Saturday, May 31, 2014

कितने अनजान थे हम हर्फ़ लुटाते रहे

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कितने अनजान थे हम हर्फ़ लुटाते रहे,
यूँ ही गैरों को हम ये हुनर सिखाते रहे ।
ये तो सोचा ही नहीं, तेरे होंगे न कभी,
मेरे शब्दों से मुझपे छुरियाँ चलाते रहे ।


-------------हर्ष महाजन

मैंने क्या जुर्म किया उसको मुझसे क्या गिला

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मैंने क्या जुर्म किया, उसको मुझसे क्या गिला,
गर सजा मुझको मिली....वो बताएं क्या मिला ।
गर अदालत है कोई.....तो बता ज़ुल्म-ए-वफ़ा,
वरना इस जुर्म पे खुदा, उसको देगा क्या सिला ।

------------हर्ष महाजन

  

Thursday, May 29, 2014

मैं वो पत्ता जिसे पतझड़ ने रिहायी भी न दी

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मैं वो पत्ता जिसे पतझड़ ने रिहायी भी न दी,
बता तू कैसा शज़र जिसने जुदायी भी न दी ।
ये दर्द ऐसा मिला जैसे.....अपना वो भी नहीं,
बता ये कैसा मुक़द्दर कि.....तन्हायी भी नहीं ।

-------------हर्ष महाजन

Wednesday, May 28, 2014

अब कमल फूल के शासन में हर शाख बदलने वाली है

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अब कमल फूल के शासन में.... हर शाख बदलने वाली है,
हर शज़र के उजड़े पत्तों को, कमल साख निगलने वाली है ।
जितनी भी खर पतवार यहाँ, खुद सूख जाए तो अच्छा है,
वरना अमन की सीने पे.........तलवार भी चलने वाली है ।

--------------हर्ष महाजन

Monday, May 19, 2014

आस्तीन के सांप कभी दर्शन खुद न देई

कुण्डलिनी छंद
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आस्तीन के सांप कभी........दर्शन खुद न देई,
अंग अंग अपना कहे.......ज्यूँ इक वही स्नेही,
ज्यूँ इक वही स्नेही.....बाकि हर दुश्मन लागे,
समझ लगी जब बात, कटे तब तक सब धागे |
____________हर्ष महाजन

Sunday, May 18, 2014

वो शख्स दिल से उतर गया ये भी सच है गैर निकल गया

इक मुक्तक में थोड़ी तब्दीली ...उम्मीद है मेरे ज़हीन श्रोता इसे ज़रूर पसंद करेंगे.....

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वो शख्स दिल से उतर गया ये भी सच है गैर निकल गया,
पलकों से उतरा अश्क बन पर सकूं था ज़हर निकल गया |
था खुदा का उसमें ज़ज्बा इक हर शख्स उसको अज़ीज़ था,
पर था अना में वो इस कदर कि खुदा का मेहर निकल गया |

_______________हर्ष महाजन

वो शख्स दिल से उतर गया इस तरह

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वो शख्स दिल से उतर गया इस तरह,
पलकों से अश्क उतर गया जिस तरह |
खुदा का कितना ज़ज्बा था कभी उसमें,
आज वो अना में पसर गया उस तरह |

__________हर्ष महाजन

Saturday, May 17, 2014

कितना आसां गुलों पे शक करना

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कितना आसां गुलों पे शक करना,
क्या-क्या जाने अज़ाब गुजरते हैं |

Kitna aasaan guloN pe shaq karna,
kya-kya jaane azaab guzarte haiN.


______हर्ष महाजन

Friday, May 16, 2014

हमने चाहा था उन्हें... अपनी दुआओं में रहे

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हमने चाहा था उन्हें... अपनी दुआओं में रहे ,
इतनी थी उनकी अना अपनी अदाओं में रहे |
रिश्ता तो टूटा मगर, आईने सा बिखर गया,
अब तो चाहत है न नफरत वो वफाओं में रहे |

___________हर्ष महाजन

Thursday, May 15, 2014

मुद्दत से दबे पाँव 'पाँव' यूँ सफ़र करता रहा

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मुद्दत से दबे पांव 'हर्ष' यूँ सफ़र करता रहा,
थी मोहब्बत बे-पनाह कहने से डरता रहा ।

-------------हर्ष महाजन

... पत्थरों के शहर में हैं पत्थरों से लोग अब

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पत्थरों के शहर में...... हैं पत्थरों से लोग अब,
भूल गए रिश्ते सभी अब पत्थरों के शौक अब ।
दिल कभी थी मंजिलें, जो प्यार से महफूज़ थी,
आज रिश्तों की जगह हैं,  पत्थरों के सोग अब ।

----------–--हर्ष महाजन

Tuesday, May 13, 2014

बदली में है चाँद दीवाना पूछेगा

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बदली में है चाँद दीवाना पूछेगा,
मुझको मेरा यार पुराना पूछेगा |

शक्ल से मेरी नफरत उसको बेपनाह ,
खो गए तो ठोर ठिकाना पूछेगा |

इन्तहा यूँ ज़ुल्म की लगता हो गयी,
करके वो मुझको बेगाना पूछेगा |

जाग उठे नफरत न मेरे दिल में अब,
फिर वो मिलने का बहाना पूछेगा |

टूटी जो तस्वीर लिए था दिल में  'हर्ष'
कहाँ गयी सारा ज़माना पूछेगा |

_______हर्ष महाजन

Sunday, May 11, 2014

जब सवालों में नज़र आने लगी

------माँ फ़क़त माँ------


जब सवालों में नज़र आने लगी,
माँ खुद मुझ से बतियाने लगी ।

अनगिनित सिलवटें लिए चेहरे पे,
वक़्त पे खा लिया कर बताने लगी।

किस तरह झांका दिल के दरीचों में,
हर आने वाली तकलीफ समझाने लगी ।

कब तक चलेंगे रिश्ते दूर दूर रह कर,
फिर ले ले सबका नाम दोहराने लगी ।

नहीं होता इक सा वक़्त बताया उसने,
इक पीड़ा थी चेहरे पे जिसे छुपाने लगी ।

कितना दर्द होता है फ़क़त एक दिन में,
सदियाँ लग जायेंगी कह कराहने लगी ।

___________हर्ष महाजन

Saturday, May 10, 2014

उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा


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उसको लफ्ज़ ए मुहब्बत सिखाता रहा,
नज़्म वो लिखती .....धुन मैं बनाता रहा ।

उसकी तहरीरें दिल को.....चुबती रहीं,
मिसरा दर मिसरा उसका रुलाता रहा ।

हम मुहब्बत में शायद.......नाकाम रहे,
फिर भी दिल मैं.....उसी पे लुटात़ा रहा ।

मैंने सदियों कही....गम पे ग़ज़लें बहुत,
पर मैं नज्में उसी की........सुनाता रहा ।

रूठ कर जब वो दिल से हुई बे-दखल ,
जाने अफ़साने....जग क्या बनाता रहा ।

उम्र भर मैकदा से.............रहा दूर दूर,
अब मैं बज्मों में पीता..... पिलाता रहा ।

--------------हर्ष महाजन

Wednesday, May 7, 2014

देखकर शख्स हमें मुस्कराते रहे


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देखकर शख्स....... हमें मुस्कराते रहे,
दूर तक हमको....... वो याद आते रहे ।

हम भी थे अजनबी, अजनबी वो भी थे,
तनहा-तनहा सफ़र......हम निभाते रहे।

दूर तक थी दिलों में.. खलिश सी बहुत,
जब सफ़र टूटा.........आँखें मिलाते रहे ।

क्यूँ ऐसे अनजान ज़ख्मों में....दर्द बहुत,
सोचकर उम्र भर.........सर खुजाते रहे ।

तरंगे-दिल से तो हम उनके...परेशान थे,
फिर वो अक्स भी उनके.....सताते रहे ।

हम मिलेंगे शायद छोड़ा जिस मोड़ पर,
सहरो शाम वहां..........दीप जलाते रहे ।

हमसफ़र हमको अपने......अज़ीज़ बहुत,
पर वो शख्स दिल में घर को बनाते रहे ।

हमने जब जब ज़हन से, था पटका उन्हें,
रख वो ख्वाबों में..... जुल्फें सजाते रहे ।

जान 'पर' इश्क अनजान रहे हमसफ़र,
सोच ये अब 'हर्ष'.... अश्क बहाते रहे ।

पर=गैर

---------------हर्ष महाजन

Tuesday, May 6, 2014

... मैं भी था अजनबी,अजनबी वो भी था,


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मैं भी था अजनबी, अजनबी वो भी था,
तनहा-तनहा सफ़र.......हम निभाते रहे।
दूर तक थी दिलों में.. .खलिश भी बहुत,
जब था टूटा सफ़र.... अश्क बहाते रहे।

---------------हर्ष महाजन

... जितने भी दे दे तू गम सब से गुज़र जाऊंगा,


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जितने भी देगी तू गम सब से गुज़र जाऊंगा,
गर ज़ख्म तुझको मिलेगा तो बिखर जाऊंगा ।
तू है माझी मैं मुसाफिर हूँ तेरी कश्ती का,
जब भी चाहेगी तू मुझसे मैं उतर जाऊंगा ।

--------–-हर्ष महाजन

किस तरह इक शख्स जो हमने उसे था मिला दिया


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 Kis tarah ik shaks jo hamne usey tha mila diya,
Ik umra ka rishta tha jo ab ajnabi sa bana diya.
Tazzub hua mujhko bhi ab wo yaar badle is tarah,
JyuN ho tawayaf shahar ki basti ko jung me dubaa diya

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किस तरह इक शख्स जो हमने उसे था मिला दिया,
इक उम्र का रिधता था जो अब अजनबी सा बना दिया ।
ताज्जुब हुआ मुझको भी अब वो यार बदले इस तरह.
ज्यूँ हो तवायफ शहर की बस्ती को जंग में दुबा दिया ।

---------------हर्ष महाजन

Monday, May 5, 2014

... कोई क्यूँ नहीं उठाता अब उँगली उस तरफ 'हर्ष',


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कोई क्यूँ नहीं उठाता अब उँगली उस तरफ 'हर्ष',
अस्मत जहां पल में अजनबी के हाथ बिक जाती है ।

------------हर्ष महाजन

Sunday, May 4, 2014

छोड़ मुझसे रिश्ता नए रिश्ते की खातिर


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Chhod mujhse rishta naye rishte ki khaatir,
Nikla wo dil se shaks tha dil ka bada shaatir.
Kuch aisi shaksiat liye wo dil ko chhoo gayaa,
Magar wo zind se aise gaya .....jaise musafir.
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छोड़ मुझसे रिश्ता,....... नए रिश्ते की खातिर,
निकला दिल से शख्स था दिल का बड़ा शातिर ।
कुछ ऐसी शक्सियत लिए ..वो दिल को छू गया,
मगर   वो  ज़िन्द  से ऐसे गया   जैसे मुसाफिर।


------------हर्ष महाजन

न हिन्दुओं का हूँ न मुसलमानों का कातिल

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न हिन्दुओं का हूँ न मुसलमानों का कातिल,
मैं ऐसा वक़्त हूँ कि...हूँ इंसानों का कातिल ।
अब ऐसे मुल्क में कहाँ.....कोई राज करेगा,
जो भी करेगा होगा...बे-ईमानों का कातिल ।


--------------हर्ष महाजन

Saturday, May 3, 2014

.तेरा दिल रकीबों का शहर है, मैं हैरान हूँ अब क्या करूँ


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तेरा दिल रकीबों का शहर है, मैं हैरान हूँ अब क्या करूँ,
इन काफिरों के शहर में अब, परेशान हूँ  अब क्या करूं ।
मेरा सब्र मुझ से बिछुड़ गया, तनहायी में है पड़ा हुआ,
अब कुछ ही पल का लगे मुझे, मेहमान हूँ अब क्या करूँ ।

-----------------हर्ष महाजन

Friday, May 2, 2014

राजनीति में आजकल अजीब सा उफान उबलने लगा है

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राजनीति में आजकल अजीब सा उफान उबलने लगा है,
लगता है अब समंदर में खौफनाक तूफ़ान उछलने लगा है ।

किस तरह निभायेंगे उठते हुए ज़लज़ले ये फरेबी लोग,
अप  ही अपने को कह कर बे-ईमान कुचलने लगा है ।


-------------हर्ष महाजन

नफरत से लबरेज़ तो था वो मगर हमदर्द निकला

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नफरत से लबरेज़ तो था वो मगर हमदर्द निकला,
इक पहलू खुदाबन्द उसका दूजा कमज़र्द निकला ।
भरी दुनियाँ में शोहरत से.…. बेहद परहेज़ था उसे,
झेल कर मगर खतरे, कातिलों का सरदर्द निकला ।


-------------हर्ष महाजन

क़ातिल कब तलक दुआओं पर जियेगा,




क़ातिल कब तलक दुआओं पर जियेगा,
फतवे की  मगर सजाओं पर जियेगा । 

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Qatil kab talak duaaoN par jeeyega,
Fatwe ki magar sajaoN par jeeyega.


-------------Harash Mahajan