इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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Thursday, August 2, 2012
उस शख्स ने लगे है मुझे बर्बाद करने की ठानी है
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उस शख्स ने लगे है मुझे बर्बाद करने की ठानी है मगर खुदा ने फ़क़त उसकी यही बात नहीं मानी है । बहुत चाहा था उसे मैंने मगर उसे बता ही न सका मगर खुदा ने मेरी ज़िन्दगी रग-रग तक पहचानी है ।
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