Friday, December 19, 2014

क्यूँ छलकते हैं ये सागर, ऐसे मंज़र क्यूँ यहाँ,

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क्यूँ छलकते हैं ये सागर, ऐसे मंज़र क्यूँ यहाँ,
मुझे कोई ज़ख्म नहीं, दर्द नहीं, गम भी नहीं |


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KyuN chhalakte haiN ye saaGar, aise manzar, kyuN yahaaN,
Mujhe koii Zakhm nahiN..............dard nahiN, Gam bhi nahiN.

[saaGar=wine cup; manzar=scene]

__________________Harash Mahajan

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