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मुझ संग बीता सब हिसाब रखता हूँ
जुबां से चुप दिल में किताब रखता हूँ ।
इक-इक लम्हा आँखों में दर्ज है यूँ ,
अपने इशारों में सब जवाब रखता हूँ ।
किस तरह मिटाएगा कोई शैतां मुझको,
रूहानियत का इतना सबाब रखता हूँ ।
हिकारत से न देखे कोई मुझे इस तरह
अपनी शक्सिअत का ऐसा रुआब रखता हूँ ।
खुदा की रहे नैमत मुझ पर ऐ 'हर्ष'
सो अपनी सोच को नायाब रखता हूँ ।
____________हर्ष महाजन ।
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