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जुल्फों पे उसको बहुत ही गुमाँ है,
अब कैसे कहूँ बे-अदब बे-वफ़ा है |
जिंदा भी उसी का कब्र में उसी का,
मगर जाने क्यूँ मुझसे वो खफा है |
महकती हवाओं में चेहरे का दिखना,
ये मंज़र ख्यालों में कैसा चला है |
मुहब्बत नहीं, इस तरह भी नहीं है ,
कुछ मजबूरियों का ये मंज़र बना है |
रग-रग में उसकी वफ़ा का नशा है,
मैं जिंदा उसी से वो मुझ से जिंदा है |
___________हर्ष महाजन |
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