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अपने घर को छोड़ के, चली पराये गाँव
काट दियो उसि डाल को,डाल तले जिस छाँव।
डाल तले जिस छाँव, सजन संग दूजे लागी,
वो नार बनी भुजंग, देख पर नार वो जागी ।
कहे 'हर्ष' समुझाए , न संजोयें ऐसे सपने,
पल में झटके जाएँ, रहें जु कभी थे अपने ।
__________________हर्ष महाजन
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