Apne hathoN ki lakeeroN maiN sajaooN kaise,
Tu mera muqadder hai tujhe bhulaooN kaise.
KantoN se bachke chalna nahiN meri aadat,
Phool ko chahooN toh kantoN ko bhulaooN kaise.
Teri aastaaN ka muqaddas nazara kerke,
Khuda ko bhool bhi jaooN per tujhe bhulaooN kaise.
Tu jo kehti hai ki maiN aayiina hooN tera,
Ye wehem hai tere dil ka ise mitaooN kaise.
Harash
इस ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव के साथ कई कवि सम्मेलनों और महफ़िलों में शिर्कत करते हुए ज़हन से निकले अहसास, अल्फास बनकर किस तरह तहरीरों में क़ैद हुए मुझे खुद भी इसका अहसास नहीं हुआ | मेरे ज़हन से अंकुरित अहसास अपनी मंजिल पाने को कभी शेर, नज़्म , कता, क्षणिका, ग़ज़ल और न जाने क्या-क्या शक्ल अख्तियार कर गया | मैं काव्य कहने में इतना परिपक्व तो नहीं हूँ | लेकिन प्रस्तुत रचनाएँ मेरी तन्हाइयों की गवाह बनकर आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले है उम्मीद है आपका सानिध्य पाकर ये रचनाएँ और भी मुखर होंगी |
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