Sunday, December 25, 2016

ग़लतफहमी इतनी कि वफाओं में भी गम निकले

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ग़लतफहमी इतनी कि वफाओं में भी गम निकले,
तूफ़ां उठा ऐसा कि पुराने खत भी सभी नम निकले ।

हर्ष महाजन

ये कैसा दौर चल निकला

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रिश्तों में
अब अहसासों का,
ये कैसा दौर चल निकला,
किसी ने.......
संवारने में ज़िन्दगी लगा दी,
कहीं पिटारी में...
नफरतों का बम निकला ।


------हर्ष महाजन

Monday, December 19, 2016

कितनी दफा

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कितनी दफा,
__अर्ज़ी लगायी है
उसके दरबार में,
__लगता है ! असर नहीं आया,
हमारी दुआओं में अभी ।


___हर्ष महाजन

भूला नहीं हूँ (पापा की पाती )

भूला नहीं हूँ

*********

उद्विग्न हूँ, लाचार हूँ ।
क्या कहूँ,
धरा पे खड़ा,
मगर
बेकार हूँ ।
सुबह का वक़्त ,
जाने कितनी रेलगाड़ियां
पटरी पर गुजर गयीं ,
बरबस ही,
बहुत सी यादें,
दिलो दिमाग में उभर गयीं ।
भूला नहीं हूँ----


अध्यापिका की भांति,
तेरा....दीवारों पे लिखना,
घंटो,.....अकेले,
लक्कड़ की बनी,
अलमारी पर,
खयालों को,
चाक से उकेरना ।
भूला नहीं हूँ......

कहाँ है वो लम्हें ,
एक छोटी छड़ी,
फिर तेरा
ख्याली बच्चों को डाटना ।
अक्सर
आफिस जाती मम्मी से,
उसकी साड़ी का माँगना,
स्कूल से आकर,
फिर उसे घंटो...
बदन पर लपेटना ।
लंबी टांगो वाली
अपनी बार्बी से खेलना
भूला नहीं हूँ......

आज
"फ्रूट खत्म हो गया मम्मी"
अक्सर ! मां को दफ्तर
फोन करना ।
मम्मी सेब ले आना,
अमरुद और केला भी ।
भूला नहीं हूँ ........

शायद ,
मैं खुद सफर पे हूँ,
क्या कहूँ.. अधर में हूँ,
बूढ़ा गया हूँ,
बोरा गया हूँ ।
सोचा था,
कुछ नहीं बताऊंगा,
मगर दर्द इतना है,
सह नहीं पाऊंगा ।
वो फीका जश्न
और
तेरी आँखों में
अन सुलझे प्रश्न
भूला नहीं हूँ.....

लौट आओ,
अन-जन्मे सवालों से,
उन ज्वलित ख्यालों से,
लौट आओ---बेटा--लौट आओ ।

----हर्ष महाजन

Monday, December 12, 2016

काले धन की क्या है कीमत.....रखते जो शौचालयों में

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काले धन की क्या है कीमत.....रखते जो शौचालयों में,
समझे थे धनवान मगर क्या सीख लिया विधालयों में |
नज़र पड़ी जब मोदी की तो.......कीमत पड़ गयी भारी,
दो और दो जो चार करे थे........रह गये सब ख्यालों में |

हर्ष महाजन

काला-धन



काला-धन
धूम मची है गलियारों में संसद ने क्या अब ठानी है,
शोर मचा नोट-बंदी पे ज्यूँ अपनी बात मनवानी है |
काले धन के हितकारी जब उठ-उठ तंज बदलने लगे,
अपनी कला दिखा मोदी जी इक-इक ‘पर’ कुचलने लगे |


क्लेशी बोल रहा दिल्ली में, लो वापिस, मोदी खंज़र को,
कलकत्ता, यू० पी० भी गुर्राया, पप्पू संग, इस मंज़र को |
काले-धन के रखवाले अब, आतंक की भाषा बोल रहे,
शोर मचा दो संसद में मत, बोलन दो, इस धुरंधर को |

बहुत हुई अब छीना झपटी सारे पासे उलट गये,
काले धन के बोरे गुप-चुप नालों में सब पलट गये |
ख़बरों में सब देख नाम अब जनता भी आवाक हुई,
शक-शुभा ज़हन में था जो पल में सब वो सुलट गये |

बैंको ने जब दिया साथ तो, मीडिया क्यूँ परेशान हुई ,
हुए बुनियादी किस्से कुछ, पूरी बैंकिंग क्यूँ बदनाम हुई |
हर वर्कर, हर-हर मोदी कर जब, रात-दिन था, जुटा रहा,
जी०टी०वी०, क्या बिगाड़ा इनकी, मेहनत क्यूँ बेदाम हुई |


हर्ष महाजन

Wednesday, August 31, 2016

लोग जाने शहर में किस तरह जी रहे हैं

एक मुक्तक

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लोग जाने शहर में....किस तरह जी रहे हैं,
इन हवाओं में शामिल ज़हर तक पी रहे हैं |
गाँव जब से उठे हैं....शहर की चाल लेकर,
तब से चादर ग़मों की....शहरिये सी रहे हैं |
हर्ष महाजन 'हर्ष'

Friday, August 19, 2016

भरे काँटों में खिलते फूलों को भी तोड़ना सीखा


भरे काँटों में खिलते फूलों को भी तोड़ना सीखा,
है भैया का ये रिश्ता बहिनों ने तो जोड़ना सीखा |

हिफाज़त ज़िन्दगी भर की लिया करते थे कसमें वो,
मगर कलयुग में भैया ने ये रिश्ता तोडना सीखा |

मुहब्बत से वो ज़ख्मों पर जो मरहम वो लगाती थी,
मगर नोटों से भैया ने इसे अब मोड़ना सीखा |

कभी माँ की मुहब्बत बहिन की राखी बताती थी,
न जाने क्या हुआ भैया ने रिश्ते छोड़ना सीखा |

मलामत सह के भी रिश्तों को बांधे रेशमी डोरी,
ज़हर पीकर भी रिश्तों में शहद को घोलना सीखा |


हर्ष महाजन

बहरे हज़ज़ मुसमन सालिम
1222-1222-1222-1222

Wednesday, August 10, 2016

यूँ किस्से अपने लिक्खे खूब उसने खुद सफीनों पर

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यूँ किस्से अपने लिक्खे खूब उसने खुद सफीनों पर,
मेरी इच्छा है वो गजलों में सब तब्दील हो जाएँ |

हर्ष महाजन

1222-1222-1222-1222

Saturday, July 23, 2016

कब तलक निभाओगे ये दिखावटी रिश्ते,

.....

कब तलक निभाओगे ये दिखावटी रिश्ते,
कब तलक बताओ तुम गफलत में रहोगे ।

----------------हर्ष महाजन

Saturday, July 16, 2016

गर्द ओ गुबार इतना है मुझमें कि कह न सका

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गर्द ओ गुबार इतना है मुझमें कि कह न सका,
किस्से और भी याद आये उनकेे जाने के बाद ।

-----------------हर्ष महाजन

रत्ती सा भी रब्त नहीं रहा उन दोनों में शायद

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रत्ती सा भी रब्त नहीं रहा उन दोनों में शायद,
उदास हो गया है मौसम उनके जाने के बाद ।

----------------हर्ष महाजन

Monday, June 20, 2016

तेरे मसलों में न जाने किस जगह मंजिल मिले



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तेरे मसलों में न जाने किस जगह मंजिल मिले,
इतना भी अनमोल न रखना दिल में बस रंजिश मिले |
कौन जाने किस सफ़र में कोई कब आकर मिले,
मुझको लफ़्ज़ों में यूँ रखना राग में बंदिश मिले |

हर्ष महाजन

बहरे रमल मुसम्मन महफूज़
2122-2122-2122-212
*आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे

Sunday, June 12, 2016

तेरी हर अदा, हर जनून में मुझे बेहद असर लगता है

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तेरी हर अदा, हर जनून में मुझे बेहद असर लगता है,
मगर ऐ दोस्त मुझे बस तेरी रुकस्ती से डर लगता है ।
हर्ष महाजन

ऐ सनम तुझपे इतना नूर किधर से आता है

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ऐ सनम तुझपे इतना नूर किधर से आता है,
है फलक पर भी वो चन्दा उधर शरमाता है ।

तेरी साँसों की कसम मुझको हवाओं की कसम,
तेरे हर नक्श में हमदम सा नज़र आता है |

हर्ष महाजन

Wednesday, May 25, 2016

सिर्फ इक ज़िक्र तेरा.........मेरे लम्हें रौशन

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सिर्फ इक ज़िक्र तेरा.........मेरे लम्हें रौशन,
हो अगर संग-ए-सफ़र....तमाम राहें रौशन |
कैसे वादा करूँ शहर में क़त्ल-ए-आम न हो,
बे-नकाब हुस्न तेरा......और निगाहें रौशन |

_______________हर्ष महाजन

Tuesday, May 24, 2016

भूला नहीं हूँ

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भूला नहीं हूँ,
 पल-पल
---दिल पर ज़ियादती तेरी,
दोस्त
------अनजान राहों से,
 मुझे कभी कोई
----सरोकार नहीं रहा ।

–---हर्ष महाजन

Sunday, March 20, 2016

दुनियाँ है बदली बदली अब मैं भी बदल गया

मेरी अगली ग़ज़ल का मुखड़ा ::

दुनियाँ है बदली-बदली अब मैं भी बदल गया,
जो दिल था हर इंसान में.....जाने किधर गया ।

-----------------हर्ष महाजन


2212 2212 2212 12

Wednesday, March 9, 2016

अगर दिल पर मेरे उसका कभी इख्तियार हो जाता

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अगर दिल पर मेरे उसका कभी इख्तियार हो जाता,
ये हस्ती तक बिखर जाती मुझे इंतज़ार हो जाता |
.
मैं कुछ अपने गुनाहों से परेशांन और मुमकिन ये,
कभी मैं खोल देता दिल वो फिर राजदार हो जाता |

ये तो अच्छा हुआ वो रूठ कर बस चल दिए मुझसे,
अगर तीरे नज़र चलता तो दिल आर-पार हो जाता |

अमानत थी किसी की फिर भी दिल काबू में रख पाना,
कशिश इतनी थी आँखों में ये दिल तार-तार हो जाता |

बिछुड़ के रो चुका हूँ बे-वजह उस पे था दिल इतना,
न पगलाता ज़हन मेरा तो मैं होशियार हो जाता |

हर्ष महाजन

Friday, March 4, 2016

तेरे हिस्से की मैंने दिल में इक सौगात रक्खी है

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तेरे हिस्से की मैंने दिल में इक सौगात रक्खी है,
ज़रा आओ तो परदे में.....ज़मीं आज़ाद रक्खी है |
तेरे कूचे की मुझको......यादें क्यूँ जीने नहीं देतीं,
नज़र भर देख आँखों में वो शय आबाद रक्खी है |
______हर्ष महाजन

Thursday, March 3, 2016

सुरीलेपन से कोयल सबके दिल में खूब उतरे हैं

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सुरीलेपन से कोयल सबके दिल में खूब उतरे हैं ,
मगर कौव्वे तो हिजडी नगमों पे तग्में ही ढूंढें हैं |

______________हर्ष महाजन

Saturday, February 27, 2016

ऐसा सैलाब अब...मेंरी आखों में क्यूँ

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ऐसा सैलाब अब...मेंरी आखों में क्यूँ ,
ख्वाब मेरे मुसलसल सलाखों में ज्यूँ |
था सुना इश्क पर......है खुदा मेहरबां,
फिर उठा अंजुमन से वो लाखों में क्यूँ |

___________हर्ष महाजन

इस कदर से थका हूँ ज़िंदगी से मैं अब

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इस कदर से थका हूँ ज़िंदगी से मैं अब,
कोई अच्छा लगे भी तो इज़हार न हो |
कैसे मानू तू रग-रग में शामिल सदा,
जब तलक दिल से कोई भी इकरार न हो |

___________हर्ष महाजन

कुछ हैं रिश्ते मेरे संग नाकाम से

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कुछ हैं रिश्ते मेरे संग नाकाम से ,
हैं मेरे वो मगर कुछ हैं बदनाम से |
हूँ पशोपेश में छोडूं उनका सफ़र,
हैं टिके जो मेरी खुशियों के दाम से |
___________हर्ष महाजन

Wednesday, January 27, 2016


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कितने ही अफसानों से भरा है अपना ये  मुस्तकबिल 'ऐ 'हर्ष',
चलो देखें कितने और सावन हैं अभी इन्हें.....अंजाम देने को ।

----------------हर्ष महाजन

Monday, January 11, 2016

कोई लगा नहीं पाएगा अंदाजा, तेरे हुस्न का सदियों तक

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कोई लगा नहीं पाएगा अंदाजा, तेरे हुस्न का सदियों तक,
किसी ने देखा जो नहीं तेरा जलवा कभी शाम होने के बाद ।

 हर्ष महाजन

कितने ही एहसान किये हैं तुमने मुझपर ऐ तन्हाई

...

कितने ही एहसान किये हैं तुमने मुझपर ऐ तन्हाई,
बेवफाई सहते...... ज़िन्दगी गुज़ार दी मैंने तेरे संग |

_________हर्ष महाजन

Wednesday, January 6, 2016

कितना गजब करता हूँ

...

कितना गजब करता हूँ,
उनसे इतना डरता हूँ |
मुंहतोड़ जवाब देती वो,
फिर भी उसपे मरता हूँ | 

___हर्ष महाजन

हिन्दूसितां की धरती पर अब सियासत क्यूँ मुरदार हुई

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हिन्दूसितां की धरती पर.....सियासत क्यूँ मुरदार हुई,
छोड़ मुहब्बत की ये कसमें, बुजदिली क्यूँ किरदार हुई |
लहू जवानों का जब उबला....दुश्मन इक-इक ढेर हुआ,
देख शहादत, इनकी फिर भी.... अक्लें, क्यूँ बीमार हुई |

____________हर्ष महाजन

मेरी उलझनों को और भी उलझा देते हो

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मेरी उलझनों को और भी उलझा देते हो,
इतना सताया तुम्हें फिर भी दुआ देते हो |

__हर्ष महाजन

Monday, January 4, 2016

मुझसे मेरी मेहरबानियों का कभी जिकर न करना

...
मुझसे मेरी मेहरबानियों का कभी जिकर न करना,
तनहा हूँ, मेरी इस आदत का कभी फिकर न करना |
________________हर्ष महाजन