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ये तोपें हिन्द की गर खुल गईं दुश्मन का क्या होगा,
मिटेगा हर निशाँ दुनियाँ के नक्शे से बयाँ होगा ।
जो घाटी से मुहब्बत की दुहाई दे रहे दुश्मन,
उठेंगी अर्थियां इक-इक डगर दुश्मन फनां होगा ।
अरुणाचल डोकलम की मार्फत गर छेड़ दिया हिन्द को,
तो बीजिंग से शिंगाई तक यहां हिन्दोस्तां होगा ।
ये बासठ का नहीं है हिन्द मिसाइलों से हुआ जालिम,
यहां गर आंख भी फड़की धुआं जाने कहाँ होगा ।
बहुत हो गए पटाखे सरहदों पे खत्म हुई सरगम,
यूँ ले अंगड़ाई बदला हिन्द यहां फिर से जवाँ होगा ।
अभी है वक़्त संभल जाओ चेताता 'हर्ष' तुम्हें वरना,
यहां कुछ देशों का जग में नहीं नामों निशाँ होगा ।
--------------------हर्ष महाजन
ये तोपें हिन्द की गर खुल गईं दुश्मन का क्या होगा,
मिटेगा हर निशाँ दुनियाँ के नक्शे से बयाँ होगा ।
जो घाटी से मुहब्बत की दुहाई दे रहे दुश्मन,
उठेंगी अर्थियां इक-इक डगर दुश्मन फनां होगा ।
अरुणाचल डोकलम की मार्फत गर छेड़ दिया हिन्द को,
तो बीजिंग से शिंगाई तक यहां हिन्दोस्तां होगा ।
ये बासठ का नहीं है हिन्द मिसाइलों से हुआ जालिम,
यहां गर आंख भी फड़की धुआं जाने कहाँ होगा ।
बहुत हो गए पटाखे सरहदों पे खत्म हुई सरगम,
यूँ ले अंगड़ाई बदला हिन्द यहां फिर से जवाँ होगा ।
अभी है वक़्त संभल जाओ चेताता 'हर्ष' तुम्हें वरना,
यहां कुछ देशों का जग में नहीं नामों निशाँ होगा ।
--------------------हर्ष महाजन
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