…
लड़कपन में बचपन संग बीता जवानी में क्यूँ भूख ज्यादा है,
मेरा हलक अब, बातों से उनकी, न जाने क्यूँ सूख जाता है।
काज़ल बिखरा ज़ुल्फ़ें भी बिखरीं बिखरा हुआ अब सावन है,
दिल में छुपा हर नगमा वो जाने चुपके से क्यूँ कूक जाता है ।
_________________हर्ष महाजन
लड़कपन में बचपन संग बीता जवानी में क्यूँ भूख ज्यादा है,
मेरा हलक अब, बातों से उनकी, न जाने क्यूँ सूख जाता है।
काज़ल बिखरा ज़ुल्फ़ें भी बिखरीं बिखरा हुआ अब सावन है,
दिल में छुपा हर नगमा वो जाने चुपके से क्यूँ कूक जाता है ।
_________________हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment