Sunday, March 30, 2014

काश तू मेरी किस्मत की लकीरों के अंदर देखती

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काश तू मेरी किस्मत की लकीरों के अंदर देखती,
गर होता इश्क़ मुझसे तो तू मुझमें समंदर देखती।


ज़िन्दगी तो तन्हां है यूँ ही अकेली नदिया सी मेरी,
गर होता हौंसला तुझमें तो मुझमें सिकंदर देखती । 


मुक़द्दर में चेहरों के...... बहुत से हजूम तो थे मेरे,
कोई होता चेहरा तुझसा तो मुझमें कलंदर देखती । 


छोड़ दिया सब कुछ मैंने देखकर गैर हाज़िरी तेरी,
मुक़द्दर जो होता तेरा…तो मुझमें पैगम्बर देखती ।

किस तरह निभाऊंगा ये सुफिआना अंदाज़ बिन तेरे,
काश होता कोई वज़ूद तेरा तो मुझमें बवंडर देखती ।


_____________हर्ष महाजन

Saturday, March 29, 2014

किस हक़ से इश्क का नया दौर चला सकते हैं हम

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किस हक़ से इश्क का नया दौर चला सकते हैं हम,
इक आशियाँ जो दिल में है कैसे जला सकते हैं हम ।
उठाने को सितम तो सभी मंज़ूर है मुझे 'हर्ष'  मगर,
हाथों में नए दोस्त की लकीर बना सकते हैं हम ।


---------------हर्ष महाजन

Kis haq se Ishq ka naya dour chala sakte haiN ham,
Is aashiyaN jo dil meiN hai kaise jalaa sakte haiN ham.
Uthaane ko sitam to sabhi manzoor haiN mujhe'harash' par,
haathoN meiN naye dost ki  lakeer bana sakte haiN.


______________Harash Mahajan

दिलों के शौक महफ़िलों में आके भूल गए



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दिलों के शौक महफ़िलों में आके भूल गए,
तराने यूँ चले कि...…साजों के असूल गए ।
कभी चले है बर्तनों पे .…...जैसे उँगलियाँ ,
लगा यूँ ऐसे जैसे बचपनों.…में  झूल गए ।
 


DiloN ke shouk mahfiloN meiN aake bhool gaye,
Tarane yuN chale ki saazoN ke asool gaye,
Kabhi chale haiN bartanoN pe jaise ungliyaaN,
laga yuN aise jaise bachpanoN meiN jhool gaye.


_________________Harash Mahajan

कोई तो है ऐसा जिसे ज़िदगी मानता हूँ मैं

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कोई तो है ऐसा जिसे ज़िदगी मानता हूँ मैं,
पहचानता तो नहीं यकीनन जानता हूँ मैं ।

असर तो है उनकी जुल्फों से आती हवाओं में,
देखा नहीं है उनको पर अपना मानता हूँ मैं ।




koii toh hai aisa jise zindagi maanta huN maiN,
pahchanta to nahiN yaqeenan jaanta huN maiN.
Asar toh hai unki zulfoN se aati hawaoN meiN,

Dekha nahiN hai unko par apna maanta huN maiN


_______________Harash Mahajan

Wednesday, March 26, 2014

क्यूँ कभी तेरे दिल को मेरे दर्द का अहसास नहीं होता

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KyuN kabhi tere dil ko mere dard ka ahsaas nahiN hota,
Mujhse is tarah dillagi karogi
kabhi vishwas nahiN hota .

क्यूँ कभी तेरे दिल को .....मेरे दर्द का अहसास नहीं होता,
मुझसे इस तरह दिल्लगी करोगी
कभी विश्वास नहीं होता ।

_________________हर्ष महाजन

हे कुन्तेय !! --- व्यंग

व्यंग
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कुंती
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हे कुन्तेय !!
तू धन्य है !!!
इतनी दूरदर्शिता !
तूने द्वापर में
ऐसा फैसला सुनाया ?
कलयुग कैसा होगा
ये था चेताया ?
सच
क्यों
किया जारी,
ऐसा तूने फरमान ,
कर दिया
नारीत्व का इस तरह अपमान ?

---------हर्ष महाजन

Sunday, March 23, 2014

मोदी हिन्द की आन का, एकहू ही फरमान

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मोदी हिन्द की आन का, एकहू ही फरमान,
जनता हिंदुस्तान की, कस रही अब कमान ।
कस रही अब कमान,..फिर भ्रष्टाचार घटेगा ,
खिलेगा फूल कमल..... यहां से हाथ घटेगा ।
कहे 'हर्ष' दो बदल,.....मोनि बाबा की गोदी ,
हाथ में ले लो कमल,.. तभी आएगा मोदी ।

____________हर्ष महाजन

वो शख्स सवालों में नज़र आने लगे



वो शख्स सवालों में नज़र आने लगे,
जाने क्यूँ वो खुद से ही बतियाने लगे ।

बिन मिले लगा कर तोहमतें चेहरों पे,
बे-सबब अंदाज़-ए -बयाँ बताने लगे ।

किसी तरह झांकें वो दिल के दरीचों में,
शायद खुद ये रिश्ता समझ आने लगे ।

कब तक चलेंगे रिश्ते उधारी समझ से ,
इक इक कर शायद इन को गंवाने लगे ।

नहीं होता इक सा इम्तिहान सबका यारों
जब आएगा समझ शायद पछताने लगे ।

___________हर्ष महाजन

मैं संजय हूँ -- व्यंग

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व्यंग
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मैं संजय हूँ
महाभारत का नहीं
कलयुग का !
अँधा हूँ !
जन्मांध नहीं हूँ।
महाभारत में
दूरदृष्टि से,
मैंने सच्चाई परोसी थी ।
आजकल धूर्त दृष्टि से
झूठ परोस रहा हूँ मैं ।

-----हर्ष महाजन

हे अर्जुन ! --- व्यंग

… 

व्यंग
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हे अर्जुन !
नारित्व का
इतना बड़ा अपमान ?
अपनी ही पत्नी को.
बाँट लिया,
पाँचों भाईयों में,
एक समान ?



___हर्ष महाजन 

मैं धृतराष्ट्र हूँ -- व्यंग

व्यंग
++++++

मैं धृतराष्ट्र हूँ !
महाभारत में जन्मांध था ,
और अब
बना दिया गया हूँ ।
पहले बोलता था,
पर कोई मानता नही था ।
ये कलयुग है ।
इसलिए
बोलता नहीं हूँ ।
उस वक़्त ! पांडवों को
ठग कर,
हस्तीनापुर पे राज किया,
अब
पूरी जनता को
बेवक़ूफ़ बनाकर,
हिन्दुस्तान पे कर रहां हूँ ।
मगर अब!!!
सहारा चाहिए,
इक शकुनि का,
महाभारत वाला नहीं ?
कोई
'आम' सा !!

------हर्ष महाजन

Thursday, March 13, 2014

उनका हर जुनून मेरे लिए कहर का सबब है

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उनका हर जुनून मेरे लिए कहर का सबब है,
अबकि उनका प्यार मेरी हस्ती ही बदल गया ।
किस तरह मिटाऊँ अब हाथ की नयी लकीरों को ,
मेरी ज़िंदगी में पांब रखते ही सब खलल गया ।

–--–---–------हर्ष महांजन