--नज़्म--
सुना है---
बड़े आलीशान मकान में रहते हो,
कभी आओ हमारी भी सुनों,
गर कण-कण में बहते हो ।
देखो !!
मौत के सौदे,
सर-ए-आम होने लगे हैं,
गरीब अकेले ही
काँधे पे--लाश ढोने लगे हैं ।
मंदिर-ओ-मस्ज़िद से
अब न घंटे की
न अजां की आवाज आती है ।
दूर अपना---
जो भीषण आपदा में फँसा है
बस--
उसकी याद आती है ।
बिन तलवारों के
श्मशान भीड़ से अटा पड़ा है ।
ज़िंदा इंसान भी
अब लाईन में खड़ा है ।
---आओ न मेरे आका,
तुम हर आंधी में तो रहते हो
मेरी इक इल्तिज़ा !! सुनोगे ??
क्या कहते हो ?
तेरे लिए है न तुछ,
सिमटा दो न अब सब कुछ ।
मगर
मशहूर हो न,
दिल बहलाने में,
हम भी कसर नहीं छोड़ेंगे
तुम्हें
आजमाने में ।
सुना है---
बड़े आलीशान मकान में रहते हो,
कभी आओ हमारी भी सुनों,
गर कण-कण में बहते हो ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteकृपया हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏
शुक्रिया
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