Wednesday, July 30, 2014

मेरी धड़कन को दुनिया मनाती रही

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मेरी धड़कन को दुनिया.....मनाती रही,
चुप थी बे-दर्दी........हम को रुलाती रही |

दिल था टूटा मगर......मैं न टूटा कभी ,
बे-वफ़ा थी जो नज़रें.........चुराती रही |

इक खलिश थी मुझे,उसको भी रंज था,
जाने फिर क्यूँ वो...मातम मनाती रही |

बात जो कुछ भी थी....बीच उसके मेरे,
बे-वफ़ा गैरों को क्यूँ.........बताती रही |

मैं तो मायूस था.....वो खफा थी मगर ,
मैं भुलाता रहा.......वो याद आती रही |

___________हर्ष महाजन

Tuesday, July 29, 2014

ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ

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ज़िक्र खुद अपने गुनाहों पे किया करता हूँ,
कुछ सवालात सजाओं पे किया करता हूँ |

गम के इस पार जो हस्ती बनायी थी कभी,
दर्द-ए-इज़हार खताओं पे किया करता हूँ |

आदत-ए-इश्क में ख़ाक-ए-जिगर देख लिया,
बे-जुबां शायरी अदाओं पे किया करता हूँ |

उसके इंतज़ार में अब इतनी सजा पायी है,
दिल्लगी आजकल हवाओं पे किया करता हूँ |

मेरी तन्हायी का दिल में खलल इतना हुआ,
अब तो हर ज़िक्र बे-वफाओं पे किया करता हूँ |

___________हर्ष महाजन

Tuesday, July 22, 2014

इखलास-ए-इश्क में क्या करें, आओ मिल के दुनिया ही छोड़ चलें



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इखलास-ए-इश्क में क्या करें, आओ मिल के दुनिया ही छोड़ चलें,
न हो पूरा फ़र्ज़ गर उम्मीद का, तो ख्याल-ए-दुनिया ही मोड़ चलें |
यूँ तो हर तरफ बे-रुखी सी है.............धोखा फरेब खामोशी भी है,
क्यूँ न बे-जुबां इन बुतों से हम, खुशी-गम का रिश्ता ही तोड़ चलें |  

________________________हर्ष महाजन

Friday, July 18, 2014

सदियों से बिछुड़ी रूहें हम, जाने आज ये क्यूँ उदास हैं

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सदियों से बिछुड़ी रूहें हम, जाने आज ये क्यूँ उदास हैं,
तन्हा सी ढलती उम्र में.......मिलने की अब क्यूँ आस है ।

सागर सा रिश्ता था कभी, नदिया सा फिर क्यूँ बंट गया,
कोई ज़ख्म भी था मिला नहीं......क्यूँ दर्द का अहसास है ।

मेरा हमसफ़र अब संग मेरे, जाने फिर भी क्यूँ परेशान हूँ ,
शायद है टुकड़ा दिल का इक, कोई अब भी उसके पास है ।

----------------------------------हर्ष महाजन

Thursday, July 17, 2014

मुझे गम नहीं बे-वफ़ा है तू

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मुझे गम नहीं बे-वफ़ा है तू,
मुझे गम है मेरी खता है तू ।
क्यूँ इल्म मुझसे दगा किया,
इस ज़िन्द का काल सफा है तू ।

-------------हर्ष महाजन

Thursday, July 10, 2014

अपने लिए जी लें तो क्या, अपने लिए मर लें तो क्या



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अपने लिए जी लें तो क्या, अपने लिए मर लें तो क्या,
लहरों से,रिश्ते ताक़ पर, उन पर ग़ज़ल पढ़ लें तो क्या |

न थकन कोई न खलिश कोई, महफ़िल-ए-मोहब्बत सज़ गयी,
दौर-ए-ग़ज़ल चलता रहा, ये शौक़ हम कर लें तो क्या |


ये ज़िंदगी है अजीब सी, है मौत उसकी हमसफ़र,
नोक-ए-कलम सी मुख़्तसर, अब दोस्ती सर लें तो क्या |

हम हैं तलाश-ए-यार में, कोई ज़मीं छोडी नहीं,
गर महज़बी हो क़ैद में, कोई
फ़ुसूँ कर लें तो क्या |

अब रास्ता लगे धूल सा, वो भी ज़बीं पे लिखी नहीं,
अब क्या खुदा से गिला करें, इस गम में अब मर लें तो क्या |

____________हर्ष महाजन







फ़ुसूँ = जादू
ज़बीं = पेशानी.