Sunday, May 16, 2021

ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया

 दोस्तो आज बहुत अरसे बाद एक ताज़ातरीन ग़ज़ल आपकी अदालत की नज़र कर रहा हूँ।

आजकल के महामारी के माहौल पर कही ये ग़ज़ल...अपनों के खोने का ग़म क्या होता है, जो पीछे रह जाते हैं उनसे पूछिये ।


 बहुत ही दिलकश औऱ मुश्किल बह्र पर है ये ग़ज़ल .....कैफ़ी आज़मी की ज़मीन पर इस ग़ज़ल को कहने की कोशिश की है । जगजीत सिंह जी की आवाज़ में एक ग़ज़ल


*झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है कि नहीं*


बह्र: 1212 1122 1212 112(22)


आप सभी से अनुरोध इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले जगजीत सिंह साहिब की गायी ग़ज़ल की औडिओ एक बार जरूर सुनलें । आपको पढ़ने का असल अर्थ अच्छी तरह समझ आएगा औऱ मज़ा भी आएगा ।

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ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया,

मेरा नसीब क्यूँ बीमार करके छोड़ दिया ।


अभी-अभी तो गुलों में बहार होने को थी,

हवा को किसने गिरफ़्तार करके छोड़ दिया ।


ढली है शाम-ओ-सहर औऱ उम्र भी पल में,

हुए ज़ुदा तो गुनाहगार करके छोड़ दिया ।


वो बेवफ़ा भी कहें मुझको ये कबूल सही,

मगर है रंज मुझे प्यार करके छोड़ दिया ।


ज़ुदा हुए तो हुए इसका तो है ग़म लेकिन,

है ग़म तो उसका कि गुल **खार करके छोड़ दिया ।


लगी क्या आँख जरा सी वफ़ा भी भूल गए,

मेरा वज़ूद यूँ मझधार करके छोड़ दिया ।


ज़मी भी थम सी गयी आसमाँ ठहर सा गया,

यूँ मेरी हस्ती को बेकार करके छोड़ दिया ।


जो कद्र करता रहा उम्र भर तेरी लेकिन,

उसी चराग़ को बेज़ार करके छोड़ दिया ।


तवाफ़* करता रहूँ तेरे इर्द गिर्द लेकिन,

ये आस पास क्यूँ दीवार करके छोड़ दिया ।


--------हर्ष महाजन 'हर्ष'


*तवाफ़= चक्कर

**खार= राख

Monday, May 10, 2021

बड़े आलीशान मकान में रहते हो

 --नज़्म--


सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।

देखो !!

मौत के सौदे, 

सर-ए-आम होने लगे हैं,

गरीब अकेले ही

काँधे पे--लाश ढोने लगे हैं ।

मंदिर-ओ-मस्ज़िद से 

अब न घंटे की

न अजां की आवाज आती है ।

दूर अपना---

जो भीषण आपदा में फँसा है

बस--

उसकी याद आती है ।

बिन तलवारों के 

श्मशान भीड़ से अटा पड़ा है ।

ज़िंदा इंसान भी 

अब लाईन में खड़ा है ।

---आओ न मेरे आका,

 तुम हर आंधी में तो रहते हो

मेरी इक इल्तिज़ा !! सुनोगे  ??

क्या कहते हो ?

तेरे लिए है न तुछ,

सिमटा दो न अब सब कुछ ।

मगर

मशहूर हो न,

 दिल बहलाने में,

हम भी कसर नहीं छोड़ेंगे

तुम्हें

आजमाने में ।

सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।


---हर्ष महाजन 'हर्ष'