Saturday, June 27, 2020

रदीफ़ दोष :: पोस्ट- 2

◆Post-2◆

(1) रदीफ़ दोष (a)
दोस्तो काफ़िया के तुक (अन्त्यानुप्रास) और उसके बाद आने वाले शब्द या शब्दों को रदीफ़ कहते है। काफ़िया बदलता है किन्तु रदीफ़ नहीं बदलती है। उसका रूप जस का तस रहता है।
ये थोड़ी सी जानकारी इसलिए देनी ज़रूरी समझी कि अभी जिस बारे में बात होनी है उसका टॉपिक यही है ।

प्रिय पाठकों: ग़ज़ल कहन को अगर हम आसान कहें तो वह ठीक न होगा । इस विदा को बड़े ही सहज भाव से तथा बड़ी सहनशीलता से ही सीखा जा सकता है । इसे समझने के लिए अथाह गहराई तक समंदर को नापने जैसा अनुभव प्राप्त करने का मादा होना चाहिए । लेकिन आजकल के नए नए लेखकों को उनकी ज़रा सी गलती बताने कोशिश एक बड़ा विवाद खड़ा कर देती है । दोस्तो ग़ज़ल एक पूजा है और शुरू करने से पहले अपने गुरु को ज़रूर नमन करा कीजिये । देखना आपका मुकाम कहां तक हासिल होता है । हम बात जार रहे थे रदीफ़ की ।
#रदीफ़ से ताल्लुक बात करते हुए हमें ये जान लेना ज़रूरी है वो कौन सी बातें हैं जिनकी वजह से रदीफ़ में दोष पैदा हो जाता है ।
a) रदीफ़ का अंश या हर्फ़ बदलना ।
b) तहलीली रदीफ़
c) राब्ता न होना
d)तक़ाबूले रदीफ़

अब हम एक एक कर के सब के बारे में बात करेंगे ।

रदीफ़ के बारे में विस्तार से जानने के बाद सबसे पहले हर लेखक/ग़ज़लकार को ये मालूम हो चुका है कि ग़ज़ल में हम रदीफ़ या उसका कोई #अंश बदल नहीं सकते अन्यथा उसमें दोष पैदा हो जाएगा ।

उदारण:

***
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे है

ऊपर मतले में 'थे" रदीफ़ तय किया गया है अब एक बार तय होने के बाद आगे के अन्य शे'रों में "है" नहीं ले सकते, यहाँ रदीफ़ का दोष आ जायेगा ।

ऊपर कहे शेरों का निराकरण--

हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।

बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा, अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।

***क्रमश:*****

◆◆◆आगे रदीफ़ दोष (b) तहलीली रदीफ़◆◆◆◆Post-3◆

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