..
वो बहुत ही बदजात निकला,
जो ख़्वाबों से बाहर निकला ।
दिल से चाहा था उसे बहुत ,
पर वो फूल में खार निकला ।
मेरे हुस्न पर उसे नाज़ था ,
जाते हुए ज़ुल्फ़ संवार निकला ।
किस तरह उसे भूल जाऊं मैं ,
बे-बस कर गिरफ्तार निकला ।
अब डर है मुझे मर न जाऊं ,
वो शख्स इतना बिमार निकला ।
______________हर्ष महाजन ।
No comments:
Post a Comment