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सिर्फ इक ज़िक्र तेरा.........मेरे लम्हें रौशन,
हो अगर संग-ए-सफ़र....तमाम राहें रौशन |
कैसे वादा करूँ शहर में क़त्ल-ए-आम न हो,
बे-नकाब हुस्न तेरा......और निगाहें रौशन |
हो अगर संग-ए-सफ़र....तमाम राहें रौशन |
कैसे वादा करूँ शहर में क़त्ल-ए-आम न हो,
बे-नकाब हुस्न तेरा......और निगाहें रौशन |
_______________हर्ष महाजन
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