इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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Monday, April 23, 2012
गर नाम दे दिया है तूने मेरी मोहब्बत को शौक का
गर नाम दे दिया है तूने मेरी मोहब्बत को शौक का क्या होगा मेरी बद्दुआओ का जब कहर बन टूटेंगी ।
तेरी बद्दुआ का ना मुझ पर कोई असर होगा बद्दुआ देने से पहले तुझे मेरा फिकर होगा तेरी हर बद्दुआ भी दुआ सी लग जायेगी मुझे तुझसा, चाहने वाला ना कोई सितमगर होगा
तेरी बद्दुआ का ना मुझ पर कोई असर होगा
ReplyDeleteबद्दुआ देने से पहले तुझे मेरा फिकर होगा
तेरी हर बद्दुआ भी दुआ सी लग जायेगी मुझे
तुझसा, चाहने वाला ना कोई सितमगर होगा