इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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Saturday, November 26, 2011
Iss tarah rooth kar mere yaar kidher jaayega
Iss tarah rooth kar mere yaar kidher jaayega
Ab ke tootega toh tu khud hi bikhar jaayega.
KyuN na hoN shikwe meri aaj ghazloN pe tujhe
Kabhi sun lega toh tu khud hi sihar jaayega....
बहुत बढ़िया सर...दाद कबूल करें...देवनागरी में क्यूँ नहीं लिख रहे आप???
ReplyDeleteHaaaN phir shuru karooNga....waqt ki kami nazer aati hai....
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