मिसरा :
दोस्तों कल भी शे'र के मुतल्लक बात करते हुए हमने इस शब्द के बारे मे बात की थी ....जितना मैं जानता हूँ मिसरे के बारे में ..उसी प्रकार आपके समक्ष मैं अपनी बात रखता हूँ.....मैं अपनी बात दोहराता हूँ ....
मिसरा :-----शे'र की प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं, इस प्रकार एक शे'र में दो पंक्तियाँ अर्थात दो मिसरे होते हैं- मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी।
मिसरा-ए-उला
शे'र की पहली पंक्ति को मिसरा -ए- उला कहते हैं। 'उला' का शब्दिक अर्थ है 'पहला'।
_____________________
मिसरा-ए-सानी
शे'र की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं। 'सानी' का शब्दिक अर्थ है 'दूसरा'।
दुष्यंत कुमार हिंदी का सबसे पहला ग़ज़ल कार था ..उसका एक ग़ज़ल का शे'र
उदाहरण के रूप मे लेते हैं ......
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ---(दुष्यंत कुमार)[1]
उपरोक्त शे'र में शे'रकी पहली पंक्ति (हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-उला'
और दूसरी पंक्ति (इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-सानी' कहा जाएगा। दोस्तों शे'र कहना कोई आसान नहीं है....शे'र कहने से पहले उसके हर पहलू का समझना बहुत ज़रूरी है...जब हम शे'र कहते हैं तो---- उसकी दो लाइनें होती हैं ----शे'र की पहली लाइन जो कि एकदम स्वतंत्र होती है और जिसमें कोई भी तुक मिलाने की बाध्यता नहीं होती है और हम कोई भी अहसास लिए उसे कह सकते हैं । इस पहली लाइन को कहा जाता है मिसरा उला ।
___________उसके बाद आती है दूसरी लाइन :-जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है |जिसमे हमें अपनी विद्या का सब कुछ अर्पण करने का हुनर दिखाना होता है.....इसके लिए हमें अपने शब्द/अहसास/कला/हुनर/और पहली लाईन से उभरे प्रश्नों को समेटते हुए अपनी बात के अंत को अंजाम देना होता है जिस से कोई भी पहली लाईन के मुतल्लक प्रश्न बाक़ी न रह जाए ..मिसरा सानी में सब कुछ समाकर हमें दिखाना है |
इसमें ही आपकी/हमारी/अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना होता है और यही वो लाईन होती है जो शायर को शायर बनाती है....उसे वाह-वाह तक ले जाती है...भाषा जितनी सरल होगी उतना ही लोगों के दिलों तक पहुंचेगी....मुश्किल लफ्ज़ ढूँढने वाले ...किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं |..अब हमें देखना है ..इसमें किस टेक्नीक का पर्योग करना होता है | देखिये ....
सबसे पहले --- इसमें तुक का मिलान किया जाता है | अर्थात पूरी की पूरी बात हमें इन्ही दो लाइनॉ में ही कह देनी हैं और | पहली लाइन में आपको आपनी बात को आधा कहना है ( मिसरा उला ) जैसे -- एक शे'र --"कैसा है अब शोर यहाँ पर दिखते हैं घबराए लोग " इसमें शाइर ने आधी बात कह दी है अब इस आधी को पूरी अगली पंक्ति में करना ज़रूरी है (मिसरा सानी) "ढूँढा करते प्यार यहाँ पर सदियों से ठुकराए लोग" । मतलब मिसरा सानी---- वो जिसमें आपको अपनी पहली पंक्ति की अधूरी बात को हर हालत में पूरा करना ही है । तभी ये ग़ज़ल का हिस्सा बन पायेगा |
दूसरी और देखिये गीत के साथ इसका अंतर -----इस से आपको गीत के बारे में भी मालूम होगा....गीत में क्या होता है ------जब आप गीत कहते हैं ----अगर आपका अहसास --एक छंद में कोई बात पूरी न कर पाय तो अगले छंद में ले सकते हैं पर यहां ग़ज़ल में जब शे'र कहने पर ऐसा नहीं होता ---- यहां तो पूरी बात को कहने के लिये दो ही लाइनें हैं हमें उसी में अपनी बात पूरी करनी होती है....इस बीच बहुत सी चीज़ें ( मुक्तक/रुबाई) हैं जो हम आपको बता सकते हैं...लेकिन वो सब बताने पर आप पज़ल होने की कगार पर पहुँच जायेंगे....| हमें अभी शे'रों में ही खेलना है अर्थात गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना ।
मिसरा सानी हमारे शे'रों के लिए एक महतवपूर्ण हिस्सा है ----मिसरा सानी का महत्व अधिक इसलिये है क्योंकि आपको यहां पर बात को पूरा करना है और साथ में तुक ( काफिया--जिसके बारे में हम आपको आगे आने वाले लेस्सन में बताएँगे ) भी मिलाना है । मतलब ये है कि एक पूर्व निर्धारित अंत के साथ बात को खत्म करना |(मतलब मिसरा सानी ।)तो आज हमने जाना कि मिसरा क्या होता है ..शे'र किस तरह पूरा होता है ...और एक छोटा सा शब्द ..'मिसरा' --कितना बड़ा अर्थ लिए हुए है |
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अगला अध्याय हमारा काफिये के ऊपर होगा ....... काफिया, जो ग़ज़ल की जान होता है --उसके बिना ग़ज़ल को ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता -----
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नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
A.कविता का स्वरुप
1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12
दोस्तों कल भी शे'र के मुतल्लक बात करते हुए हमने इस शब्द के बारे मे बात की थी ....जितना मैं जानता हूँ मिसरे के बारे में ..उसी प्रकार आपके समक्ष मैं अपनी बात रखता हूँ.....मैं अपनी बात दोहराता हूँ ....
मिसरा :-----शे'र की प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं, इस प्रकार एक शे'र में दो पंक्तियाँ अर्थात दो मिसरे होते हैं- मिसरा-ए-उला और मिसरा-ए-सानी।
मिसरा-ए-उला
शे'र की पहली पंक्ति को मिसरा -ए- उला कहते हैं। 'उला' का शब्दिक अर्थ है 'पहला'।
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मिसरा-ए-सानी
शे'र की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं। 'सानी' का शब्दिक अर्थ है 'दूसरा'।
दुष्यंत कुमार हिंदी का सबसे पहला ग़ज़ल कार था ..उसका एक ग़ज़ल का शे'र
उदाहरण के रूप मे लेते हैं ......
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए ---(दुष्यंत कुमार)[1]
उपरोक्त शे'र में शे'रकी पहली पंक्ति (हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-उला'
और दूसरी पंक्ति (इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए) को 'मिसरा-ए-सानी' कहा जाएगा। दोस्तों शे'र कहना कोई आसान नहीं है....शे'र कहने से पहले उसके हर पहलू का समझना बहुत ज़रूरी है...जब हम शे'र कहते हैं तो---- उसकी दो लाइनें होती हैं ----शे'र की पहली लाइन जो कि एकदम स्वतंत्र होती है और जिसमें कोई भी तुक मिलाने की बाध्यता नहीं होती है और हम कोई भी अहसास लिए उसे कह सकते हैं । इस पहली लाइन को कहा जाता है मिसरा उला ।
___________उसके बाद आती है दूसरी लाइन :-जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है |जिसमे हमें अपनी विद्या का सब कुछ अर्पण करने का हुनर दिखाना होता है.....इसके लिए हमें अपने शब्द/अहसास/कला/हुनर/और पहली लाईन से उभरे प्रश्नों को समेटते हुए अपनी बात के अंत को अंजाम देना होता है जिस से कोई भी पहली लाईन के मुतल्लक प्रश्न बाक़ी न रह जाए ..मिसरा सानी में सब कुछ समाकर हमें दिखाना है |
इसमें ही आपकी/हमारी/अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना होता है और यही वो लाईन होती है जो शायर को शायर बनाती है....उसे वाह-वाह तक ले जाती है...भाषा जितनी सरल होगी उतना ही लोगों के दिलों तक पहुंचेगी....मुश्किल लफ्ज़ ढूँढने वाले ...किताबों तक ही सीमित रह जाते हैं |..अब हमें देखना है ..इसमें किस टेक्नीक का पर्योग करना होता है | देखिये ....
सबसे पहले --- इसमें तुक का मिलान किया जाता है | अर्थात पूरी की पूरी बात हमें इन्ही दो लाइनॉ में ही कह देनी हैं और | पहली लाइन में आपको आपनी बात को आधा कहना है ( मिसरा उला ) जैसे -- एक शे'र --"कैसा है अब शोर यहाँ पर दिखते हैं घबराए लोग " इसमें शाइर ने आधी बात कह दी है अब इस आधी को पूरी अगली पंक्ति में करना ज़रूरी है (मिसरा सानी) "ढूँढा करते प्यार यहाँ पर सदियों से ठुकराए लोग" । मतलब मिसरा सानी---- वो जिसमें आपको अपनी पहली पंक्ति की अधूरी बात को हर हालत में पूरा करना ही है । तभी ये ग़ज़ल का हिस्सा बन पायेगा |
दूसरी और देखिये गीत के साथ इसका अंतर -----इस से आपको गीत के बारे में भी मालूम होगा....गीत में क्या होता है ------जब आप गीत कहते हैं ----अगर आपका अहसास --एक छंद में कोई बात पूरी न कर पाय तो अगले छंद में ले सकते हैं पर यहां ग़ज़ल में जब शे'र कहने पर ऐसा नहीं होता ---- यहां तो पूरी बात को कहने के लिये दो ही लाइनें हैं हमें उसी में अपनी बात पूरी करनी होती है....इस बीच बहुत सी चीज़ें ( मुक्तक/रुबाई) हैं जो हम आपको बता सकते हैं...लेकिन वो सब बताने पर आप पज़ल होने की कगार पर पहुँच जायेंगे....| हमें अभी शे'रों में ही खेलना है अर्थात गागर में सागर भरना मतलब शे'र कहना ।
मिसरा सानी हमारे शे'रों के लिए एक महतवपूर्ण हिस्सा है ----मिसरा सानी का महत्व अधिक इसलिये है क्योंकि आपको यहां पर बात को पूरा करना है और साथ में तुक ( काफिया--जिसके बारे में हम आपको आगे आने वाले लेस्सन में बताएँगे ) भी मिलाना है । मतलब ये है कि एक पूर्व निर्धारित अंत के साथ बात को खत्म करना |(मतलब मिसरा सानी ।)तो आज हमने जाना कि मिसरा क्या होता है ..शे'र किस तरह पूरा होता है ...और एक छोटा सा शब्द ..'मिसरा' --कितना बड़ा अर्थ लिए हुए है |
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अगला अध्याय हमारा काफिये के ऊपर होगा ....... काफिया, जो ग़ज़ल की जान होता है --उसके बिना ग़ज़ल को ग़ज़ल नहीं कहा जा सकता -----
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A.कविता का स्वरुप
1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
7.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --7
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
12.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 12
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