Tuesday, June 30, 2020

रदीफ़ दोष:: पोस्ट-4

■■Post-4■■
◆◆रदीफ़ दोष◆◆
●●(c) रब्त का न होना●●
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 प्रिय पाठकों:
ग़ज़ल कहन अगर आसाँ कहें तो ये हमारी भूल होगी । ये एक ऐसी विदा है जिसकी अथाह गहराई को समझने के लिए बहुत ही सहनशीलता और विनम्रता चाहिए ।  आजकल के लेखक की किसी कृति पर अगर किसी को कोई सुझाव भी दे दिया जाए तो इंसान विफऱ जाता है । वो व्यक्ति कहां इस विदा में तरक्की कर पायेगा ?

इस विदा में हर व्यक्ति अधूरा है यही समझो कि समझने के लिए समंदर अभी बाकि है मैं कम इल्मी इंसान आप जैसे धुरंदर कहने वालों को क्या सीखा पाऊंगा ? यही समझना कि मैंने अपने गुरु से जो कुछ भी सीखा बस वही तकसीम करने की कोशिश भर है । ग़ज़ल विदा को जब भी शुरू कीजियेगा अपने गुरु को हमेशा याद कीजियेगा आपकी विदा में चार चांद ज़रूर लगेंगे । बात कर रहे थे रदीफ़ के बारे में -----

कहे गए शे'र में जो रदीफ़ इस्तेमाल किया गया है अगर उसका कोई ओचित्य न हो या उसका रदीफ़ बेवजह ठूँस दिया गया हो या अर्थहीन जान पड़ता हो तो उस से शे'र में हल्कापन आ जाता है । इसे जानने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि रदीफ़ को हटा कर देखा जाए । अगर आपकी कही तहरीर में कोई भी फर्क नहीं पड़ता तो समझ लेना चाहिए कि वो भर्ती की रदीफ़ इस्तेमाल की गई है ।

ग़ज़ल की बाबत के मुताबिक एक उदाहरण लेते हैं:
आप जो हमसे दूर गए,
दिल से हम मज़बूर गए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर गए

आप देखेंगे सब कुछ सही सलामत यथावत लिया गया है । रदीफ़-क्वाफी भी एक दम दुरुस्त है । लेकिन पहली पंक्ति में रदीफ़ सही तरह से ली गयी है ।

मतला के सानी में और दूसरे  शे'र के सानी में रदीफ़  का निर्वाह ठीक नही हुआ ।
यहां रब्त नहीं बना ।

सही क्या है ?

आप जो हमसे दूर हुए,
दिल से हम मज़बूर हुए
आप न थे तो क्या थे हम
आपसे मिल मशहूर हुए

एक और बात:

दोस्तो रदीफ़ के अपने ही बेमिसाल कुछ नियम हैं----

*रदीफ़ का काफ़िये के साथ पूर्ण रब्त या तालमेल हो यानि काफ़िया और रदीफ़ एक सार्थक जोड़ी बनाते हो और बेमेल न हों। जैसे–
फ़साना सुनाओ/ तराना सुनाओ के साथ ‘कोई गीत पुराना सुनाओ’ तो चलेगा, लेकिन ‘मुझे दिल चुराना सुनाओ‘ कैसे फिट होगा, क्योंकि चुराना सिखाओ हो सकता है, सुनाओ कैसे होगा?
*काफ़िये के लिंग, वचन ( singular/plural)और काल का रदीफ़ के साथ रब्त होना चाहिए। जैसे–
खता हो गई/ दुआ हो गई/ हवा हो गई के साथ ‘भला हो गई’ का कोई रब्त नहीं है, क्योंकि यहाँ ‘भला हो गया’ सही है।
रिसाला मिला/ उजाला मिला/ निवाला मिला के साथ ‘सबके होठों पर ताला मिला’ सही नहीं है क्योंकि ‘सबके होठों पर ताले मिले’ सही होगा।

कई बार देखा गया कि ऐसे ऐसे शेर बना दिये जाते है जहाँ ग़ज़ल में दो या तीन शेर तो सही रदीफ़ से मेल खाते हुए बने बाकि सभी शेरों में बिना रब्त के रदीफ़ इस्तेमाल कर दिया गया ।

***क्रमश:***

◆◆अगला पोस्ट-5◆◆रदीफ़ दोष (d)तक़ाबूले-रदीफ़◆◆

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Monday, June 29, 2020

रदीफ़ दोष:: पोस्ट-3

◆Post-3◆

रदीफ़ दोष (b)

■■​तहलीली रदीफ़ ■■
★★★★★★★★★★

ग़ज़ल कहने वाले रदीफ़ तो जानते हैं मगर तहलीली रदीफ़ के बारे में कम ही लोग वाक़िफ़ हैं। आओ तहलीली रदीफ़ क्या होता है आज ये भी देख लें :-
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

जब रदीफ़ इस तरह से क़ाफिये के बाद आये कि वह क़ाफिये में योजित हो जाए… सरल शब्दों में कहा जाए तो मिक्स (MIX) हो जाए तो ऐसे रदीफ़ को तहलीली रदीफ़ कहते हैं।

उदाहरण
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सब से मिलता है जो रो कर
रह न जाये ख़ुद का हो कर ।

ले मज़ा आवारगी का
मंज़िलों को मार ठोकर ।

 ऊपर मतले के अनुसार 'रो', 'हो' काफ़िया है और 'कर' रदीफ़ है ।
मगर दूसरे शेर में ' ठोकर' शब्द में काफ़िया और रदीफ़ आपस में जज़्ब होकर प्रयोग हुए हैं । अर्थात रदीफ़ काफिये के साथ चस्पा हो गयी है । इसे ही तहलीली रदीफ़ कहते हैं ।

■■नोट"■■

अधिकतर उर्दुदान इसे तहलीली दोष मानते हैं । लेकिन कुछ अरूजी इसे दोष नहीं मानते ।
★★★★★★★★

■■क्रमशः■■

◆◆अगला Post-4-रदीफ़ दोष(c) रब्त न होना◆◆

Saturday, June 27, 2020

रदीफ़ दोष :: पोस्ट- 2

◆Post-2◆

(1) रदीफ़ दोष (a)
दोस्तो काफ़िया के तुक (अन्त्यानुप्रास) और उसके बाद आने वाले शब्द या शब्दों को रदीफ़ कहते है। काफ़िया बदलता है किन्तु रदीफ़ नहीं बदलती है। उसका रूप जस का तस रहता है।
ये थोड़ी सी जानकारी इसलिए देनी ज़रूरी समझी कि अभी जिस बारे में बात होनी है उसका टॉपिक यही है ।

प्रिय पाठकों: ग़ज़ल कहन को अगर हम आसान कहें तो वह ठीक न होगा । इस विदा को बड़े ही सहज भाव से तथा बड़ी सहनशीलता से ही सीखा जा सकता है । इसे समझने के लिए अथाह गहराई तक समंदर को नापने जैसा अनुभव प्राप्त करने का मादा होना चाहिए । लेकिन आजकल के नए नए लेखकों को उनकी ज़रा सी गलती बताने कोशिश एक बड़ा विवाद खड़ा कर देती है । दोस्तो ग़ज़ल एक पूजा है और शुरू करने से पहले अपने गुरु को ज़रूर नमन करा कीजिये । देखना आपका मुकाम कहां तक हासिल होता है । हम बात जार रहे थे रदीफ़ की ।
#रदीफ़ से ताल्लुक बात करते हुए हमें ये जान लेना ज़रूरी है वो कौन सी बातें हैं जिनकी वजह से रदीफ़ में दोष पैदा हो जाता है ।
a) रदीफ़ का अंश या हर्फ़ बदलना ।
b) तहलीली रदीफ़
c) राब्ता न होना
d)तक़ाबूले रदीफ़

अब हम एक एक कर के सब के बारे में बात करेंगे ।

रदीफ़ के बारे में विस्तार से जानने के बाद सबसे पहले हर लेखक/ग़ज़लकार को ये मालूम हो चुका है कि ग़ज़ल में हम रदीफ़ या उसका कोई #अंश बदल नहीं सकते अन्यथा उसमें दोष पैदा हो जाएगा ।

उदारण:

***
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे है

ऊपर मतले में 'थे" रदीफ़ तय किया गया है अब एक बार तय होने के बाद आगे के अन्य शे'रों में "है" नहीं ले सकते, यहाँ रदीफ़ का दोष आ जायेगा ।

ऊपर कहे शेरों का निराकरण--

हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा, अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।

***क्रमश:*****

◆◆◆आगे रदीफ़ दोष (b) तहलीली रदीफ़◆◆◆◆Post-3◆

Thursday, June 25, 2020

रदीफ़ दोष -पोस्ट-1

◆Post-1◆

#पहला
5-5-2020

#दोषयुक्त_ग़ज़ल

दोस्तो आज हम ग़ज़ल में उत्पन्न दोष की बात करेंगे ।
प्रभावपूर्ण ग़ज़ल कहने के बाद हमें देखना पड़ता है कि हमारी ग़ज़ल में कोई कमी तो नहीं रह गईं जिसके कारण उसमें कोई दोष तो नहीं रह गया ।

ग़ज़ल में दोष कई प्रकार के होते हैं ।
ग़ज़ल के
1) रदीफ़ में दोष
2) काफ़िया में दोष
3) बहर का दोष
4) भाषा का दोष
आदि-आदि ।

सबसे पहले हम बात करेंगे...रदीफ़ दोष के बारे में....

◆◆क्रमश:◆◆
◆◆आगे रदीफ़ दोष(a)◆Post-2◆

Monday, June 15, 2020

उठ के मैयत से निकल कह दो मना लें

***

उठके मैयत से निकल कहदो मना लें तुमको,
तू सितारा है ज़मीं पे तो बुला लें तुमको ।

शोहरत ने जो तुम्हें आज चुराया हमसे,
हम भी नग्मों में सनम आज सजा लें तुमको ।

तेरे ग़म में जो कभी शौक़ यहाँ पाले थे,
चल के मैख़ाने में सोचा कि दिखा लें तुमको ।

तेरी हसरत कि निग़ाहों से गिरा दे हमको,
अपनी हसरत कि निगाहों में उठा लें तुमको ।

जिन चराग़ों से मिली रौशनी मंज़िल के लिए,
आओ किस्मत के अँधेरों से बचा लें तुमको ।

हमने सोचा था कि इक शाम तेरे नाम करें,
दिल ने फिर चाहा उसी शाम मना लें तुमको ।

अपने तुम प्यार को सब नाज़ से रखना लेकिन,
सोचा खोया है सनम अपना बता लें तुमको ।

दिल मुहब्बत के अगर लम्हों को जीना चाहे,
मेरी मैयत में मिलेंगे वो सँभाले तुमको ।

-----हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
दिल की आवाज भी सुन दिल के फ़साने पे न जा