नज़्म
(एक भ्रूण का अहसास)
तेरे घर का आँगन,
मुझे बड़ा ही सुहाना लगा ।
न जाने क्यूँ,
मुझे वो इस कदर पुराना लगा ।
मैं
बड़े इत्मीनान से
आया हूँ तेरे पास माँ,
इक उम्र गुज़ार लूँगा,
गर तुझे ये नज़राना लगा ।
तेरे बस में अगर हो,
तो
भूल जाना वो सारे दर्द,
जब आहट,
मेरे आने की, तेरी कोक में
इक खज़ाना लगा ।
न जाने,
क्या देखा मैनें
तेरी उदास आंखों में !
गुनाहगार हूँ तेरा
आने में, मुझे इक ज़माना लगा ।
तेरे घर का आँगन,
मुझे बड़ा ही सुहाना लगा !
न जाने क्यूँ,
मुझे वो इस कदर पुराना लगा !!
हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहुत प्यारी कविता, बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteadhubhu kavita
ReplyDeleteशुक्रिया आदरनीय
Deleteबहुत सुंदर गीत ,ह्रदय स्पर्शी
ReplyDeleteबहैत बहैत शुक्रिया मधुलिका जी
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