tag:blogger.com,1999:blog-78998415180511950392024-03-04T20:59:18.663-08:00MaiN Our Meri Tanhayii इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी | Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.comBlogger1617125tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-36353134320170783892022-01-25T08:47:00.003-08:002022-01-25T08:47:42.076-08:00तेरे घर का आँगन<p> नज़्म</p><p>(एक भ्रूण का अहसास)</p><p><br /></p><p>तेरे घर का आँगन,</p><p>मुझे बड़ा ही सुहाना लगा ।</p><p>न जाने क्यूँ, </p><p>मुझे वो इस कदर पुराना लगा ।</p><p><br /></p><p>मैं </p><p>बड़े इत्मीनान से </p><p>आया हूँ तेरे पास माँ,</p><p>इक उम्र गुज़ार लूँगा, </p><p>गर तुझे ये नज़राना लगा ।</p><p><br /></p><p>तेरे बस में अगर हो, </p><p>तो </p><p>भूल जाना वो सारे दर्द,</p><p>जब आहट, </p><p>मेरे आने की, तेरी कोक में</p><p>इक खज़ाना लगा ।</p><p><br /></p><p>न जाने,</p><p>क्या देखा मैनें </p><p>तेरी उदास आंखों में !</p><p>गुनाहगार हूँ तेरा </p><p>आने में, मुझे इक ज़माना लगा ।</p><p><br /></p><p>तेरे घर का आँगन,</p><p>मुझे बड़ा ही सुहाना लगा !</p><p>न जाने क्यूँ,</p><p>मुझे वो इस कदर पुराना लगा !!</p><p><br /></p><p>हर्ष महाजन 'हर्ष'</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-33524706436924313942021-12-18T00:34:00.000-08:002021-12-18T00:34:36.887-08:00समय का पहिया जब भी चलेगा, <div style="text-align: left;">समय का पहिया जब भी चलेगा, कुदरत का इंसाफ चले,<br />जब भी चले इंसान का पहिया चारो तरफ बेईमान चले ।</div><div style="text-align: left;"><br />माफ करो भैया, काल चक्र भैया </div><div style="text-align: left;"><br />दिल से दिल की बात सुने तो हर कोशिश में ताकत है,<br />जब भी चले ढफली अपनी तो हर जगह तूफान चले ।</div><div style="text-align: left;"><br />माफ करो भैया, काल चक्र भैया </div><div style="text-align: left;"><br />साथ रहें दुश्मन बनकर अर मौत पे अश्क़ बहाते है,<br />अपनों संग अना से अकड़ा रहा आखिर इकला जजमान चले ।</div><div style="text-align: left;"><br />माफ करो भैया, काल चक्र भैया </div><div style="text-align: left;"><br />हर्ष महाजन 'हर्ष'</div>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-50227563574476924772021-11-28T07:24:00.001-08:002021-11-28T07:24:07.993-08:00दिल जब तलक आईना है तिरा मुहब्बत का क्या<p> दिल जब तलक आईना है तिरा मुहब्बत का क्या,</p><p>तू दिल में रहे या सिर्फ मुहब्बत में, तू न हो तो क्या ।</p><p><br /></p><p>हर्ष महाजन 'हर्ष'</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-47869544573855165362021-08-22T00:06:00.004-07:002021-08-22T00:06:49.411-07:00तकती<p> शुद्ध शब्द तबीयत है, न कि तबियत,</p><p>जिसका वज़्न 122 है,</p><p> शे'र मुलाहज़ा फरमाएँ-</p><p>'ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,</p><p> आज फिर याद मुहब्बत की पुरानी आई,</p><p> -इकबाल अशहर,</p><p>इश्क के इज़हार में हर चंद रुसवाई तो है,</p><p>पर करूँ क्या अब तबीयत आप पर आई तो है,</p><p> -अक़बर इलाहाबादी,</p><p><br /></p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-91436782225317057122021-06-08T21:45:00.001-07:002021-06-08T21:45:51.621-07:00मेरे डैडी (नज़्म)<p><br /></p><p style="text-align: center;">यूँ तो दुनियाँ के सभी गम हँस के ढो लेता हूँ,</p><p style="text-align: center;">पर जो याद आए तुम्हारी तो मैं रो लेता हूँ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">यूँ तो अहसास हुआ करता है कि तुम दूर नहीं,</p><p style="text-align: center;">सोच के होगा ये मुमकिन ? मैं यूँ सो लेता हूँ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">ये भी वादा है कि संस्कार न भूलूंगा कभी,</p><p style="text-align: center;">मैं तो अक्सर उन्हीं डाँटो में ही खो लेता हूँ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">उम्र भर धूप में चलते हुए देखा है तुम्हें,</p><p style="text-align: center;">कितने ख़ुदगर्ज़ थे हम सोच के रो लेता हूँ ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">वो हिदायते अनुशासन मैं भी भूला तो नहीं,</p><p style="text-align: center;">उन्हीं बातों को फ़क़त खुद में पिरो लेता हूँ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">---–-हर्ष महाजन 'हर्ष'</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-84293936442281068862021-05-16T00:40:00.004-07:002021-05-16T20:56:38.385-07:00ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया<p> दोस्तो आज बहुत अरसे बाद एक ताज़ातरीन ग़ज़ल आपकी अदालत की नज़र कर रहा हूँ।</p><p>आजकल के महामारी के माहौल पर कही ये ग़ज़ल...अपनों के खोने का ग़म क्या होता है, जो पीछे रह जाते हैं उनसे पूछिये ।</p><p><br /></p><p> बहुत ही दिलकश औऱ मुश्किल बह्र पर है ये ग़ज़ल .....कैफ़ी आज़मी की ज़मीन पर इस ग़ज़ल को कहने की कोशिश की है । जगजीत सिंह जी की आवाज़ में एक ग़ज़ल</p><p><br /></p><p>*झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है कि नहीं*</p><p><br /></p><p>बह्र: 1212 1122 1212 112(22)</p><p><br /></p><p>आप सभी से अनुरोध इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले जगजीत सिंह साहिब की गायी ग़ज़ल की औडिओ एक बार जरूर सुनलें । आपको पढ़ने का असल अर्थ अच्छी तरह समझ आएगा औऱ मज़ा भी आएगा ।</p><p>◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆</p><p><br /></p><p>ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया,</p><p>मेरा नसीब क्यूँ बीमार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>अभी-अभी तो गुलों में बहार होने को थी,</p><p>हवा को किसने गिरफ़्तार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>ढली है शाम-ओ-सहर औऱ उम्र भी पल में,</p><p>हुए ज़ुदा तो गुनाहगार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>वो बेवफ़ा भी कहें मुझको ये कबूल सही,</p><p>मगर है रंज मुझे प्यार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>ज़ुदा हुए तो हुए इसका तो है ग़म लेकिन,</p><p>है ग़म तो उसका कि गुल **खार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>लगी क्या आँख जरा सी वफ़ा भी भूल गए,</p><p>मेरा वज़ूद यूँ मझधार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>ज़मी भी थम सी गयी आसमाँ ठहर सा गया,</p><p>यूँ मेरी हस्ती को बेकार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>जो कद्र करता रहा उम्र भर तेरी लेकिन,</p><p>उसी चराग़ को बेज़ार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>तवाफ़* करता रहूँ तेरे इर्द गिर्द लेकिन,</p><p>ये आस पास क्यूँ दीवार करके छोड़ दिया ।</p><p><br /></p><p>--------हर्ष महाजन 'हर्ष'</p><p><br /></p><p>*तवाफ़= चक्कर</p><p>**खार= राख</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-72057908841387958762021-05-10T07:27:00.002-07:002021-05-10T07:27:53.239-07:00बड़े आलीशान मकान में रहते हो<p> --नज़्म--</p><p><br /></p><p>सुना है---</p><p>बड़े आलीशान मकान में रहते हो,</p><p>कभी आओ हमारी भी सुनों,</p><p>गर कण-कण में बहते हो ।</p><p>देखो !!</p><p>मौत के सौदे, </p><p>सर-ए-आम होने लगे हैं,</p><p>गरीब अकेले ही</p><p>काँधे पे--लाश ढोने लगे हैं ।</p><p>मंदिर-ओ-मस्ज़िद से </p><p>अब न घंटे की</p><p>न अजां की आवाज आती है ।</p><p>दूर अपना---</p><p>जो भीषण आपदा में फँसा है</p><p>बस--</p><p>उसकी याद आती है ।</p><p>बिन तलवारों के </p><p>श्मशान भीड़ से अटा पड़ा है ।</p><p>ज़िंदा इंसान भी </p><p>अब लाईन में खड़ा है ।</p><p>---आओ न मेरे आका,</p><p> तुम हर आंधी में तो रहते हो</p><p>मेरी इक इल्तिज़ा !! सुनोगे ??</p><p>क्या कहते हो ?</p><p>तेरे लिए है न तुछ,</p><p>सिमटा दो न अब सब कुछ ।</p><p>मगर</p><p>मशहूर हो न,</p><p> दिल बहलाने में,</p><p>हम भी कसर नहीं छोड़ेंगे</p><p>तुम्हें</p><p>आजमाने में ।</p><p>सुना है---</p><p>बड़े आलीशान मकान में रहते हो,</p><p>कभी आओ हमारी भी सुनों,</p><p>गर कण-कण में बहते हो ।</p><p><br /></p><p>---हर्ष महाजन 'हर्ष'</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-71106768137928617332021-04-12T21:42:00.000-07:002021-04-12T21:42:52.122-07:00कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला<p style="text-align: center;"> ★★★★★★★नज़्म★★★★★★★★</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">अनकही बातें न जानें दिल में कितनी ले गया,</p><p style="text-align: center;">उँगलियाँ अपनों की यूँ....दांतों तले वो दे गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला,</p><p style="text-align: center;">अपने हाथों, की लकीरों....,..को दगा वो दे गया । </p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">क्या चलेगी बेगुनाही.....की कलम अबकी यहॉं ?</p><p style="text-align: center;">किसने दी ऐसी सज़ा.....वो ज़िंदगी ही से गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">है दुआ, बातों से निकले.....राह कोई अब यहाँ,</p><p style="text-align: center;">वर्ना लिख देना जहाँ में, अपना, अपनों से गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">थी शिकायत उससे.......पाबंदी-ओ-शर्तें बेसबब,</p><p style="text-align: center;">बिन अदालत आपकी ख़ातिर वो जाँ तक दे गया । </p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">कितना तड़पा होगा वो उस आख़िरी पल में फ़क़त,</p><p style="text-align: center;">लिख मुकद्दर, ख़ुद वो अपना, रूह जहाँ से ले गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">ये खुदा की नैमतें हैं.........हम सभी ज़िंदा खड़े,</p><p style="text-align: center;">कौन जाने किसने जाना था.....किसे वो ले गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">पूजा कर-कर उम्र बीती दिल में क्यों नफ़रत अबस,</p><p style="text-align: center;">अब वो महफ़िल में नहीं पर दिल में नफरत ले गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">कुछ के दिल में थी अदावत* कुछ में रिश्ता नाम का,</p><p style="text-align: center;">इस तरह, वो संग, सबके रंजो गम......सब ले गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">रंजिशें किसकी थीं कितनी, ज़ह्र भी इतना था उफ़,</p><p style="text-align: center;">ऐ ख़ुदा तू ये बता अब.......ये गुनाह किस पे गया ।</p><p style="text-align: center;"></p><p style="text-align: center;"> </p><p style="text-align: center;">इससे ज़्यादा ये तमाशा...........कौन देखेगा यहॉं,</p><p style="text-align: center;">तज़रुबा अपने हलातों.............का मगर वो दे गया ।</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">------हर्ष महाजन 'हर्ष'</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">*अदावत = शत्रुता</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">बह्र तर्ज़: आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे</p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: center;">2122 2122 2122 212</p><p style="text-align: center;"><br /></p><p style="text-align: center;">◆◆◆</p>Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-185677402995233112020-08-30T01:22:00.000-07:002020-08-30T01:24:42.510-07:00*जन्म-दिन की बहुत बहुत मुबारक हो बेटा शौर्या*<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
🍪🍪🍪🍪🍪🍪🍪🍪<br />
🍩🍩🍩🍩🍩🍩🍩🍩<br />
तेरी हसरत भी हो, और हो राजदार,<br />
खुशियाँ रूपी ये दरिया में कश्ती हो पार ।<br />
✈️<br />
इन हवाओं में खुशबू यूँ बसती रहे,<br />
ये जन्म-दिन पे पन्नें लिक्खूँ बार-बार ।<br />
✈️<br />
है समंदर में जब तक यूँ पानी रहे,<br />
तेरे घर का ये आँगन रहे गुल-बहार।<br />
✈️<br />
तेरे दामन की ख़ुशियाँ फलक छू लें गर,<br />
अपने दादू को बेटा न भूलना तू यार ।<br />
✈️<br />
हृदय-तल से जन्म-दिन की है ये कसक,<br />
ऐसे दिन मौका मुझको मिले बारम्बार ।<br />
✈️<br />
<br />
बहुत बहुत मुबारक<br />
<br />
*हर्ष महाजन*<br />
<br />
तर्ज़:बह्र<br />
<br />
*देखती ही रहो आज दर्पण न तुम*<br />
प्यार का ये महूरत निकल जाएगा, निकल जाएगा</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-28742018912818285002020-07-08T06:04:00.000-07:002020-07-08T06:04:45.806-07:00रदीफ़ दोष :: पोस्ट-5<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
■■पोस्ट-5■■<br />
◆◆रदीफ़ दोष◆◆<br />
●●●(d)तक़ाबूले रदीफ़●●●<br />
<br />
इस दोष से ग़ज़ल कहने वालों को हो सके तो बच के निकलना चाहिए । इस दोष के चलते ग़ज़ल जानने वाले कहने वालों की काबलियत को आंकने की कोशिश करते हैं ।<br />
<br />
तकाबुले रदीफ़ दोष के भेद हैं :-<br />
<br />
तकाबुले रदीफ़ दोष के दो भेद होते हैं :---<br />
<br />
1) लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रदीफैन<br />
<br />
2)लाज्तमा-ए-तकाबुल-ए-रदीफैन<br />
<br />
**क्रमश:**<br />
<br />
■■अगला पोस्ट-6■■<br />
◆◆रदीफ़ दोष◆◆<br />
●●तक़ाबूले रदीफ़-●●<br />
★★(1)लाज्तमा-ए-ज़ुज्ब-ए-रदीफैन ★★</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-48715826991656889302020-06-30T22:44:00.000-07:002020-06-30T22:52:22.726-07:00 रदीफ़ दोष:: पोस्ट-4<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
■■Post-4■■<br />
◆◆रदीफ़ दोष◆◆<br />
●●(c) रब्त का न होना●●<br />
***************<br />
प्रिय पाठकों:<br />
ग़ज़ल कहन अगर आसाँ कहें तो ये हमारी भूल होगी । ये एक ऐसी विदा है जिसकी अथाह गहराई को समझने के लिए बहुत ही सहनशीलता और विनम्रता चाहिए । आजकल के लेखक की किसी कृति पर अगर किसी को कोई सुझाव भी दे दिया जाए तो इंसान विफऱ जाता है । वो व्यक्ति कहां इस विदा में तरक्की कर पायेगा ?<br />
<br />
इस विदा में हर व्यक्ति अधूरा है यही समझो कि समझने के लिए समंदर अभी बाकि है मैं कम इल्मी इंसान आप जैसे धुरंदर कहने वालों को क्या सीखा पाऊंगा ? यही समझना कि मैंने अपने गुरु से जो कुछ भी सीखा बस वही तकसीम करने की कोशिश भर है । ग़ज़ल विदा को जब भी शुरू कीजियेगा अपने गुरु को हमेशा याद कीजियेगा आपकी विदा में चार चांद ज़रूर लगेंगे । बात कर रहे थे रदीफ़ के बारे में -----<br />
<br />
कहे गए शे'र में जो रदीफ़ इस्तेमाल किया गया है अगर उसका कोई ओचित्य न हो या उसका रदीफ़ बेवजह ठूँस दिया गया हो या अर्थहीन जान पड़ता हो तो उस से शे'र में हल्कापन आ जाता है । इसे जानने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि रदीफ़ को हटा कर देखा जाए । अगर आपकी कही तहरीर में कोई भी फर्क नहीं पड़ता तो समझ लेना चाहिए कि वो भर्ती की रदीफ़ इस्तेमाल की गई है ।<br />
<br />
ग़ज़ल की बाबत के मुताबिक एक उदाहरण लेते हैं:<br />
आप जो हमसे दूर गए,<br />
दिल से हम मज़बूर गए<br />
आप न थे तो क्या थे हम<br />
आपसे मिल मशहूर गए<br />
<br />
आप देखेंगे सब कुछ सही सलामत यथावत लिया गया है । रदीफ़-क्वाफी भी एक दम दुरुस्त है । लेकिन पहली पंक्ति में रदीफ़ सही तरह से ली गयी है ।<br />
<br />
मतला के सानी में और दूसरे शे'र के सानी में रदीफ़ का निर्वाह ठीक नही हुआ ।<br />
यहां रब्त नहीं बना ।<br />
<br />
सही क्या है ?<br />
<br />
आप जो हमसे दूर हुए,<br />
दिल से हम मज़बूर हुए<br />
आप न थे तो क्या थे हम<br />
आपसे मिल मशहूर हुए<br />
<br />
एक और बात:<br />
<br />
दोस्तो रदीफ़ के अपने ही बेमिसाल कुछ नियम हैं----<br />
<br />
*रदीफ़ का काफ़िये के साथ पूर्ण रब्त या तालमेल हो यानि काफ़िया और रदीफ़ एक सार्थक जोड़ी बनाते हो और बेमेल न हों। जैसे–<br />
फ़साना सुनाओ/ तराना सुनाओ के साथ ‘कोई गीत पुराना सुनाओ’ तो चलेगा, लेकिन ‘मुझे दिल चुराना सुनाओ‘ कैसे फिट होगा, क्योंकि चुराना सिखाओ हो सकता है, सुनाओ कैसे होगा?<br />
*काफ़िये के लिंग, वचन ( singular/plural)और काल का रदीफ़ के साथ रब्त होना चाहिए। जैसे–<br />
खता हो गई/ दुआ हो गई/ हवा हो गई के साथ ‘भला हो गई’ का कोई रब्त नहीं है, क्योंकि यहाँ ‘भला हो गया’ सही है।<br />
रिसाला मिला/ उजाला मिला/ निवाला मिला के साथ ‘सबके होठों पर ताला मिला’ सही नहीं है क्योंकि ‘सबके होठों पर ताले मिले’ सही होगा।<br />
<br />
कई बार देखा गया कि ऐसे ऐसे शेर बना दिये जाते है जहाँ ग़ज़ल में दो या तीन शेर तो सही रदीफ़ से मेल खाते हुए बने बाकि सभी शेरों में बिना रब्त के रदीफ़ इस्तेमाल कर दिया गया ।<br />
<br />
***क्रमश:***<br />
<br />
◆◆अगला पोस्ट-5◆◆रदीफ़ दोष (d)तक़ाबूले-रदीफ़◆◆<br />
<br />
#</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-24439963182894345372020-06-29T05:00:00.000-07:002020-06-29T05:00:42.879-07:00रदीफ़ दोष:: पोस्ट-3<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
◆Post-3◆<br />
<br />
रदीफ़ दोष (b)<br />
<br />
■■तहलीली रदीफ़ ■■<br />
★★★★★★★★★★<br />
<br />
ग़ज़ल कहने वाले रदीफ़ तो जानते हैं मगर तहलीली रदीफ़ के बारे में कम ही लोग वाक़िफ़ हैं। आओ तहलीली रदीफ़ क्या होता है आज ये भी देख लें :-<br />
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆<br />
<br />
जब रदीफ़ इस तरह से क़ाफिये के बाद आये कि वह क़ाफिये में योजित हो जाए… सरल शब्दों में कहा जाए तो मिक्स (MIX) हो जाए तो ऐसे रदीफ़ को तहलीली रदीफ़ कहते हैं।<br />
<br />
उदाहरण<br />
●●●●●●<br />
सब से मिलता है जो रो कर<br />
रह न जाये ख़ुद का हो कर ।<br />
<br />
ले मज़ा आवारगी का<br />
मंज़िलों को मार ठोकर ।<br />
<br />
ऊपर मतले के अनुसार 'रो', 'हो' काफ़िया है और 'कर' रदीफ़ है ।<br />
मगर दूसरे शेर में ' ठोकर' शब्द में काफ़िया और रदीफ़ आपस में जज़्ब होकर प्रयोग हुए हैं । अर्थात रदीफ़ काफिये के साथ चस्पा हो गयी है । इसे ही तहलीली रदीफ़ कहते हैं ।<br />
<br />
■■नोट"■■<br />
<br />
अधिकतर उर्दुदान इसे तहलीली दोष मानते हैं । लेकिन कुछ अरूजी इसे दोष नहीं मानते ।<br />
★★★★★★★★<br />
<br />
■■क्रमशः■■<br />
<br />
◆◆अगला Post-4-रदीफ़ दोष(c) रब्त न होना◆◆</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-68939993017857732952020-06-27T23:04:00.000-07:002020-06-27T23:04:17.210-07:00रदीफ़ दोष :: पोस्ट- 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
◆Post-2◆<br />
<br />
(1) रदीफ़ दोष (a)<br />
दोस्तो काफ़िया के तुक (अन्त्यानुप्रास) और उसके बाद आने वाले शब्द या शब्दों को रदीफ़ कहते है। काफ़िया बदलता है किन्तु रदीफ़ नहीं बदलती है। उसका रूप जस का तस रहता है।<br />
ये थोड़ी सी जानकारी इसलिए देनी ज़रूरी समझी कि अभी जिस बारे में बात होनी है उसका टॉपिक यही है ।<br />
<br />
प्रिय पाठकों: ग़ज़ल कहन को अगर हम आसान कहें तो वह ठीक न होगा । इस विदा को बड़े ही सहज भाव से तथा बड़ी सहनशीलता से ही सीखा जा सकता है । इसे समझने के लिए अथाह गहराई तक समंदर को नापने जैसा अनुभव प्राप्त करने का मादा होना चाहिए । लेकिन आजकल के नए नए लेखकों को उनकी ज़रा सी गलती बताने कोशिश एक बड़ा विवाद खड़ा कर देती है । दोस्तो ग़ज़ल एक पूजा है और शुरू करने से पहले अपने गुरु को ज़रूर नमन करा कीजिये । देखना आपका मुकाम कहां तक हासिल होता है । हम बात जार रहे थे रदीफ़ की ।<br />
#रदीफ़ से ताल्लुक बात करते हुए हमें ये जान लेना ज़रूरी है वो कौन सी बातें हैं जिनकी वजह से रदीफ़ में दोष पैदा हो जाता है ।<br />
a) रदीफ़ का अंश या हर्फ़ बदलना ।<br />
b) तहलीली रदीफ़<br />
c) राब्ता न होना<br />
d)तक़ाबूले रदीफ़<br />
<br />
अब हम एक एक कर के सब के बारे में बात करेंगे ।<br />
<br />
रदीफ़ के बारे में विस्तार से जानने के बाद सबसे पहले हर लेखक/ग़ज़लकार को ये मालूम हो चुका है कि ग़ज़ल में हम रदीफ़ या उसका कोई #अंश बदल नहीं सकते अन्यथा उसमें दोष पैदा हो जाएगा ।<br />
<br />
उदारण:<br />
<br />
***<br />
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,<br />
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।<br />
<br />
बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,<br />
अब वो मुश्किल में सब किनारे है<br />
<br />
ऊपर मतले में 'थे" रदीफ़ तय किया गया है अब एक बार तय होने के बाद आगे के अन्य शे'रों में "है" नहीं ले सकते, यहाँ रदीफ़ का दोष आ जायेगा ।<br />
<br />
ऊपर कहे शेरों का निराकरण--<br />
<br />
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,<br />
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।<br />
<br />
बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा, अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।<br />
<br />
***क्रमश:*****<br />
<br />
◆◆◆आगे रदीफ़ दोष (b) तहलीली रदीफ़◆◆◆◆Post-3◆</div>
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◆Post-1◆<br />
<br />
#पहला<br />
5-5-2020<br />
<br />
#दोषयुक्त_ग़ज़ल<br />
<br />
दोस्तो आज हम ग़ज़ल में उत्पन्न दोष की बात करेंगे ।<br />
प्रभावपूर्ण ग़ज़ल कहने के बाद हमें देखना पड़ता है कि हमारी ग़ज़ल में कोई कमी तो नहीं रह गईं जिसके कारण उसमें कोई दोष तो नहीं रह गया ।<br />
<br />
ग़ज़ल में दोष कई प्रकार के होते हैं ।<br />
ग़ज़ल के<br />
1) रदीफ़ में दोष<br />
2) काफ़िया में दोष<br />
3) बहर का दोष<br />
4) भाषा का दोष<br />
आदि-आदि ।<br />
<br />
सबसे पहले हम बात करेंगे...रदीफ़ दोष के बारे में....<br />
<br />
◆◆क्रमश:◆◆<br />
◆◆आगे रदीफ़ दोष(a)◆Post-2◆</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-21049933129780945092020-06-15T06:45:00.000-07:002020-06-15T09:32:40.980-07:00उठ के मैयत से निकल कह दो मना लें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
***<br />
<br />
उठके मैयत से निकल कहदो मना लें तुमको,<br />
तू सितारा है ज़मीं पे तो बुला लें तुमको ।<br />
<br />
शोहरत ने जो तुम्हें आज चुराया हमसे,<br />
हम भी नग्मों में सनम आज सजा लें तुमको ।<br />
<br />
तेरे ग़म में जो कभी शौक़ यहाँ पाले थे,<br />
चल के मैख़ाने में सोचा कि दिखा लें तुमको ।<br />
<br />
तेरी हसरत कि निग़ाहों से गिरा दे हमको,<br />
अपनी हसरत कि निगाहों में उठा लें तुमको ।<br />
<br />
जिन चराग़ों से मिली रौशनी मंज़िल के लिए,<br />
आओ किस्मत के अँधेरों से बचा लें तुमको ।<br />
<br />
हमने सोचा था कि इक शाम तेरे नाम करें,<br />
दिल ने फिर चाहा उसी शाम मना लें तुमको ।<br />
<br />
अपने तुम प्यार को सब नाज़ से रखना लेकिन,<br />
सोचा खोया है सनम अपना बता लें तुमको ।<br />
<br />
दिल मुहब्बत के अगर लम्हों को जीना चाहे,<br />
मेरी मैयत में मिलेंगे वो सँभाले तुमको ।<br />
<br />
-----हर्ष महाजन 'हर्ष'<br />
2122 1122 1122 22(112)<br />
दिल की आवाज भी सुन दिल के फ़साने पे न जा</div>
</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-55944123097448743432020-05-29T04:17:00.000-07:002020-05-29T04:17:38.542-07:00हिचकियाँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
***<br />
यूँ न मजबूर करो<br />
मुझे<br />
अपनी हिचकियों से इस कदर,<br />
मुझे भी तो<br />
ख्याल है<br />
तेरे बे-सब्र जज़्बे का ।<br />
<br />
----हर्ष महाजन</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-75034723967880047832020-05-28T01:01:00.000-07:002020-05-28T01:01:02.511-07:00आइये समंदर को बदल डालें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
...<br />
<br />
आइये आज समंदर को बदल डालें ,<br />
मेरे कुछ शेर हैं उनमें वज़न डालें |<br />
मगर बदलूं कैसे बदनसीब मुक़द्दर, <br />
चलो हाथ की लकीरों में खलल डालें |<br />
<br />
_________हर्ष महाजन</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-55435522775353597452020-05-28T00:54:00.002-07:002020-05-28T00:54:56.999-07:00मेरा वज़ूद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
***<br />
<br />
ये आईना नहीं,<br />
मेरे वज़ूद का सबूत है,<br />
<br />
वरना कभी कोई, <br />
मेरा पैरवीकार न होता ।<br />
<br />
....हर्ष महाजन</div>
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<div style="text-align: center;">
***<br />
<br />
<br />
यादों का दीप जला ये दिल में दर्द उठा <br />
बड़ी मुद्दत से मुझे माँ तेरा आँचल न मिला |<br />
<br />
यादों का दीप जला..........<br />
<br />
तेरे हाथों की महक म अब भी आती है सदा,<br />
तेरे मुखड़े की झलक , आये सपनों में सदा,<br />
न छिनना ये सिलसिला, मिले है सकून बड़ा, <br />
बड़ी मुद्दत से मुझे माँ तेरा आँचल न मिला |<br />
<br />
यादों का दीप जला..........<br />
<br />
बचपन के दिन वो मेरे, जो बीते संग माँ तेरे,<br />
थे दिन तेरे गीतों भरे बसे जो अंग अंग नेरे,<br />
न भूलूँ उनको सदा है उनमें जादू भरा <br />
बड़ी मुद्दत से मुझे माँ तेरा आँचल न मिला |<br />
<br />
यादों का दीप जला..........<br />
<br />
***<br />
written in 1980's</div>
</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-85903333029500425352020-04-08T06:11:00.000-07:002020-04-08T07:00:25.905-07:00नुक़्ता क्या होता है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
नुक़्ता<br />
<br />
ग़ज़ल कहते वक़्त जब हम शब्दावली का प्रयोग करते हैं तो अक्सर हम उर्दू के लफ़्ज़ भी इस्तेमाल करते हैं । लेकिन लफ्ज़ के ग़लत इस्तेमाल से ग़ज़ल के अर्थ का अनर्थ हो जाता है ।<br />
<br />
नुक़्ता किस तरह इसे लिखने में प्रयोग करते हैं ।<br />
<br />
नुक़्ता वैसे तो ये एक अरबी भाषा का लफ्ज़ होता है, जिसका सामान्य भाषा में मतलब बिंदु होता है। इसकी पहचान बहुत ही आसान है। क्योंकि ये किसी अक्षर के नीचे लगा बिंदु होता है। जैसे ज़, क़, ख़ आदि। अगर ये किसी अक्षर के साथ लग जाता है और उससे किसी शब्द का निर्माण होता है, तो उसका अर्थ सामान्य शब्द से यानी बिना बिंदु वाले शब्द से अलग हो जाता है।<br />
<br />
उदाहरण के लिए जमाना शब्द में नुक़्ता का प्रयोग नहीं हुआ है और यहां इसका अर्थ जमा देने से है। ठीक इसके विपरीत अगर हम ज के नुक्ता लगा दें जैसे ज़ और अब इससे किसी शब्द का निर्माण करे जो पहले बताए शब्द की तरह हो, तो उसका अर्थ बदल जाता है। जैसे - ज़माना। अब यहां इस शब्द का अर्थ जमा देने से नहीं बल्कि दुनिया होता है।<br />
इसी तरह विशेष रूप से 5 ऐसे व्यंजन हैं जिन्हें नुक़्ता के आधार पर प्रयोग किया जाता है। ये 5 शब्द हैं<br />
क, ख, ग, ज, और फ है।<br />
<br />
नीचे कुछ ऐसे ही मिलते जुलते शब्द देख सकते हैं। साथ ही हम ये भी देखेंगे कि इनका गलत प्रयोग करने पर इनके अर्थ में कितना बड़ा अंतर आ जाता है।<br />
<br />
आइये देखते हैं नुक़्ता वाले और बिना नुक्ता वाले शब्द । जिन पर स्टार लगा है वो नुक़्ता वाले शब्द हैं ।<br />
<br />
ज़माना* - दुनिया<br />
जमाना - ठोस करना<br />
राज़* - रहस्य<br />
राज - शासन<br />
खाना - भोजन<br />
ख़ाना* - जगह<br />
खुदा - खोदने से<br />
ख़ुदा* - परमात्मा<br />
सज़ा* - दंड<br />
सजा - सजावट से<br />
क़मर* - चन्द्रमा<br />
कमर - शरीर का हिस्सा<br />
क़िताब*=कुर्ते आदि का गला<br />
किताब=पुस्तक<br />
ख़सरा*=हिसाब का कच्चा चिट्ठा<br />
खसरा=एक तरह की बीमारी<br />
ग़ुल*=शोर<br />
गुल=फूल<br />
ज़रा*=थोड़ा, कम<br />
जरा=वृद्धावस्था, बुढ़ापा<br />
तेज़*=तीव्र, फुर्तीला<br />
तेज=आभा, दीप्ती, कांति<br />
नुक़्ता*=बिंदु<br />
नुक्ता=सूक्ष्म, बारीक़, ऐब<br />
हैज़ा*=दस्त<br />
हैजा=युद्ध<br />
बाग़*=उपवन<br />
बाग=बागडोर<br />
<br />
ऐसे बहुत से शब्द और भी हैं जिनका ग़ज़ल कहते वक़्त तो मालूम नहीं चलता जब उन्हें कलम बध्द किया जाता है तो ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है ।<br />
<br />
मिलेंगे किसी और टॉपिक के साथ ।<br />
धन्यवाद<br />
************<br />
<br />
नॉट:-<br />
<span style="color: blue;"> नुक़्ता हिंदी या देवनागरी या गुरमुखी और अन्य ब्राह्मी परिवार की लिपियों में भी किसी व्यंजन अक्षर के नीचे लगाए जाने वाले बिंदु को कहते हैं। इस से उस अक्षर का उच्चारण परिवर्तित होकर किसी अन्य व्यंजन का हो जाता है।</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">जैसे -</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">'ज' के नीचे नुक्ता लगाने से 'ज़' बन जाता है और 'ड' के नीचे नुक्ता लगाने से 'ड़' बन जाता है।</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">नुक़्ते ऐसे व्यंजनों को बनाने के लिए प्रयोग होते हैं, जो पहले से मूल लिपि में न हों, जैसे कि 'ढ़' मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न ही यह संस्कृत में पाया जाता है।</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">नुक़्ता का प्रयोग किन वर्णों में किया जाता है</span><br />
<span style="color: blue;">उर्दू, अरबी, फ़ारसी भाषा से हिंदी भाषा में आए क, ख, ग, ज, फ वर्णों को अलग से बताने के लिए नुक़्ता का प्रयोग किया जाता है क्योंकि नुक़्ता के बिना इन भाषाओं से लिए गए शब्दों को हिंदी में सही से उच्चारित नहीं किया जा सकता। नुक़्ता के प्रयोग से उस वर्ण के उच्चारण पर अधिक दबाव आ जाता है।</span><br />
<span style="color: blue;">जैसे -</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">हिंदी में 'खुदा' का अर्थ होता है - 'खुदी हुई ज़मीन' और नुक़्ता लग जाने से 'ख़ुदा' का अर्थ 'भगवान्' हो जाता है।</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">हिंदी में 'गज' का अर्थ होता है - 'हाथी' और नुक़्ता लग जाने से 'गज़' का अर्थ 'नाप' हो जाता है।</span><br />
<br />
<span style="color: blue;">कुछ नुक़्ता वाले शब्द</span><br />
<span style="color: blue;">कमज़ोर, तूफ़ान, ज़रूर, इस्तीफ़ा, ज़ुल्म, फ़तवा, मज़दूर, ताज़ा, फ़कीर, फ़रमान, इज़्ज़त आदि।</span><br />
<span style="color: blue;"><br /></span>
<span style="color: blue;">क, ख, ग में नुक़्ता का प्रयोग हिंदी भाषा में अनिवार्य नहीं है परन्तु ‘ज़’ और ‘फ़’ में नुक़्ता लगाना आवश्यक है।</span><br />
<br /></div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-58172066427650582532020-04-07T11:05:00.000-07:002020-04-07T11:05:40.894-07:00गर्दिश ए ज़िन्दगी ने था बदला मुझे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
***</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
गर्दिश ए ज़िन्दगी ने था बदला मुझे,</div>
<div style="text-align: center;">
लोग कहने लगे नीम पगला मुझे ।</div>
<div style="text-align: center;">
ठोकरों से नया इक हुआ तजरिबा,</div>
<div style="text-align: center;">
हर क़हर रोशनी दे के निकला मुझे ।</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
------------हर्ष महाजन 'हर्ष'</div>
</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-73551681908174998412020-04-07T10:55:00.001-07:002020-04-07T11:03:32.884-07:00होंसला ख़ौफ़ खाने लगा है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
***</div>
<div style="text-align: center;">
होंसला ख़ौफ़ खाने लगा है,</div>
<div style="text-align: center;">
रुख हवा का बताने लगा है ।</div>
<div style="text-align: center;">
पूछ लेना निकलने से पहले, </div>
<div style="text-align: center;">
वक़्त यूँ भी डराने लगा है ।</div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
----------हर्ष महाजन 'हर्ष'</div>
</div>
Harash Mahajanhttp://www.blogger.com/profile/17431155483774376440noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7899841518051195039.post-50538096080036971582020-04-06T08:46:00.000-07:002020-04-06T08:48:35.813-07:00शब्द गलत वज़्न में बाँधना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
शब्द को अगर गलत वज़्न में ले लिया जाए यानि किसी शब्द का उच्चारण गलत कर लेते हैं तो इससे बहर का दोष पैदा हो जाता है ।<br />
कुछ शब्द जैसे:-<br />
1)अमन-12 शुद्ध,,-अम्न-21<br />
2)तजुर्बा-122,<br />
शुद्ध- तज़रिबा-212<br />
3)तुम्हारा-222<br />
शुद्ध-तु म्हारा-122<br />
4) मोहब्बत-222<br />
शुद्ध- मुहब्बत-122<br />
5)चेहरा-212<br />
शुद्ध-चहरा-22</div>
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...<br />
<br />
कितनी यादें छिपी हैं उनकी खामोश आंखों में,<br />
डर लगता है कहीं उफ़क न पड़ें मेरे आने से ।<br />
<br />
--------------हर्ष महजन</div>
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...<br />
<br />
करता रहा उम्र-भर नफरत जिस शख्स से,<br />
जुदा हुआ तो कतरा इक मेरी आँखों में था,<br />
<br />
यत्न तो किये थे मैने कि उसे भूल ही जाऊँ, <br />
मगर क्या करूँ वो दिल की सलाख़ों में था ।<br />
<br />
----------------हर्ष महाजन</div>
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