मैंने पहले भी कहा था .................
एक क़ामयाब शायर होने के लिये चार चीज़ें ज़रूरी हैं विचार, शब्दावली , व्याकरण और उसका प्रस्तुतीकरण । विचार तभी आयेंगे जब आप अपने समय की नब्ज़ं को समझ सकेंगे और उससे परिचित होने कि कोशिश करेंगे | कवि होना आसान नहीं है कवि होने के नाते हमारी जि़म्मेदारी है कि हम समाज पर नज़र रखें । फिल्मो मे क्या हो रहा है....आपके आसपास क्या हो रहा है दुनिया किस और मुखातिब है |
शब्द या शब्दावली इस विदा कि दूसरी मांग हैं जिसकी ज़रूरत है शब्द तभी आते हैं जब गहन अध्ययन होता है, एक पेज लिखने के लिए हमें कई पेजों का अध्ययन करना होगा....अपने आप में एक पेज लिख्नेह की बात आएगी । तो शब्द जो शब्दहकोश से आते हैं उनका शब्दहकोश तभी समृद्ध होगा जब आप पढ़ेंगें । यहां एक बात कह देना चाहता हूं कि शब्द ना तो उर्दू के, फारसी के या संस्कृकत के हों जिनका अर्थ सुनने वाले को डिक्शबनरी में ढूंढना पड़े, वे ही शब्दो लें जो आम आदमी के समझ में आ जाए क्यूंकि कविता उसी के लिये तो लिखी जा रही हैं ।
तीसरी चीज़ है जो इस विदा में ज़रुरत है व्याकरण की |जिसको उर्दू में अरूज़ कहा जाता है वो भी ज़रूरी है क्योंकि जब तक रिदम ही नहीं होगी तब तक तो बात भी मज़ा नहीं देती है तो अरूज़ बिना कविता प्रभाव पैदा नहीं करती ।व्याकरण ..को छंद से परिपूर्ण करना होगा | कविताछंदमुक्तर भी होती है पर छंदमुक्त होने के बाद भी उसमें रिदम होता है ये रिदम पैदा होता है व्या'करण से अरूज़ से जो आपको यहां सीखने को चाहिए था ।
चौंथी प्रापर्टी है प्रस्तुतिकरण ये तो आपके अंदर ही होता है किस तरह से आप अपनी कविता या गज़ल को पढ़ते हैं या उसे पेश करते हैं..ये अपना अपना आर्ट है यहाँ हम उसे पेश करने के तरीके से अवगत करा सकते थे मगर जियादा आपके खुद पर मुनस्सर है । वैसे जब ग़ज़ल अरूज़ के हिसाब से होती है तो उसमें लय स्वयं ही आ जाती है । यहाँ बहुत से ऐसे साथी मोजूद हैं हैं जिन्हें अरूज़ का ज्ञान है जो आपकी रचनाओं को अरूज़ के तराज़ू पर कास कर देख सकते थे....जिस से आपके और हमारे इल्म में इजाफा हो जाता और कसने वाला जो होता है उसे हम अरूज़ी कहते हैं उन्हें अरूज़ का ज्ञान होता है |
_____दोस्तों ग़ज़ल के लिए हमें उनकी प्रापर्टीस के बारे जानना होगा....कि वो क्या हैं....क्या क्या ज़रुरत है एक ग़ज़ल में ...जिसकी वज़ह से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया गया है.....हर कृति ग़ज़ल क्यूँ नहीं होती....| आपके मन में कई प्रशों के सवाल गूंजेंगे.....कि जो भी आपने लिखा या कहा ..वो ग़ज़ल है कि नहीं ?...ये कैसे मालूम होगा....क्यूंकि हर दो लाईन शे'र नहीं होता और हर कृति ग़ज़ल नहीं होती...| जब आप ग़ज़ल कि प्रापर्टीस के बारे मे जानते ही नहीं ....तो कैसे कह सकते हैं ....कई बार ऐसी कृति को कहते वक़्त इंसान ग़ज़ल कह देता है ....जब महफ़िल से आवाज़ आती है के ये तो ग़ज़ल नहीं है..तो कितना अटपटा सा फील होता है....क्यूंकि हम जानते ही नहीं कि ग़ज़ल होती क्या है.....हर वो कृति जो ग़ज़ल की तरह गायी जाए वो ग़ज़ल नहीं होती....|__
ग़ज़ल में जो ज़रूरी चीज़ें है...जो हमेशां मजूद होनी चाहिए उन्हें हम विस्तार से एक एक करके यहाँ विश्लेषण करते हुए लेंगे....की ये क्या हैं....और इन्हें कैसे और इस तरह कहा जाता है....यहाँ पढने वाले जितने भी शख्स हैं वो यही समझ रहे होंगे...जो भी आता है यहीं से शुरू करता है...ये सब तो आता है....लेकिन नहीं...सिर्फ इन शब्दों को जान लेना ही सब कुछ नहीं है ....इनमें अलग अलग भी बहुत कुछ है जा न ने के लिए |....ग़ज़ल मे इन छ: चीज़ों का समावेश होता है...जिस से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया जाता है....इसके इलावा इसकी बाक़ी प्रापर्टीस को हम बाद में अलग अलग से लेंगे...|
शे'र : मिसरा :काफिया : रदीफ़ :मतला : मक्ता :
__
दोस्तों ये धारा-पर्वाह कहना और लिखना .....मेरी अभी किसी किताब में मौजूद नहीं है.....ये आपके लिए सीधे कलम से हाज़िर है....आप इसे दुबारा किसी लेख के रूप में चाहेंगे तो हाज़िर नहीं कर पाऊँगा....इसी तरह ही सीधे कलम से मुझे देना होगा.....जो भी सीखना है ध्यान पूर्वक पढ़िए और सीखने कि कोशिश कीजियेगा.....वेसे तो इन्टरनेट पर हजारों लेख पड़े हैं वहां से भी अध्ययन कर सकते हैं ...लेकिन जो सीधे से समझ आता है..वो लेखों से समझ नहीं आ सकता ...जो लोग इसे कापी करके बाद में पड़ने के लिए रखना चाहते हैं...वो भूल में होंगे के कुछ सीख पायेंगे....हमारे गुरु कहा करते थे...सिर्फ किताबॉ से पढने वाले कभी भी शिक्षा नहीं पा सकते...उनसे उनकी ईगो ही सब कुछ छीन लेती है....जो सीख भी लेते हैं वो भूल जाता है..|
चलिए आज अपनी क्लास का पहला अध्याय हम श'एर से शुरू करते हैं ....
शे'र
दोस्तों ये शब्द क्या है पहले तो ये ही सबकुछ समझने की बात है...जब भी महफ़िल में हम इसके बारे में बात करते हैं तो प्रश्न ये आता है.... कि ये ग़ज़ल वाला शेर है या कि जंगल वाला मगर ये उलझन केवल देवनागरी में ही है क्योंतकि उर्दू में तो दोनों शेरों को लिखने और उनके उच्चारण में अंतर होता है । ग़ज़ल वाले शेर को उर्दू में कुछ ( लगभग) इस तरह से उच्चारित किया जाता है ' शे'र' इसलिये वहां फ़र्क़ होता है वास्तोव में उसे शे'र कहेंगे तो दुसरे( जानवर) शेर से अंतर ख़ुद ही हो जाएगा । ये शे'र जो होता है इसकी दो लाइनें होती हैं । वास्तव में अगर शे'र को परिभाषित करना हो तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वजन में समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्तर हो । यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि मैंने पूरी की पूरी बात कहा है |
वास्तव में कविता और ग़ज़ल में फर्क ही ये है कविता एक ही भाव को लेकर चलती है और पूरी कविता में उसका निर्वाहन होता है ।
ग़ज़ल में हर शे'र अलग बात कहता है और इसीलिये उस बात को दो पंक्तियों में समाप्तै होना ज़रूरी है ।
इन दोनो लाइनों को मिसरा कहा जाता है शे'र की पहली लाइन होती है यहाँ कि 'मिसरा उला' और दूसरी लाइन को कहते हैं 'मिसरा सानी' ।
दो मिसरों से मिल कर एक शे'र बनता है ।
अब जैसे उदाहरण के लिये ये शे'र देखें :-
'हुई यूँ ग़मों की ये शाम आखिरी है " ... ये मिसरा उला है |
ये किसी की मौत पर है
' पहना दो कफ़न ये सलाम आखिरी है ' ये मिसरा सानी है ।
और ' ये मिसरा ऊला का पूरक है ' ये मिसरा सानी है ।
तो आज हमारे पास याद रखने योग्य क्या बात हुई ....
जब भी आप शे'र कहें तो उसमें जो दो मिसरे होंगें उनमें से :-
उपर का मिसरा जो कि पहला होता है उसे मिसरा उला कहते हैं
और
जिसमें आप बात को ख़त्म करते हैं ..यानी तुक मिलाते हैं वो होता हैं मिसरा सानी ।
वो अभी मुकम्मल नहीं है ।..तो आज के लिए इतना काफी है ..कल हम शब्द मिसरा लेंगे......|
____नीचे के लिंक पर क्लिक कीजिये और उस पर जाइए .....
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
एक क़ामयाब शायर होने के लिये चार चीज़ें ज़रूरी हैं विचार, शब्दावली , व्याकरण और उसका प्रस्तुतीकरण । विचार तभी आयेंगे जब आप अपने समय की नब्ज़ं को समझ सकेंगे और उससे परिचित होने कि कोशिश करेंगे | कवि होना आसान नहीं है कवि होने के नाते हमारी जि़म्मेदारी है कि हम समाज पर नज़र रखें । फिल्मो मे क्या हो रहा है....आपके आसपास क्या हो रहा है दुनिया किस और मुखातिब है |
शब्द या शब्दावली इस विदा कि दूसरी मांग हैं जिसकी ज़रूरत है शब्द तभी आते हैं जब गहन अध्ययन होता है, एक पेज लिखने के लिए हमें कई पेजों का अध्ययन करना होगा....अपने आप में एक पेज लिख्नेह की बात आएगी । तो शब्द जो शब्दहकोश से आते हैं उनका शब्दहकोश तभी समृद्ध होगा जब आप पढ़ेंगें । यहां एक बात कह देना चाहता हूं कि शब्द ना तो उर्दू के, फारसी के या संस्कृकत के हों जिनका अर्थ सुनने वाले को डिक्शबनरी में ढूंढना पड़े, वे ही शब्दो लें जो आम आदमी के समझ में आ जाए क्यूंकि कविता उसी के लिये तो लिखी जा रही हैं ।
तीसरी चीज़ है जो इस विदा में ज़रुरत है व्याकरण की |जिसको उर्दू में अरूज़ कहा जाता है वो भी ज़रूरी है क्योंकि जब तक रिदम ही नहीं होगी तब तक तो बात भी मज़ा नहीं देती है तो अरूज़ बिना कविता प्रभाव पैदा नहीं करती ।व्याकरण ..को छंद से परिपूर्ण करना होगा | कविताछंदमुक्तर भी होती है पर छंदमुक्त होने के बाद भी उसमें रिदम होता है ये रिदम पैदा होता है व्या'करण से अरूज़ से जो आपको यहां सीखने को चाहिए था ।
चौंथी प्रापर्टी है प्रस्तुतिकरण ये तो आपके अंदर ही होता है किस तरह से आप अपनी कविता या गज़ल को पढ़ते हैं या उसे पेश करते हैं..ये अपना अपना आर्ट है यहाँ हम उसे पेश करने के तरीके से अवगत करा सकते थे मगर जियादा आपके खुद पर मुनस्सर है । वैसे जब ग़ज़ल अरूज़ के हिसाब से होती है तो उसमें लय स्वयं ही आ जाती है । यहाँ बहुत से ऐसे साथी मोजूद हैं हैं जिन्हें अरूज़ का ज्ञान है जो आपकी रचनाओं को अरूज़ के तराज़ू पर कास कर देख सकते थे....जिस से आपके और हमारे इल्म में इजाफा हो जाता और कसने वाला जो होता है उसे हम अरूज़ी कहते हैं उन्हें अरूज़ का ज्ञान होता है |
_____दोस्तों ग़ज़ल के लिए हमें उनकी प्रापर्टीस के बारे जानना होगा....कि वो क्या हैं....क्या क्या ज़रुरत है एक ग़ज़ल में ...जिसकी वज़ह से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया गया है.....हर कृति ग़ज़ल क्यूँ नहीं होती....| आपके मन में कई प्रशों के सवाल गूंजेंगे.....कि जो भी आपने लिखा या कहा ..वो ग़ज़ल है कि नहीं ?...ये कैसे मालूम होगा....क्यूंकि हर दो लाईन शे'र नहीं होता और हर कृति ग़ज़ल नहीं होती...| जब आप ग़ज़ल कि प्रापर्टीस के बारे मे जानते ही नहीं ....तो कैसे कह सकते हैं ....कई बार ऐसी कृति को कहते वक़्त इंसान ग़ज़ल कह देता है ....जब महफ़िल से आवाज़ आती है के ये तो ग़ज़ल नहीं है..तो कितना अटपटा सा फील होता है....क्यूंकि हम जानते ही नहीं कि ग़ज़ल होती क्या है.....हर वो कृति जो ग़ज़ल की तरह गायी जाए वो ग़ज़ल नहीं होती....|__
ग़ज़ल में जो ज़रूरी चीज़ें है...जो हमेशां मजूद होनी चाहिए उन्हें हम विस्तार से एक एक करके यहाँ विश्लेषण करते हुए लेंगे....की ये क्या हैं....और इन्हें कैसे और इस तरह कहा जाता है....यहाँ पढने वाले जितने भी शख्स हैं वो यही समझ रहे होंगे...जो भी आता है यहीं से शुरू करता है...ये सब तो आता है....लेकिन नहीं...सिर्फ इन शब्दों को जान लेना ही सब कुछ नहीं है ....इनमें अलग अलग भी बहुत कुछ है जा न ने के लिए |....ग़ज़ल मे इन छ: चीज़ों का समावेश होता है...जिस से ग़ज़ल को ग़ज़ल का नाम दिया जाता है....इसके इलावा इसकी बाक़ी प्रापर्टीस को हम बाद में अलग अलग से लेंगे...|
शे'र : मिसरा :काफिया : रदीफ़ :मतला : मक्ता :
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दोस्तों ये धारा-पर्वाह कहना और लिखना .....मेरी अभी किसी किताब में मौजूद नहीं है.....ये आपके लिए सीधे कलम से हाज़िर है....आप इसे दुबारा किसी लेख के रूप में चाहेंगे तो हाज़िर नहीं कर पाऊँगा....इसी तरह ही सीधे कलम से मुझे देना होगा.....जो भी सीखना है ध्यान पूर्वक पढ़िए और सीखने कि कोशिश कीजियेगा.....वेसे तो इन्टरनेट पर हजारों लेख पड़े हैं वहां से भी अध्ययन कर सकते हैं ...लेकिन जो सीधे से समझ आता है..वो लेखों से समझ नहीं आ सकता ...जो लोग इसे कापी करके बाद में पड़ने के लिए रखना चाहते हैं...वो भूल में होंगे के कुछ सीख पायेंगे....हमारे गुरु कहा करते थे...सिर्फ किताबॉ से पढने वाले कभी भी शिक्षा नहीं पा सकते...उनसे उनकी ईगो ही सब कुछ छीन लेती है....जो सीख भी लेते हैं वो भूल जाता है..|
चलिए आज अपनी क्लास का पहला अध्याय हम श'एर से शुरू करते हैं ....
शे'र
दोस्तों ये शब्द क्या है पहले तो ये ही सबकुछ समझने की बात है...जब भी महफ़िल में हम इसके बारे में बात करते हैं तो प्रश्न ये आता है.... कि ये ग़ज़ल वाला शेर है या कि जंगल वाला मगर ये उलझन केवल देवनागरी में ही है क्योंतकि उर्दू में तो दोनों शेरों को लिखने और उनके उच्चारण में अंतर होता है । ग़ज़ल वाले शेर को उर्दू में कुछ ( लगभग) इस तरह से उच्चारित किया जाता है ' शे'र' इसलिये वहां फ़र्क़ होता है वास्तोव में उसे शे'र कहेंगे तो दुसरे( जानवर) शेर से अंतर ख़ुद ही हो जाएगा । ये शे'र जो होता है इसकी दो लाइनें होती हैं । वास्तव में अगर शे'र को परिभाषित करना हो तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात जहां पर दोनों पंक्तियों का वजन में समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्तर हो । यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि मैंने पूरी की पूरी बात कहा है |
वास्तव में कविता और ग़ज़ल में फर्क ही ये है कविता एक ही भाव को लेकर चलती है और पूरी कविता में उसका निर्वाहन होता है ।
ग़ज़ल में हर शे'र अलग बात कहता है और इसीलिये उस बात को दो पंक्तियों में समाप्तै होना ज़रूरी है ।
इन दोनो लाइनों को मिसरा कहा जाता है शे'र की पहली लाइन होती है यहाँ कि 'मिसरा उला' और दूसरी लाइन को कहते हैं 'मिसरा सानी' ।
दो मिसरों से मिल कर एक शे'र बनता है ।
अब जैसे उदाहरण के लिये ये शे'र देखें :-
'हुई यूँ ग़मों की ये शाम आखिरी है " ... ये मिसरा उला है |
ये किसी की मौत पर है
' पहना दो कफ़न ये सलाम आखिरी है ' ये मिसरा सानी है ।
और ' ये मिसरा ऊला का पूरक है ' ये मिसरा सानी है ।
तो आज हमारे पास याद रखने योग्य क्या बात हुई ....
जब भी आप शे'र कहें तो उसमें जो दो मिसरे होंगें उनमें से :-
उपर का मिसरा जो कि पहला होता है उसे मिसरा उला कहते हैं
और
जिसमें आप बात को ख़त्म करते हैं ..यानी तुक मिलाते हैं वो होता हैं मिसरा सानी ।
वो अभी मुकम्मल नहीं है ।..तो आज के लिए इतना काफी है ..कल हम शब्द मिसरा लेंगे......|
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1.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --१
1.a शिल्प-ज्ञान -1 a
2.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --2 ........नज़्म और ग़ज़ल
3.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --3
4.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --4 ----कविता का श्रृंगार
5.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --५ .....दोहा क्या है ?
6.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --6
8.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान --8
9.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 9
10.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 10
11.ग़ज़ल शिल्प ज्ञान - 11
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