Monday, October 5, 2015

इतनी करो न हमसे शरारत न यूं कभी

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इतनी करो न हमसे शरारत न यूं कभी,
आँखों से उठ न जाए शराफत न यूं कभी |
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देखे, जो चांदनी में, नहाया तिरा बदन,
हो जाए न शहर में बगावत न यूं कभी |
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वो चाँद जब फलक से कभी इस तरह झुके,
देखी, न इस तरह की , इबादत न यूं कभी |
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आओ, चलें चमन से, कहीं दूर, गुलबदन,
ये चाँदनी, करे न, खिलाफत न यूं कभी |
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चर्चे तिरे, शहर में, जफाओं के, इस तरह,
लगने लगे न दिल में अदालत न यूं कभी |
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_________हर्ष महाजन
221 2121 1221 212

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