Wednesday, April 17, 2013

मेरे ज़ख्मों में तेरे होने का अहसास है अब

...

मेरे ज़ख्मों में तेरे होने का अहसास है अब,
ये भी खामोश तसव्वुर है कि तू पास है अब |

तुझको देखा है कई बार दिल के टुकड़ों में,
मैं हूँ ज़िंदा तेरे आने की मुझे आस है अब |

मुझमें धडके जो दिल उसपे अख्तियार नहीं ,
ज़िन्दगी बोझ लगे साँसें भी उदास है अब |

मेरे गम ही मुझे देते हैं सहारा हरपल
बिखरी उम्मीदें वही मेरे लिए ख़ास है अब |

कशमकश है ये अजब तेरे लिए है ये ग़ज़ल,
राख जो हो के मिला दिल भी मुझे रास हैं अब |

______________हर्ष महाजन

No comments:

Post a Comment