Wednesday, July 22, 2015

बरबादियों की...रुदाद ग़ज़ल

...

बरबादियों की...रुदाद ग़ज़ल,
बदनामियों का जवाब ग़ज़ल |

हो अजब सी दास्ताँ हुस्न गर,
ज़ख्मों भरी है अज़ाब ग़ज़ल |


ज़िंद से जहाँ हो....गिला बहुत ,
दर्द-ए-निहाँ सी सवाल ग़ज़ल |


बेताबियों का हो......सबब जहाँ,
लबरेज़ हुस्न-ओ-ज़माल ग़ज़ल |


आँखों में अनहद अश्क हो जब,
महरूमियत की मिसाल ग़ज़ल |


हर्ष महाजन



  रुदाद =कहानी

Tuesday, July 21, 2015

कलयुग में खूब बिकेगा वो ईमान ही होगा

...
कलयुग में खूब बिकेगा वो ईमान ही होगा,
इंसान का दुश्मन......यहाँ इंसान ही होगा |
.
दलदल बनेंगे रिश्ते....हर पोशाक पर पैबंद,
दिल खुद का देखें हम तो बेईमान ही होगा |

जब कासिदों के संग दिखेगा अपना दीवाना,
दुश्मन यहाँ दुश्मन का...कदरदान ही होगा |

आतंकियों की देश में अब जात नहीं होती,
अब दोस्तों मत कहना मुसलमान ही होगा |

बुजदिल करेंगे राज़.......राजदार नहीं होंगे.
नफरत यहाँ पर हर तरफ तूफ़ान ही होगा |

हर्ष महाजन

Monday, July 20, 2015

जो खुश्क हुए थे ज़ख्म, उनमें दर्द आज भी है



...

जो खुश्क हुए थे ज़ख्म, उनमें दर्द आज भी है,
वो ज़िंदा हैं तो नहीं, दिल में भ्रम आज भी है | 

मैं जानता हूँ मुझे, उसका कभी इंकार न था,
मगर इस रूह पर, उसका वो क़र्ज़ आज भी है |


दिल बे-जुबां हुआ, शराब साज़-ए-दिल थी बनी,
शर्मिन्दा हूँ मुझे, बेशक वो मर्ज़ आज भी है |


तलाशता हूँ शहर, अज़ाब दिल का कहाँ मैं सहूँ,
किया जो मैंने मुझे, उसकी शर्म आज भी है | 


जलेगा सदियों तलक, इक दिया मज़ार पे अब,
पत्थर हुआ हूँ मगर, मेरा कर्म आज भी है |


हर्ष महाजन

Thursday, July 16, 2015

मुझको इस शहर में…ऐसे भी नज़ारे थे मिले

...

मुझको इस शहर में…ऐसे भी नज़ारे थे मिले,
दिन में कातिल कभी रातों को सहारे थे मिले |

वो थे क्या दिन सभी इल्जाम तेरे सर थे लिए,
फर्क इतना सा था बस तुझ से इशारे थे मिले |


जाने कैसा था भंवर दुनियां का हम खो से गए,
ये तो किस्मत थी कि दोनों को किनारे थे मिले |


साज़-ए-दिल बजते रहे महफ़िल-ए-गम चलती रही,
सारी गज़लों में थे पल संग जो गुजारे थे मिले |


जब भी तन्हाई में वो.....बन के आवारा से मिले,
अपनी ज़िन्दगी के “हर्ष’ दिन जो उधारे थे मिले |


हर्ष महाजन

Wednesday, July 15, 2015

मन के साए से तुझे खुद ही रिहा कर दूंगा

...

मन के साए से तुझे खुद ही रिहा कर दूंगा,
मेरा वादा है तुझे दिल से जुदा कर दूंगा |

कैसे कर दूं मैं क़त्ल दिल से तेरी चाहत का,
तूने चाहा तो अगर ये भी खता कर दूंगा |


मेरी आँखों से कभी बन दर्द तू टपकेगा,
तेरी खुशियों में मुस्करा के हवा कर दूंगा |


दिल की अब सरहदों पे खूब अँधेरा है अगर,
तो दिल मैं आतिश-ए-जफा से दिया कर दूंगा |


जहाँ में सब का अपना-अपना मुक़द्दर लेकिन,
जो रिश्ता तुझसे जुड़ेगा मैं रिहा कर दूंगा |


हर्ष महाजन

Sunday, July 12, 2015

इन हवाओं से कभी मेरा पता पूछोगे

...

इन हवाओं से कभी.....मेरा पता पूछोगे,
किस तरह आता मुझे तेरा नशा पूछोगे |

तूने जो ली थी कसम मुझसे जुदा होने पर,
मेरी धड़कन की सदाओं से सजा पूछोगे |


अब तलक मैंने जलाईं थीं हजारों ही शमा,
यूँ अंधेरों में बता किस से पता पूछोगे |


बेरहम यादें चलीं आहों में आंधी की तरह,
है असर इतना कि कण-कण से खुदा पूछोगे |


जब से रातों में दिखे रूहें जुगनुओं की तरह,
था कहाँ मैंने जलाया था दीया पूछोगे |


_____________हर्ष महाजन 


Friday, July 10, 2015

मेरा दिल मुझसे बदगुमां लेकिन

...
मेरा दिल मुझसे बदगुमां लेकिन,
है ये कातिल पर रहनुमां लेकिन |
.
हर पल रंगीन महफ़िलों पे फ़िदा,
हरसूं ज़ख्मों के हैं निशां लेकिन |

कितने हैं दर्द अश्क कहते हैं अब,
दिल में रोशन है इक शमा लेकिन |

हर इक सदमें में संग रोया बहुत,
मुझपे इतना था मेहरबां लेकिन |

कितने ही दर्द इश्क में था लिए,
बंद है दिल की अब जुबां लेकिन |

इश्की लाजवाब ग़ज़ल कैसे कहूँ,
न अश्क रुके न दर्द थमा लेकिन |

_______हर्ष महाजन

Wednesday, July 1, 2015

हाथ की ये लकीरें मेरी.....इधर-उधर जाती नहीं

...

हाथ की ये लकीरें मेरी.....इधर-उधर जाती नहीं,
हैं तो अपनी ये मगर...समझ में क्यूँ आती नहीं |
खुद ये खामोश मगर इनमें किस्मत का ज़िकर,
कितनी बेवफा हैं कोई गम का पल बताती नहीं |

हर्ष महाजन

ग़लत-फ़हमियां थीं बढीं फासले बढ़ते रहे



...

ग़लत-फ़हमियां थीं बढीं फासले बढ़ते रहे,
हम महोब्बत में थे वो दुश्मनी करते रहे |

दिल से मजबूर हैं हम तबादला कैसे करें,
इंतिहा इतनी बढी फिर सितम ढलते रहे |


इश्क में दाग हुआ बे-वफ़ा इश्क जो हुआ,
मौत पहलू में लिए जलते ओ बुझते रहे | 


इश्क आंधी तब हुआ खार जुल्फों में सजा,
रात हम सोते रहे........ख्वाब गैर होते रहे |


था गुमाँ इतना हमें अपनी इस खामोशी पर,
पर समंदर जब हुए ये ज़ख्म सिसकते रहे |


_____________हर्ष महाजन