सलीका हो भीगी पलकों को पढने का
तो चंद आंसू आज मैं भी तुम्हे पेश करता हूँ ।
हुनर हो किसी के दिल को परखने का
तो ये दिल आज मैं भी तुम्हे पेश करता हूँ ।
अगर शक ही तारी है सर पे तुम्हारे ऐ 'हर्ष'
ये सर भी आज सर-ए-बज़्म तुम्हे पेश करता हूँ ।
______________हर्ष महाजन
तो चंद आंसू आज मैं भी तुम्हे पेश करता हूँ ।
हुनर हो किसी के दिल को परखने का
तो ये दिल आज मैं भी तुम्हे पेश करता हूँ ।
अगर शक ही तारी है सर पे तुम्हारे ऐ 'हर्ष'
ये सर भी आज सर-ए-बज़्म तुम्हे पेश करता हूँ ।
______________हर्ष महाजन
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