Saturday, December 18, 2021

समय का पहिया जब भी चलेगा,

समय का पहिया जब भी चलेगा, कुदरत का इंसाफ चले,
जब भी चले इंसान का पहिया  चारो तरफ बेईमान चले ।

माफ करो भैया, काल चक्र भैया 

दिल से दिल की बात सुने तो हर कोशिश में ताकत है,
जब भी चले ढफली अपनी तो हर जगह तूफान चले ।

माफ करो भैया, काल चक्र भैया 

साथ रहें दुश्मन बनकर अर मौत पे अश्क़ बहाते है,
अपनों संग अना से अकड़ा रहा आखिर इकला जजमान चले ।

माफ करो भैया, काल चक्र भैया 

हर्ष महाजन 'हर्ष'

Sunday, November 28, 2021

दिल जब तलक आईना है तिरा मुहब्बत का क्या

 दिल जब तलक आईना है तिरा मुहब्बत का क्या,

तू दिल में रहे या सिर्फ मुहब्बत में, तू न हो तो क्या ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'

Sunday, August 22, 2021

तकती

 शुद्ध शब्द तबीयत है, न कि तबियत,

जिसका वज़्न 122 है,

 शे'र मुलाहज़ा फरमाएँ-

'ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई,

 आज फिर याद मुहब्बत की पुरानी आई,

                                -इकबाल अशहर,

इश्क के इज़हार में हर चंद रुसवाई तो है,

पर करूँ क्या अब तबीयत आप पर आई तो है,

                              -अक़बर इलाहाबादी,


Tuesday, June 8, 2021

मेरे डैडी (नज़्म)


यूँ तो दुनियाँ के सभी गम हँस के ढो लेता हूँ,

पर जो याद आए तुम्हारी तो मैं रो लेता हूँ।


यूँ तो अहसास हुआ करता है कि तुम दूर नहीं,

सोच के होगा ये मुमकिन ? मैं यूँ सो लेता हूँ।


ये भी वादा है कि संस्कार न भूलूंगा कभी,

मैं तो अक्सर उन्हीं डाँटो में ही खो लेता हूँ।


उम्र भर धूप में चलते हुए देखा है तुम्हें,

कितने ख़ुदगर्ज़ थे हम सोच के रो लेता हूँ ।


वो हिदायते अनुशासन मैं भी भूला तो नहीं,

उन्हीं बातों को फ़क़त खुद में पिरो लेता हूँ।


---–-हर्ष महाजन 'हर्ष'

Sunday, May 16, 2021

ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया

 दोस्तो आज बहुत अरसे बाद एक ताज़ातरीन ग़ज़ल आपकी अदालत की नज़र कर रहा हूँ।

आजकल के महामारी के माहौल पर कही ये ग़ज़ल...अपनों के खोने का ग़म क्या होता है, जो पीछे रह जाते हैं उनसे पूछिये ।


 बहुत ही दिलकश औऱ मुश्किल बह्र पर है ये ग़ज़ल .....कैफ़ी आज़मी की ज़मीन पर इस ग़ज़ल को कहने की कोशिश की है । जगजीत सिंह जी की आवाज़ में एक ग़ज़ल


*झुकी झुकी सी नज़र बेकरार है कि नहीं*


बह्र: 1212 1122 1212 112(22)


आप सभी से अनुरोध इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले जगजीत सिंह साहिब की गायी ग़ज़ल की औडिओ एक बार जरूर सुनलें । आपको पढ़ने का असल अर्थ अच्छी तरह समझ आएगा औऱ मज़ा भी आएगा ।

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ये कैसा वार मेरे यार करके छोड़ दिया,

मेरा नसीब क्यूँ बीमार करके छोड़ दिया ।


अभी-अभी तो गुलों में बहार होने को थी,

हवा को किसने गिरफ़्तार करके छोड़ दिया ।


ढली है शाम-ओ-सहर औऱ उम्र भी पल में,

हुए ज़ुदा तो गुनाहगार करके छोड़ दिया ।


वो बेवफ़ा भी कहें मुझको ये कबूल सही,

मगर है रंज मुझे प्यार करके छोड़ दिया ।


ज़ुदा हुए तो हुए इसका तो है ग़म लेकिन,

है ग़म तो उसका कि गुल **खार करके छोड़ दिया ।


लगी क्या आँख जरा सी वफ़ा भी भूल गए,

मेरा वज़ूद यूँ मझधार करके छोड़ दिया ।


ज़मी भी थम सी गयी आसमाँ ठहर सा गया,

यूँ मेरी हस्ती को बेकार करके छोड़ दिया ।


जो कद्र करता रहा उम्र भर तेरी लेकिन,

उसी चराग़ को बेज़ार करके छोड़ दिया ।


तवाफ़* करता रहूँ तेरे इर्द गिर्द लेकिन,

ये आस पास क्यूँ दीवार करके छोड़ दिया ।


--------हर्ष महाजन 'हर्ष'


*तवाफ़= चक्कर

**खार= राख

Monday, May 10, 2021

बड़े आलीशान मकान में रहते हो

 --नज़्म--


सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।

देखो !!

मौत के सौदे, 

सर-ए-आम होने लगे हैं,

गरीब अकेले ही

काँधे पे--लाश ढोने लगे हैं ।

मंदिर-ओ-मस्ज़िद से 

अब न घंटे की

न अजां की आवाज आती है ।

दूर अपना---

जो भीषण आपदा में फँसा है

बस--

उसकी याद आती है ।

बिन तलवारों के 

श्मशान भीड़ से अटा पड़ा है ।

ज़िंदा इंसान भी 

अब लाईन में खड़ा है ।

---आओ न मेरे आका,

 तुम हर आंधी में तो रहते हो

मेरी इक इल्तिज़ा !! सुनोगे  ??

क्या कहते हो ?

तेरे लिए है न तुछ,

सिमटा दो न अब सब कुछ ।

मगर

मशहूर हो न,

 दिल बहलाने में,

हम भी कसर नहीं छोड़ेंगे

तुम्हें

आजमाने में ।

सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।


---हर्ष महाजन 'हर्ष'

Monday, April 12, 2021

कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला

 ★★★★★★★नज़्म★★★★★★★★


अनकही बातें न जानें दिल में कितनी ले गया,

उँगलियाँ अपनों की यूँ....दांतों तले वो दे गया ।


कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला,

अपने हाथों, की लकीरों....,..को दगा वो दे गया ।  


क्या चलेगी बेगुनाही.....की कलम अबकी यहॉं ?

किसने दी ऐसी सज़ा.....वो ज़िंदगी ही से गया ।


है दुआ, बातों से निकले.....राह कोई अब यहाँ,

वर्ना लिख देना जहाँ में, अपना, अपनों से गया ।


थी शिकायत उससे.......पाबंदी-ओ-शर्तें बेसबब,

बिन अदालत आपकी ख़ातिर वो जाँ तक दे गया । 


कितना तड़पा होगा वो उस आख़िरी पल में फ़क़त,

लिख मुकद्दर, ख़ुद वो अपना, रूह जहाँ से ले गया ।


ये खुदा की नैमतें हैं.........हम सभी ज़िंदा खड़े,

कौन जाने किसने जाना था.....किसे वो ले गया ।


पूजा कर-कर उम्र बीती दिल में क्यों नफ़रत अबस,

अब वो महफ़िल में नहीं पर दिल में नफरत ले गया ।


कुछ के दिल में थी अदावत* कुछ में रिश्ता नाम का,

इस तरह, वो संग, सबके रंजो गम......सब ले गया ।


रंजिशें किसकी थीं कितनी, ज़ह्र भी इतना था उफ़,

ऐ ख़ुदा तू ये बता अब.......ये गुनाह किस पे गया ।

 

इससे ज़्यादा ये तमाशा...........कौन देखेगा यहॉं,

तज़रुबा अपने हलातों.............का मगर वो दे गया ।


------हर्ष महाजन 'हर्ष'


*अदावत = शत्रुता


बह्र तर्ज़: आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे


2122 2122 2122 212


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