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मैंने माना है तू हाथों की लकीरों में नहीं,
पर दुआ आज भी मैं तेरे लिए करता हूँ |
तू मुक़द्दर न सही पर गिले से खारिज हूँ ,
हो वज़ह कुछ भी रकीबों से पर मैं डरता हूँ |
हुआ जो मुझ से जुदा मुड के तूने देखा नहीं,
आखिरी खत तेरा पढ-पढ़ के रोज़ मरता हूँ |
अब तलक तुझको मैं अलविदा भी कह न सका,
ख़्वाबों में रोता मगर, सुबह मैं मुकरता हूँ |
___________हर्ष महाजन
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