Monday, May 10, 2021

बड़े आलीशान मकान में रहते हो

 --नज़्म--


सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।

देखो !!

मौत के सौदे, 

सर-ए-आम होने लगे हैं,

गरीब अकेले ही

काँधे पे--लाश ढोने लगे हैं ।

मंदिर-ओ-मस्ज़िद से 

अब न घंटे की

न अजां की आवाज आती है ।

दूर अपना---

जो भीषण आपदा में फँसा है

बस--

उसकी याद आती है ।

बिन तलवारों के 

श्मशान भीड़ से अटा पड़ा है ।

ज़िंदा इंसान भी 

अब लाईन में खड़ा है ।

---आओ न मेरे आका,

 तुम हर आंधी में तो रहते हो

मेरी इक इल्तिज़ा !! सुनोगे  ??

क्या कहते हो ?

तेरे लिए है न तुछ,

सिमटा दो न अब सब कुछ ।

मगर

मशहूर हो न,

 दिल बहलाने में,

हम भी कसर नहीं छोड़ेंगे

तुम्हें

आजमाने में ।

सुना है---

बड़े आलीशान मकान में रहते हो,

कभी आओ हमारी भी सुनों,

गर कण-कण में बहते हो ।


---हर्ष महाजन 'हर्ष'

2 comments:

  1. 👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
    कृपया हमारे ब्लॉग पर भी आइएगा आपका स्वागत है🙏🙏

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