Friday, October 31, 2014

आतिश-ए-जिस्म का उसने इक फलक ढूंढ लिया

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Aatish-e-zism ka usne ik falak dhoondh liya,
Apna dil apni tabahi ka sabak dhoondh liya.
Jisne dekha na kabhi husn kadar kaise kare,
kis tarah zinda, hua laash farak dhoondh liya.

___________Harash Mahajan


आतिश-ए-जिस्म का उसने इक फलक ढूंढ लिया,
अपना दिल अपनी तबाही....का सबक ढूढ़ लिया |
जिसने देखा न कभी हुस्न..........कदर कैसे करे,
किस तरह ज़िंदा, हुआ......लाश फरक ढूंढ लिया |

________________हर्ष महाजन

Friday, October 24, 2014

हासिल-ए-इश्क समझना... इतना भी तो असां नहीं है 'हर्ष

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Haasil-e-ishq samajhna itna bhi to asaaN nahiN hai 'harash'
ik umra beet jaati hai aankh se dil tak ka safar karne meiN.

__________________________Harash Mahajan

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हासिल-ए-इश्क समझना... इतना भी तो असां नहीं है 'हर्ष',
इक उम्र बीत जाती है आँख से दिल तक का सफ़र करने में |


_____________________________हर्ष महाजन

Thursday, October 23, 2014

दुश्मन दुश्मन की तस्वीर लिए फिरते हैं

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दुश्मन दुश्मन की तस्वीर लिए फिरते हैं,
अपने अपनों की जागीर लिए फिरते हैं |
अब इतने भी तो बदनसीब नहीं हैं हम 'हर्ष'
हम दिल में उनकी ताबीर लिए फिरते हैं |

_______हर्ष महाजन

कई दुश्मन दुश्मनों के बहुत ही करीब देखें हैं

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कई दुश्मन दुश्मनों के बहुत ही करीब देखें हैं,
उम्र गुजरी मुकालते में ऐसे बदनसीब देखे हैं |
किस तरह नपेगी ये दोस्ती इस माहौल में 'हर्ष'
हमने तो दोस्तों में भी बहुत से रकीब देखें हैं | 


___________हर्ष महाजन

Monday, October 13, 2014

कितने फसादों से भरा.....किस्सा कह देते हो 'हर्ष'

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कितने फसादों से भरा.....किस्सा कह देते हो 'हर्ष',
लिखने को मुझसे जियादा कमज़र्फ़ यहाँ कोई नहीं |

___________________हर्ष महाजन

Sunday, October 12, 2014

मुझको अफ़सोस है सरहद पे कलम चलने लगी

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मुझको अफ़सोस है...सरहद पे कलम चलने लगी,
फिर शहीदों की चिताओं पे........आँखे भरने लगी |
हर तरफ अब तो.....सुलगता हुआ सहरा सा जहाँ,
कुछ तो दुश्मन कुछ अपनों का सफ़र करने लगी |

______________हर्ष महाजन

Wednesday, October 8, 2014

उनकी आँखों में मुझे लुत्फ़-ए-शराब आता है

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उनकी आँखों में मुझे, लुत्फ़-ए-शराब आता है,
वर्ना नफरत-ओ-शिकायत ही...जुबां पर होती |
उनकी जुल्फों के तले...होतीं नश-ए-मन नींदें,
वर्ना अब तक तो वो खंज़र के निशां पर होती |

______________हर्ष महाजन

चाहूँ मैं तब मुलाक़ात हो..........उनमें ग़ज़ब जज़्बात हों

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चाहूँ मैं तब मुलाक़ात हो..........उनमें ग़ज़ब जज़्बात हों,
कुछ फूल लब पे खिल उठें.....कुछ आँखों में सवालात हो |
गर रो पडूं , बेकरार हो.....तूफ़ान-ए-गम भी गर साथ हो,
न रहे ये इश्क मोहताज़ फिर, कुछ इस तरह शुरुआत हो |


_______________________हर्ष महाजन

मेरी दोस्ती है गुनाह अगर फिर बता तू इसका हिसाब क्या



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मेरी दोस्ती है गुनाह अगर फिर बता तू इसका हिसाब क्या,
जो भी उम्र बीती है तेरे संग फिर बता तू इसका जवाब क्या |
मेरी सल्तनत जो तुझी से थी, क्यूँ रियासतों में है बंट गयी,
जो मिला मज़ा इस क़ैद का था रुआब क्या और ख्वाब क्या | 


___________________हर्ष महाजन