Thursday, April 30, 2015

मुद्दतों बाद मुक्त हुआ हूँ तेरी डायरी से ऐ 'हर्ष'

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मुद्दतों बाद............मुक्त हुआ हूँ तेरी डायरी से ऐ 'हर्ष',
महफ़िल-ए-ग़ज़ल हूँ मगर जुबां पर उतरने से डरता हूँ |


_________________हर्ष महाजन

Tuesday, April 28, 2015

तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई



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तेरी जुल्फों से नज़र मुझसे हटाई न गई,
नम आँखों से पलक मुझसे गिराई न गई |

मैं भी था फूल कभी पर था अंधेरों में खिला,
दिल था जुल्फों में सजूँ मुझसे बताई न गई |


इक वो आवाज़ मेरे दिल से टकराती रही,
दर्द सीने में था पर मुझसे जताई न गयी |


यूँ तो ख़्वाबों में तेरी...जुल्फें लहराती रहीं,
पर दिया-बाती कभी मुझसे जलाई न गई |


अब धुंआ इतना उठा मैं भी खामोश हुआ,
आग इतनी थी जली मुझसे बुझाई न गई |


___________हर्ष महाजन

Thursday, April 23, 2015

दो पलों की रुक्सती क्यूँ ज़ार-ज़ार कर चली

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दो पलों की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली,
दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।

ये ज़ुल्फ़ फिर अदा से अपनी शानों पर बिखेर कर,
चुरा के नज़रें मुझको शर्म सार यार कर चली ।

मुझसे अगर खफा बता मैं ज़िन्दगी बदल चलूँ,
मगर बदलती ये निगाह अब तार-तार कर चली ।

दिल में छवि है इस तरह ज्यूँ हूर की है कल्पना,
तिलिस्मी नज़र को दिल के आर-पार कर चली ।

ज़ुल्म इंतिहा से उसका जब गुज़रता है कभी,
ये अदा भी मुझको उसका तलबगार कर चली ।

------------------हर्ष महाजन

Friday, April 17, 2015

अपने दिल पर किसी का रंग चढ़ाकर तुम भी देखो तो

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अपने दिल पर किसी का.रंग चढाकर तुम भी देखो तो,
अपनी किस्मत में थोड़ी भंग मिलाकर तुम भी देखो तो ।
कभी शरबत सी आँखों से.........तेरी जब नूर टपकें तो,
शराबी आँखों से फिर जंग.....चलाकर तुम भी देखो तो ।

----------------हर्ष महाजन

Monday, April 13, 2015

वो ख्याल ज़िंदगी का कुछ इस तरह किया करती है

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वो ख्याल ज़िन्दगी का कुछ इस तरह से किया करती हैं ,
हर चीस मेरे दिल की......हासिल ए ग़ज़ल हुआ करती हैं ।

-----------------हर्ष महाजन

Saturday, April 11, 2015

अश्कों ने मुझसे पुछा उनसे मैं क्युँ परिशाँ हूँ,

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अश्कों ने मुझसे पुछा उनसे मैं क्युँ परिशाँ हूँ,
गम-ओ-ख़ुशी के दरमियाँ जानूँ न मैं कहाँ हूँ ।

--------------------हर्ष महाजन

Thursday, April 9, 2015

मुझको काज़ल की तरह आँखों में घुल जाने दो



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मुझको काज़ल की तरह आँखों में घुल जाने दो,
रेशमी जुल्फों को........मेरे रुख पे चले आने दो |
जाने कब तक है मिली अब ये महोलत मुझको,
अपनी बाहों में तुम, मुझे आज बिखर जाने दो |

___________हर्ष महाजन

Thursday, April 2, 2015

क्यूँ दिया करते हो दस्तक मेरे खुश्क ज़ख्मों पर

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क्यूँ दिया करते हो दस्तक मेरे खुश्क ज़ख्मों पर,
अब लगाके नमक मेरा ज़मीर जगाया करता हो |

______________हर्ष महाजन