Tuesday, January 25, 2022

तेरे घर का आँगन

 नज़्म

(एक भ्रूण का अहसास)


तेरे घर का आँगन,

मुझे बड़ा ही सुहाना लगा ।

न जाने क्यूँ, 

मुझे वो इस कदर पुराना लगा ।


मैं 

बड़े इत्मीनान से 

आया हूँ तेरे पास माँ,

इक उम्र गुज़ार लूँगा, 

गर तुझे ये नज़राना लगा ।


तेरे बस में अगर हो, 

तो 

भूल जाना वो सारे दर्द,

जब आहट, 

मेरे आने की, तेरी कोक में

इक खज़ाना लगा ।


न जाने,

क्या देखा मैनें 

तेरी उदास आंखों में !

गुनाहगार हूँ तेरा 

आने में, मुझे इक ज़माना लगा ।


तेरे घर का आँगन,

मुझे बड़ा ही सुहाना लगा !

न जाने क्यूँ,

मुझे वो इस कदर पुराना लगा !!


हर्ष महाजन 'हर्ष'

6 comments:

  1. बहुत प्यारी कविता, बधाई।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया !!

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  2. बहुत सुंदर गीत ,ह्रदय स्पर्शी

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    1. बहैत बहैत शुक्रिया मधुलिका जी

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