यूँ तो दुनियाँ के सभी गम हँस के ढो लेता हूँ,
पर जो याद आए तुम्हारी तो मैं रो लेता हूँ।
यूँ तो अहसास हुआ करता है कि तुम दूर नहीं,
सोच के होगा ये मुमकिन ? मैं यूँ सो लेता हूँ।
ये भी वादा है कि संस्कार न भूलूंगा कभी,
मैं तो अक्सर उन्हीं डाँटो में ही खो लेता हूँ।
उम्र भर धूप में चलते हुए देखा है तुम्हें,
कितने ख़ुदगर्ज़ थे हम सोच के रो लेता हूँ ।
वो हिदायते अनुशासन मैं भी भूला तो नहीं,
उन्हीं बातों को फ़क़त खुद में पिरो लेता हूँ।
---–-हर्ष महाजन 'हर्ष'
Nice sir
ReplyDeleteThanks Dr Madhu Prashar ji...
DeleteKaafi arse baad aapko yahaan dekha...
वाह, पितृ दिवस के पहले पिता के ऊपर भावभरी रचना का उपहार ।
ReplyDeleteरचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteवाह बहुत ही उत्तम ग़ज़ल ।
ReplyDeleteबधाई
Dhanywad !
Deleteइस पहले शेर ने ही रुला दिया ...
ReplyDeleteयूँ तो दुनियाँ के सभी गम हँस के ढो लेता हूँ,
पर जो याद आए तुम्हारी तो मैं रो लेता हूँ।
पिता पर लिखी रचना के लिए बधाई.
डॉ.जेन्नी शबनम जी आपकी आमद और ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । उम्मीद है आप यूँ ही आती रहेंगी औऱ होंसिला बढ़ाती रहेंगी ।
Deleteसादर
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरनीय👌👌👌👌👌💐💐💐💐
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