Monday, April 12, 2021

कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला

 ★★★★★★★नज़्म★★★★★★★★


अनकही बातें न जानें दिल में कितनी ले गया,

उँगलियाँ अपनों की यूँ....दांतों तले वो दे गया ।


कौन जाने इतना गहरा किसका नश्तर था चला,

अपने हाथों, की लकीरों....,..को दगा वो दे गया ।  


क्या चलेगी बेगुनाही.....की कलम अबकी यहॉं ?

किसने दी ऐसी सज़ा.....वो ज़िंदगी ही से गया ।


है दुआ, बातों से निकले.....राह कोई अब यहाँ,

वर्ना लिख देना जहाँ में, अपना, अपनों से गया ।


थी शिकायत उससे.......पाबंदी-ओ-शर्तें बेसबब,

बिन अदालत आपकी ख़ातिर वो जाँ तक दे गया । 


कितना तड़पा होगा वो उस आख़िरी पल में फ़क़त,

लिख मुकद्दर, ख़ुद वो अपना, रूह जहाँ से ले गया ।


ये खुदा की नैमतें हैं.........हम सभी ज़िंदा खड़े,

कौन जाने किसने जाना था.....किसे वो ले गया ।


पूजा कर-कर उम्र बीती दिल में क्यों नफ़रत अबस,

अब वो महफ़िल में नहीं पर दिल में नफरत ले गया ।


कुछ के दिल में थी अदावत* कुछ में रिश्ता नाम का,

इस तरह, वो संग, सबके रंजो गम......सब ले गया ।


रंजिशें किसकी थीं कितनी, ज़ह्र भी इतना था उफ़,

ऐ ख़ुदा तू ये बता अब.......ये गुनाह किस पे गया ।

 

इससे ज़्यादा ये तमाशा...........कौन देखेगा यहॉं,

तज़रुबा अपने हलातों.............का मगर वो दे गया ।


------हर्ष महाजन 'हर्ष'


*अदावत = शत्रुता


बह्र तर्ज़: आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे


2122 2122 2122 212


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