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मेरे अहसास हैं ये, हैं मगर उनके सितम,
ये हुनर मेरा सही , हैं उन्ही के दिए गम |
है ये पत्थरों का शहर उस पे झूठ औ ज़हर,
लफ्ज़ रुकते ही नहीं ख़त भी हो जाते हैं नम |
लब पे आती है ग़ज़ल, तन्हा होती है जो शब्
होती है सहर तो जब, गम हो जाते हैं सितम |
_______________हर्ष महाजन
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