...
बेवज़ह तू दो पल जुदा हुई,
शायद तू खुद न रिहा हुई |
जब मुस्तकबिल तेरा यहाँ,
काहे को तू फिर विदा हुई |
तुझे रंज कोई कलम से है ,
फिर नराज़गी क्या अदा हुई |
दुश्मन था पहले ही ताब पे ,
जो थीं हसरतें यूँ फना हुई |
तू समन्दरों की प्यास फिर,
दरिया पर क्यूँ तू फ़िदा हुई |
सर रख तू रो जिन कांधों पे,
तू समझ 'हर्ष' से अता हुई |
________हर्ष महाजन
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