दोहा क्या है ?
कविता में कुछ व्याकरण सुधार ...
दोस्तों आज ये दो मिसरे मैंने एक दोहे के फलस्वरूप कहे ........
इन मिसरों को जब मैंने कहा..तो मन में मेरे "harash mahajan's six liners" की याद आ गयी ।
उनके बारे में मैं आपको बता दूं ...वो मेरे "harash mahajan's six liners" और कुछ नहीं :कुण्डलिया छंद हैं ।
कुण्डलिया छंद दोहा और रोला का मिलान ही समझिये ...
कुण्डलिया छंद में कुल छ: पद होते हैं पद का मतलब मिसरे ।इन्हें आप चरण भी कह सकते हैं । पहले दो चरण दोहे के और शेष चार चरण रोला छंद के होते हैं ।
इनके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ।
अब आओ सबसे पहले कुण्डलिया छंद में हम "दोहे" की आवृति को समझें ।
दोहे में दो चरण होते हैं इसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ।
हर चरण दो भागों में बंटा होता है ...और उसका पहले और तीसरे भाग में १३-१३ मात्राएँ और दुसरे और चौथे भाग में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।
जैसे मेरा ऊपर एक दोहा जो कहा गया है उसे ध्यान से देखिये ।
"हरषा"' सब के मन खड़ा,=१३ काटे सबका ज़हर=११ ---------=२४ मात्राएँ
मनवा काले सींच कर,=१३ शब् में भर दे सहर ।=११ ----------=२४ मात्राएँ
रोला छंद में चार चरण होते हैं और उसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ ही होती हैं ..
लेकिन दोहे के उलट उसके हर चरण के भाग में ...१३+११ की जगह ११+१३ मात्राओं का साथ होता है ...
कुण्डलिया छंद में पहले दो चरण दोहे के और बाकी चार चरण रोला छंद के होते हैं ।
उद्धरण वही पुराने दोहे से देते हैं >>>
देखिये ...
'हर्षा' सब के मन खड़ा काटे सबका ज़हर _________१३+११=24
मनवा काले सींच कर शब् में भर दे सहर ।_________१३+११=24
शब् में भर दे सहर, करे अब दूर छलावे ,_________११+१३=24
दिल में हो कुछ बैर , सभी को दूर भगावे ,_________११+१३=24
कहे 'हर्ष' कविराय , खुदा से कर दो वर्षा ,_________११+१३=24
बैर करेगी हरण , तो खुश होवेगा हर्षा ।_________११+१३=24
कुण्डलिया छंद में मात्राओं का जियादा महत्त्व है....
मात्राओं की गिनती कैसे करें-आइये देखते हैं
रोला छंद में चार चरण होते हैं और उसके प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ ही होती हैं ..
लेकिन दोहे के उलट उसके हर चरण के भाग में ...१३+११ की जगह ११+१३ मात्राओं का साथ होता है ...
कुण्डलिया छंद में पहले दो चरण दोहे के और बाकी चार चरण रोला छंद के होते हैं ।
उद्धरण वही पुराने दोहे से देते हैं >>>
देखिये ...
'हर्षा' सब के मन खड़ा काटे सबका ज़हर _________१३+११=24
मनवा काले सींच कर शब् में भर दे सहर ।_________१३+११=24
शब् में भर दे सहर, करे अब दूर छलावे ,_________११+१३=24
दिल में हो कुछ बैर , सभी को दूर भगावे ,_________११+१३=24
कहे 'हर्ष' कविराय , खुदा से कर दो वर्षा ,_________११+१३=24
बैर करेगी हरण , तो खुश होवेगा हर्षा ।_________११+१३=24
कुण्डलिया छंद में मात्राओं का जियादा महत्त्व है....
मात्राओं की गिनती कैसे करें-आइये देखते हैं
काव्य में छंद का अपना महत्व है। छंद रचना के लिए मात्राओं को समझना
एवं मात्राओं की गिनती करने का पूर्ण रूप से पता होना
अनिवार्य है। यह तो सभी को पता है कि वर्णों को स्वर एवं व्यंजन दो भागों में
बांटा गया है। स्वरों की मात्राओं की
गिनती करने का नियम इस प्रकार है-
अ, इ, उ की मात्राएँ छोटी या लघु (।) मानी गयी हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ बाडी या दीर्घ (S) मानी गयी है।
क से लेकर ज्ञ तक व्यंजनों को लघु मानते हुए इनकी मात्रा एक (।) मानी गयी है।
इ एवं उ की मात्रा लगने पर भी इनकी मात्रा लघु (1) ही रहती है,
परन्तु इन व्यंजनों पर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ लगने पर इनकी मात्रा दीर्घ (S) हो जाती है।
अनुस्वार (.) तथा स्वरहीन व्यंजन अर्थात आधे व्यंजन की आधी मात्रा मानी जाती है।वैसे तो आधी मात्रा की गणना नहीं की जाती परन्तु यदि अनुस्वार (.) अ, इ, उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
स्वरहीन व्यंजन से पहले लघु स्वर या लघुमात्रिक व्यंजन का प्रयोग होने पर स्वरहीन व्यंजन से पूर्व वाले अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। उदाहरण के लिए कंस,अंश, हंस, वंश, कं,में अं हं, वं, सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी।
अच्छा, रम्भा, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय अ, र, क तथा दि की दो मात्राएँ गिनी जाएँगी, किसी भी स्तिथि में च्छा, म्भा, त्ता और ल्ली की तीन मात्राये नहीं गिनी जाएँगी। इसी प्रकार त्याग, म्लान, प्राण आदि शब्दों में त्या, म्ला, प्रा में स्वरहीन व्यंजन होने के कारण इनकी मात्राएँ दो ही मानी जायेंगी।
अनुनासिक की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती.जैसे-
हँस, विहँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई
मात्रा नहीं मानी जाती।
अनुनासिक के लिए सामान्यतः चन्द्र -बिंदु का प्रयोग किया जाता है.जैसे - साँस, किन्तु ऊपर की मात्रा वाले शब्दों में केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है, जिसे भ्रमवश कई पाठक अनुस्वार समझ लेते है.जैसे- पिंजरा, नींद, तोंद आदि शब्दों में अनुस्वार ( . ) नहीं बल्कि अनुनासिक का प्रयोग है।
दोस्तों ये लेख पूर्णतया मेरा नहीं है इसमें चर्चाओं से अर्जित और बहुत से विद्वानों का योग है और ये विद्या यहाँ पर अपनी इन्टरनेट के माध्यम से तथा अपनी विद्या के साथ सम्मलित कर समझाने का पर्यास भर है.....अगर किसी को लाभ मिले मुझे बहुत खुशी प्राप्त होगी...
अ, इ, उ की मात्राएँ छोटी या लघु (।) मानी गयी हैं।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ बाडी या दीर्घ (S) मानी गयी है।
क से लेकर ज्ञ तक व्यंजनों को लघु मानते हुए इनकी मात्रा एक (।) मानी गयी है।
इ एवं उ की मात्रा लगने पर भी इनकी मात्रा लघु (1) ही रहती है,
परन्तु इन व्यंजनों पर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ लगने पर इनकी मात्रा दीर्घ (S) हो जाती है।
अनुस्वार (.) तथा स्वरहीन व्यंजन अर्थात आधे व्यंजन की आधी मात्रा मानी जाती है।वैसे तो आधी मात्रा की गणना नहीं की जाती परन्तु यदि अनुस्वार (.) अ, इ, उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
स्वरहीन व्यंजन से पहले लघु स्वर या लघुमात्रिक व्यंजन का प्रयोग होने पर स्वरहीन व्यंजन से पूर्व वाले अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। उदाहरण के लिए कंस,अंश, हंस, वंश, कं,में अं हं, वं, सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी।
अच्छा, रम्भा, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय अ, र, क तथा दि की दो मात्राएँ गिनी जाएँगी, किसी भी स्तिथि में च्छा, म्भा, त्ता और ल्ली की तीन मात्राये नहीं गिनी जाएँगी। इसी प्रकार त्याग, म्लान, प्राण आदि शब्दों में त्या, म्ला, प्रा में स्वरहीन व्यंजन होने के कारण इनकी मात्राएँ दो ही मानी जायेंगी।
अनुनासिक की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती.जैसे-
हँस, विहँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई
मात्रा नहीं मानी जाती।
अनुनासिक के लिए सामान्यतः चन्द्र -बिंदु का प्रयोग किया जाता है.जैसे - साँस, किन्तु ऊपर की मात्रा वाले शब्दों में केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है, जिसे भ्रमवश कई पाठक अनुस्वार समझ लेते है.जैसे- पिंजरा, नींद, तोंद आदि शब्दों में अनुस्वार ( . ) नहीं बल्कि अनुनासिक का प्रयोग है।
दोस्तों ये लेख पूर्णतया मेरा नहीं है इसमें चर्चाओं से अर्जित और बहुत से विद्वानों का योग है और ये विद्या यहाँ पर अपनी इन्टरनेट के माध्यम से तथा अपनी विद्या के साथ सम्मलित कर समझाने का पर्यास भर है.....अगर किसी को लाभ मिले मुझे बहुत खुशी प्राप्त होगी...
उम्मीद है मैं इसे समझाने में सफल हुआ हूँ ।
(दोस्तों मैं अब भी आव्हान करना चाहता हूँ सभी इस क्षेत्र विद्वानों से के आओ इस विधा को हम सब मिल कर आगे बढाए। अपनी समझ को एक दुसरे के संग मिल कर वितरित करें ।मैं एक कम इल्मी इंसान जितना जानता है उसे शेयर कने की कोशिश कर रहा हूँ )
नोट:--
एक बार फिर मैं याद दिलाना चाहता हूँ ..कृपया कविता को मज़ाक न बनने दें कोई दो चार मिसरे इधर उधर कह लेने या लिखने से या उसे छोटे छोटे भागों में बाटने से नहीं हो जाती ..इसके लिए कृपया उसके व्याकरण का ख्याल ज़रूर रखने की कोशिश ज़रूर करें ...और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो ...कम से कम ख्याल रखने की कोशिश ज़रूर करें .....
हर्ष महाजन
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नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12
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1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
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3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
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8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
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