Saturday, December 7, 2013

कलम चली तो ग़ज़ल बनके वो मचलने लगी



 कलम चली तो ग़ज़ल बनके वो मचलने लगी,
लबों पे  मेरे वो रख लब... शराब पलटने लगी ।
जो देखी मैंने शरारत .....थी उसकी नज़रों में ,
गुनाह जो भी हुआ.... उससे वो बिखरने लगी ।

_____________हर्ष महाजन

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