर्ष महाजन

अन्न-शन्न कर गयी कलम अब मन मस्तिष्क भी संग हुए,

बंदिश मुक्त एक भाव
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अन्न-शन्न कर गयी कलम अब मन मस्तिष्क भी संग हुए,
खो गया इक-इक अल्फास ज़हन का, कोशिश की हुडदंग हुए |

___________________हर्ष महाजन

Saturday, September 7, 2013

भूल कहाँ अब सकता कोई, तारीखें हिन्दुस्तान की



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भूल कहाँ अब सकता कोई,  तारीखें हिन्दुस्तान की,
सुभाष भगत आज़ाद ने खायी, चोटें जब तूफ़ान की |
लुटा था इक बस सोने जैसा, शहर शून्य नादानी से,
बटी सरहदें लुटे थे चश्में रुकी वो आग इंतकाम की | 
 

________________________हर्ष महाजन

मैं सिफर आज भी था प्यार में कल भी यारो


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मैं सिफर आज भी था प्यार में कल भी यारो ,
इस मोहब्बत में करूँ कैसे कोई छल यारो |
जो होती उनसे मुलाक़ात तसव्वुर में कभी ,

यकीं से कहता 'हर्ष' सबसे अब संभल यारो |

_________________हर्ष महाजन

Thursday, September 5, 2013

उनके रुखसार पे अश्कों का सफ़र खूब हुआ

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उनके रुखसार पे अश्कों का सफ़र खूब हुआ,
बेवफाई का था ज़िन्दगी पे असर खूब हुआ |

उम्र भर सहते रहे ज़ख्म जो सीने में दफ़न,
रफ्ता-रफ्ता उनकी आँखों में जिकर खूब हुआ |

उनकी मख्मूर निगाहों ने पिलाई थी बहुत,
बिन पिए असर शराबों का मगर खूब हुआ |

सरहदें टूट गयीं बाहों से फिसले वो मगर,
लुट गए खूब जिकर इधर-उधर खूब हुआ |

ये मोहब्बत तो नहीं आग का दरिया लेकिन,
उनको महबूब बताने का सफ़र खूब हुआ |

___________हर्ष महाजन

मख्मूर=मादक

लकीरें हाथों की नसीबा पे असर रखती हैं

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लकीरें हाथों की नसीबा पे असर रखती हैं ,
पाँव खाए है जो  ठोकर वो खबर रखती है |
तू संभलकर जो चलेगा ये मुकद्दर ही सही,
ज़िन्दगी उसकी अमानत है उधर रखती है |

____________हर्ष महाजन

Wednesday, September 4, 2013

कुछ हैं मोती जो बिखरने के लिए होते यहाँ

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कुछ हैं मोती जो बिखरने के लिए होते यहाँ,
उनके दिल में नहीं होता कोई मजबूत जहाँ |
कोई धागा कोई साथी कोई भी दोस्त यहाँ ,
कौन परखेगा खुदा भी तो बता दो है कहाँ |

_______________हर्ष महाजन

चैन-ओ-सकूं जब भी दिल को सहलाने लगे


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चैन-ओ-सकूं जब भी दिल को सहलाने लगे,
फकत वही ख्वाब अब बिस्तर कहलाने लगे |

_______________हर्ष महाजन

सोचा इक ग़ज़ल मैं उसके नाम कर दूँ



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सोचा इक ग़ज़ल मैं उसके नाम कर दूँ ,
दिल से गुनगुनाऊँ फिर मैं शाम कर दूँ |

पर हाथों की लकीरें कुछ बोलती नहीं,
खुद को सोचा इश्क में बदनाम कर दूँ |

मजहबी हलकों में इश्क खो रहा असर,
ग़ज़लें ऐसी कह दूँ क़त्ल-ए-आम कर दूं |

मुश्किल के दौर में है शब् नसीब की,
कह दो ये नसीबा मैं नीलाम कर दूँ |

यादें दिल में क़ैद अब क्या सजा मिले,
दोस्त कहो शहर में सर-ए-आम कर दूँ |

_____________हर्ष महाजन

Tuesday, September 3, 2013

शबाब-ए-हुस्न का मुझको भी कोई अंदाजा न था

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शबाब-ए-हुस्न का मुझको भी कोई अंदाजा न था,
वरना शिकवे-ओ-शिकायत की भी गुंजाईश न थी |
मेरी तहरीरों ने पलकों को भी कभी नम न किया ,
आज दरिया की तरह अश्कों की पैमाईश न थी  |

___________________हर्ष महाजन

Sunday, September 1, 2013

कभी हाँ खुद की हद को खुद खुदा भी भूल जाता है


______जन्म दिन बहुत बहुत मुबारक _______

कभी हाँ खुद की हद को खुद खुदा भी भूल जाता है,
किसी का लाल मेरा ये फ़र्ज़ अब हर साल आता है |

तुझे खुशियाँ मुबारक सब..मगर तू दे दुआ उसको ,
खुदा हर साल मुहब्बत से...तेरा दामन सजाता है |

जन्म दिन तेरे साहिल का सजा ले खुद को फूलों से,
अभी 'सौरभ' फलक से तोड़ कर तेरे ख्वाब लाता है |

दुआ है कामयाबी के शिखर ..पे नाम हो दोनों का,
मगर हिम्मत भी रखना मुश्किलों का दौर आता है |

जन्म दिन आज ऐसा.. सुन रहा शहनाइयां इतनी,
खुदा भी आसमां पे आज सितारे खूब चमकाता है |

दुआ मेरी खुदा से तुझको अब से कोई गम न हों ,
चाहे न हों यहाँ हम भी चलन खुद ही समझाता है |

जन्म दिन आज तेरा हमको दिल से खूब सुहाता है,
तेरे संग संग मेरे रग रग में खुशियाँ खूब चलाता है |

जन्म-दिन बहूत बहूत मुबारक सौरभ चावला जी

_______________हर्ष महाजन

तुझे तड़पाने को दिलभर.....हमारा जी नहीं करता

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तुझे तड़पाने को दिलभर.....हमारा जी नहीं करता,
मगर कुछ लुत्फ़ लूं तुमसे ये अक्सर भूल जाता हूँ |
कभी पावों में ठोकर जब पड़ी तो खुद ही संभला मैं ,
मगर रुखसार पर यूँ देख कशिश सब भूल जाता हूँ |

____________________हर्ष महाजन