इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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Friday, March 11, 2011
HarkatoN se woh kabhi baaz nahiN aate
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HarkatoN se woh kabhi baaz nahiN aate
Mere hi saaye ab mujhe raas nahiN aate
Koi toh ho, jala de ik charag, ke saffar badle
In AndheroN me gum bhi ab paas nahiN aate
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..
ReplyDelete.
ReplyDeleteनीचे हिंदी अनुवाद लिख रही हूँ, चाहें तो ब्लौग पर कट-पेस्ट कर लें ।
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हरकतों से वो कभी बाज़ नहीं आते
मेरे ही साए अब मुझे रास नहीं आते ।
कोई तो हो जला दे एक चराग , के सफ़र बदले
इन अंधेरों में गम भी अब रास नहीं आते ।
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Shukriyaa^h Divya Ji....
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